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भावों की चयनिका by Archana Anupriya


Poetry
"जंगल की संसद"
"जंगल की संसद" वन की संसद का अधिवेशन था कई झमेलों का इमरजेंसी सेशन था सारे पशु पक्षियों का मानो लगा हुआ था मेला... हर एक अपनी शिकायतों ...
Archana Anupriya
Jun 273 min read


"उल्टे-पुल्टे रंग होली के"
"उल्टे-पुल्टे रंग होली के.." 😁जोगरा सा रा रा रा..😁 बिखरे बिखरे रंग जमाने के,कैसे करें कमाल.. जज्बात सब काले हुए,रूठे रंग पीले,लाल.....
Archana Anupriya
Mar 24, 20242 min read


"हाय-हाय ये एग्जाम का भूत"
“हाय-हाय ये एग्जाम का भूत.. आजकल अजीब सा सपना आ रहा है.. ये एग्जाम तो भूत बनकर डरा रहा है.. हर रात एक सब्जेक्ट मेरी नींद उड़ाता है कभी...
Archana Anupriya
Feb 29, 20242 min read


"राजा राम और मर्यादा पति की"
"राजा राम और मर्यादा पति की" एक कुशल योद्धा बन जीत गया था वह अन्याय से अंधकार से चूर चूर कर दिया था रावण का अहंकार हर अरि ने सिर झुकाया...
Archana Anupriya
Jan 21, 20242 min read


“कौन तय करता है कि साल बदल गया?”
“कौन तय करता है कि साल बदल गया?” कुछ है जो चल रहा है हर पल क्या है वो? समय,जज्बात,धड़़कनें बेकल..? कुछ है जो ढल रहा है हर पल क्या है वो ?...
Archana Anupriya
Dec 30, 20231 min read
"श्री राम से शिकायत दीपावली के चाँद की"
"श्री राम से शिकायत दीपावली के चाँद की" दीपावली की वह अद्भुत रात थी श्री राम के अयोध्या वापसी की बात थी.. सारी धरा खुशियों से भरी थी हर...
Archana Anupriya
Nov 12, 20231 min read


"मैं भारत बोल रहा हूँ.."
"मैं भारत बोल रहा हूँ.." मैं भारत,लहराते तिरंगे की ऊँचाई से बोल रहा हूँ.. अपने दिल की बातें सभी के सामने खोल रहा हूँ.. बरसों की गुलामी के...
Archana Anupriya
Sep 10, 20231 min read


"सब्जियों की कथा.. टमाटर की व्यथा"
सब्जियों का,फलों का मेला लगा था, हर सब्जी,हर फल परेशान बड़ा था.- "ये क्या अजीब सी बात हो गयी है ? छोटे टमाटर की क्या औकात हो गयी है? ऐसा...
Archana Anupriya
Jul 22, 20232 min read


"अजीब है वर्दी वाली माँ"
"अजीब है वर्दी वाली माँ" गोद के बच्चे को दूध पिलाकर थपकी देकर,उसे सुला कर नैनी को जरूरी बात समझा कर परिवार में सबको खिला-पिलाकर निकल पड़ी...
Archana Anupriya
May 14, 20231 min read


"डिजिटल हुई किताबें"
खोने लगी है खुशबू कागज की डिजिटल तकनीकि में फंसकर.. कलम और पेंसिल उदास हैं की-बोर्ड की साजिश में उलझ कर.. बड़ी अदा से आई थी यूनिकोड और...
Archana Anupriya
Apr 23, 20231 min read


“ बचपन… एक याद”
भूलता नहीं कभी मुझे वह मस्त और सुहाना बचपन कितना सरल, कितना निश्छल वह मधुर चंचल लड़कपन..। जीवन का वह ऊषाकाल न चिंता, न कोई हलचल शिशु-मन की...
Archana Anupriya
Nov 14, 20221 min read


"सफाई"
ये कचरा नहीं है दिमाग में सब पुरानी यादों के जाले हैं उलझा कर रखा करते थे जो उन्हें साफ करके निकाले हैं.. स्वच्छता केवल घर की नहीं अपने...
Archana Anupriya
Oct 20, 20221 min read


"फुटपाथ की दीपावली"
नगर को दीप सजा रहे थे प्रकाश अमावस को लजा रहे थे.. सभी दुकानें भरी पड़ी थीं हर तरफ रौशनी की लड़ी थी.. लोग मस्ती में झूम रहे थे एक-दूजे...
Archana Anupriya
Oct 16, 20221 min read


"रावण जिंदा है..."
गूँज रहा है अट्टहास, हँस रहा है रावण- "पुतले जला रहे हैं लोग, मैं सबमें जी रहा हूँ जीवन.. कई नाम हैं मेरे कई हैं मेरे चेहरे...
Archana Anupriya
Oct 4, 20221 min read


"कर्म"
"नैतिकता जब आहत हुई, फरेब मुस्कुराने लगे.. सच्चाई जब मृत हो गई, झूठ नाचने,गाने लगे.. दौलत की भूख के आगे, सारे कर्तव्य बेकार हुए.....
Archana Anupriya
Aug 19, 20221 min read
"देशभक्ति"
हवा चली देशभक्ति की दिनभर फिर लुप्त हो गई.. बजे गाने,लगे झंडे तस्वीरों पर धड़कनें तृप्त हो गई.. अब शुरू होगा दौर मुहब्बतों का मस्तियों का...
Archana Anupriya
Aug 18, 20221 min read


"राष्ट्र-जागृति"
जन-जन इस क्षण मन में अशांत, यह सोच बुद्धि है श्रांत-क्लांत.. भारत कैसे विकसित होगा? कैसे यह नव निर्मित होगा?.. क्या है विकल्प का एक रुप?...
Archana Anupriya
Aug 13, 20221 min read


"सरहद की राखी"
जंग के लिए दुश्मन अड़ा था, सरहद पर कोई भाई खड़ा था, व्यथित थी भारत मां हमारी, मन तो दुविधा में पड़ा था... सोच रही थी वो मन ही मन-...
Archana Anupriya
Aug 10, 20221 min read


"दोस्ती"
दोस्तों की तो बात न पूछो, दूर भी हैं और साथ भी.. जब भी चाहे उन्हें बुला लो यादें भी हैं,जज्बात भी.. आँखें अगर जो बंद करो तो गुजरा हुआ पल...
Archana Anupriya
Aug 7, 20221 min read


"कुरुक्षेत्र का युद्ध जरूरी है.."
बज गई रणभेरी कुरुक्षेत्र का मैदान सजा था हाथों में गांडीव लिए अर्जुन पर मन दुविधा में पड़ा था- "अपनों से ही जंग कैसा ? दुश्मनी का ये रंग...
Archana Anupriya
Jul 17, 20221 min read


"लिव इन रिलेशनशिप"
प्यार का बंधन प्रैक्टिकल हो गया.. नये जमाने के अनुरूप ढल गया.. संवेदनाएँ निराकार हुई अब जरूरतें ही आधार हुईं अब.. बस दो शरीर हैं रहते साथ...
Archana Anupriya
Jul 7, 20221 min read


"बदलना होगा बंदरों को'
बदलना जरूरी है गाँधी जी के बंदरों को, अगर बदलना है समाज… बिखर रही है हर तरफ बुराई तो जरूरी है सुनना,आवाज रावण की,आतंक की,बुराई की ताकि...
Archana Anupriya
Jun 22, 20221 min read


"जिंदगी और अंतरात्मा का द्वन्द्व"
कल जिंदगी से उलझ पड़ी मैं बात जब उसूलों पर आयी.. काँटों का पक्ष लिया मैंने बारी जब फूलों की आयी.. समझाती रही जिंदगी मुझे फायदे व्यवहारिकता...
Archana Anupriya
Apr 19, 20222 min read


"कैकेयी का पश्चाताप"
राजा दशरथ की चहेती रानी, मैं कैकेयी बड़ी उदास हूँ.. ईश्वर को वन-वन भटकाया, मैं वो कलुष इतिहास हूँ... थी बड़ी अभागी किस्मत मेरी,विधाता ने वो...
Archana Anupriya
Feb 18, 20221 min read
"बर्फ से निकला इंसान"
कोशिश तो बहुत की कुदरत ने सफेद बर्फ की चादर से इंसानों की कालिमा ढकने की पर बर्फ थी कि जाकर इंसानी दिलों में जम गयी खामोश हो गए...
Archana Anupriya
Feb 12, 20221 min read
"हे माँ शारदे,वर दे"
" हे माँ शारदे, वर दे" हे माँ शारदे, वर दे, माँ वीणावादिनी वर दे... मुझ अज्ञानी की वाणी को, अपने संस्कारों से भरा स्वर दे, माँ वीणावादिनी...
Archana Anupriya
Feb 12, 20221 min read


"बदल रही हूँ मैं"
बहुत सह लिए, बहुत कह लिए अब अत्याचार सहना छोड़ दिया बदला है समय,बदल रही हूँ मैं अब बेचारी बन रहना छोड़ दिया हाथ तुम्हारा यदि मुझपर उठा तो...
Archana Anupriya
Sep 17, 20210 min read


"2020 की पीड़ा"
इतिहास साक्षी रहेगा मेरा सदियों तक कराहेंगे लम्हें वो जो दर्द देकर जा रहा हूँ इंसानों को और वक्त को जब भी उसकी सहोगे टीस नफरत से याद...
Archana Anupriya
Dec 28, 20201 min read
सुनो दिसम्बर..
सुनो दिसंबर, यह जो वक्त की गाड़ी तुम खींचकर यहाँ तक लाए हो बहुत भारी थी मजदूरों पर, मजबूरों पर कमजोरों पर, मजबूतों पर कितनों की कमर टूटी...
Archana Anupriya
Dec 28, 20201 min read


खुद को जानती हूँ मैं"
ऐसा नहीं है कि-- औरत हूँ तो बस नशा है मुझमें पत्नी हूँ,माँ हूँ,बहन हूँ-- इक दुआ है मुझमें… ऐसा नहीं है कि-- संगमरमर के साँचे में ढला...
Archana Anupriya
Dec 3, 20202 min read


सूर्य उपासना
है यह एक पूजा ऐसी जहाँ आस्था है एक सी.. न पंडित, न पुरोहित हो यह व्रत पूरे परिवार सहित.. न बंधन, न आडम्बर बस सूर्यदेव रहें आसमान पर.. सभी...
Archana Anupriya
Nov 21, 20201 min read
"कितने अजीब हैं हम..!"
बड़े चाव से रसोई में हम आटे की लोई से रोटी बेल कर सपनों को आकार देते हैं.. हरी, लाल सब्जियों में तड़का लगाकर, प्रेम की खुशबू से घर सँवार...
Archana Anupriya
Oct 18, 20201 min read
"बिछोह"
यह कौन रोता है रात भर रोशनी के बिछोह में पत्ते-पत्ते पर फिसलते हैं आँसू शबनम का रूप लिए सारी धरा भर जाती है दर्द की असंख्य बूँदों से......
Archana Anupriya
Oct 12, 20201 min read


"बदलना होगा बंदरों को'
बदलना जरूरी है गाँधी के बंदरों को, अगर बदलना है समाज… बिखर रही है हर तरफ बुराई तो जरूरी है सुनना,आवाज रावण की,आतंक की,बुराई की ताकि पता...
Archana Anupriya
Oct 5, 20201 min read
"अपलक निहारती.."
अपलक निहारती हूँ पानी की बूँदों को जो चमक रही थीं कल तक नर्म पत्तों पर ओस बनकर धरा की पेशानी पर थीं मेहनत का चमकता सूरज आज हवा के प्रेम...
Archana Anupriya
Oct 4, 20201 min read


"कालातीत यात्रा" (The Timeless Journey)
जीवन में यह कैसा परिवर्तन मेरी रूह की गहराइयों में उतरने लगा एक अवसर- स्वयं से मिलने का मन शांति में, आनंद में विचरने लगा... अनजान से पथ...
Archana Anupriya
Sep 29, 20201 min read


"ऐ पनिहारिन"
ऐ नार नवेली पनिहारिन गुपचुप सी तू क्या बोल रही? कुदरत के हरित आँगन में क्या जीवन संघर्ष को खोल रही ?... जीवन के घट में कर्मों के...
Archana Anupriya
Sep 28, 20201 min read
इबादत/सजदा
जब कर्मों पर पाप हो भारी, और रूह में बैठा गुनाह रहे, भला फिर कैसे हो इबादत? कैसे सजदे में निगाह रहे? मन पर नशा हो दौलत का, हर पल बस...
Archana Anupriya
Sep 26, 20201 min read


घोंसला
पक्षी अब वृक्ष पर घर नहीं बनाते हम वृक्ष हटाकर घर बनाते हैं पक्षी अब ढूँढते हैं खिड़कियाँ, रोशनदान, टूटी टोकरी, घर का कोना जिसमें रंगी...
Archana Anupriya
Sep 22, 20201 min read
"ढलती उम्र"
ढलती हुई साँझ का आकाश कितना रंगीन और सुंदर लगता है तो फिर.. ढलती उम्र की आहट बुरी क्यों लगती है..? अधूरे सपने और अनंत अधूरे अहसास पूरे...
Archana Anupriya
Sep 4, 20201 min read
"दरकते पहाड़"
गुस्से में थी पर्वत श्रृंखला फट पड़ी थी ज्वालामुखी टूट-टूट गिर रहे थे पत्थर पर्वत थे बेकल और दुःखी.. झरने बन गिर रहे थे आँसू छलनी था पर्वत...
Archana Anupriya
Aug 30, 20201 min read
"हे मंगलमूर्ति, गजानना.. "
शिव-पार्वती के लाला मंगलमूर्ति गजानना मातु की आज्ञा पालन हेतु अपना शीश भी कटा लिया.. चरणों में माता-पिता के बसते जिनके चारों धाम सिखाया...
Archana Anupriya
Aug 23, 20201 min read


"बंसी"
बांस की एक पतली सी डंडी कई छेदों के घाव लिए दर्द में पुकारती है जब अपने प्रेम परमेश्वर को साँसें बज उठती हैं उसकी धुन लहराने लगती है...
Archana Anupriya
Aug 12, 20201 min read


"श्री राम से शिकायत, दीपावली के चाँद की"
दीपावली की वह अद्भुत रात थी श्री राम के अयोध्या वापसी की बात थी.. सारी धरा खुशियों से भरी थी हर तरफ जलते दीपों की लड़ी थी.. प्रसन्नता भरे...
Archana Anupriya
Aug 5, 20201 min read
नया आदमी
आदमी पहले मशीन था दिन-रात दौड़ता भागता पत्थरों से बनीं थीं धड़कनें निष्प्राण,संवेदनहीन, बनावटी विधाता ने बंद कर लिए दरवाजे तन्हाई में फूटने...
Archana Anupriya
Aug 1, 20201 min read
प्रेमचंद- "मानसरोवर" का "हंस"
मिट्टी से जुड़ा एक विराट व्यक्तित्व दुनिया को सुनाता मिट्टी का दर्द हिन्दी-उर्दू बहनों को आपस में गले मिलाता पैबन्द से निकली धारदार...
Archana Anupriya
Jul 31, 20201 min read
“आईना”
कल जब मैंने आईना देखा, खुद को बहुत परेशाँ देखा.. थी बालों में सफेदी, और, गालों पर झुर्रियां… सोचने लगी मैं-”हाssयय ! ये मेरा अक्स है...
Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
“यादें”
दबे पाँव चली आती हैं यादें, जब भी अकेली होती हूँ… मन को साथ ले जाती हैं, उन किरदारों के बीच जो मेरे वजूद का हिस्सा रहे हैं.. मन को कुरेद...
Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
उलझन
मकड़ी की जाली सी उलझनें हैं जिंदगी की न जाने कौन सा सिरा कहाँ से शुरू होकर कहाँ खत्म हो जाता है कभी परेशान करता है मन कभी सुलझा देता है...
Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
काल
सुनाई नहीं देती काल के कदमों की चाप पर हर पल महसूस होती है कण-कण पर इसकी थाप.. सुख और दुख,हँसीऔर गम समय की सभी लीला ही तो है बेपनाह...
Archana Anupriya
Jul 26, 20201 min read
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