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My Quotes..

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • May 7, 2023
  • 1 min read

दम घुटने लगा है अँधेरे का अकेले में..

नजरें रौशनी में रहना चाहती हैं अब..


ईद का चाँद फलक पर था और

मुस्कुराहट लबों पर..

बच्चों की मुस्कानों में छुपकर

आते हैं त्योहार सभी..


झुलस रही हैं इमारतें गर्मी से

अब कच्चे गाँव कहाँ हैं..?

कंकरीटों से बने पक्के जंगल हैं

हरे पेड़ों की छाँव कहाँ हैं..?


तुम महेश्वर, तुम पिनाकी,

शशि शेखर भी तुम ही हो..

वामदेव हो,विरुपाक्ष हो,

विष्णुवल्लभ भी तुम ही हो..


उसकी चौड़ी पेशानी पर

शबनम सी बूँदें ठहरी थीं..

मेहनतकश इंसान पत्थर

तोड़ने में पिघल रहा था..


ऊपरवाले के हवाले जिसने जिंदगी जी है..

किस बात की उसने फिर फिक्र की है..


सब्र अजीब है समुन्दर का..

बारिश में तालाब कमजोर पड़ जाते हैं पर..

बाहर आपे से समुन्दर नहीं होता है कभी..


लम्हा लम्हा करके ये वक्त

निकलता चला गया..

हालात काँटे बिछाते रहे पर,

मैं सँभलता चला गया..


रो पड़ीं तमन्नायें मेरी मुझसे लिपटकर..

उन्हें खबर थी कि उन्हें निकाल फेंका जायेगा..


रोज कुछ न कुछ नया सीखना पड़ता है..

जिंदगी के स्कूल में इतवार की छुट्टी नहीं..


चाँद की जिस खूबसूरती पर हमें गुमान है..

वो चाँद महादेव के सिर पर विराजमान है..


हालात नहीं,पेट बनाते हैं सुकून भरे इंसानों को मेहनतकश मजदूर..

ईंटे हों या लैपटॉप,दो वक्त की उम्मीदों का थैला साथ होता है उनके..


काले अँधेरों में इक चिराग बनकर मुस्कुराया हूँ..

ऐ जिंदगी,मैं तुझसे फिर मुकाबला करने आया हूँ..


कभी गर्मी,कभी सर्दी-अजीब है ये धूप-छाँव का मौसम..

जैसे दिल से गुजर रहा हो कोई तैरते बादलों की तरह..


सुबह से सन्नाटा पसरा है शहर में..

उसकी पायल गुम हो गई है कहीं..


निर्मल,निष्काम कर्म कर,

मन से यदि शुद्ध हो गये..

"मैं" से जब अलग हुए,

तब थोड़े से बुद्ध हो गए..


सुबह की शर्तें,शाम के तजुर्बे,रात के ख्वाब..

हर पल कुछ न कुछ गिरता रहता है झोली में..

अर्चना अनुप्रिया

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