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MY QUOTES: 29/08/2020

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Aug 29, 2020
  • 1 min read

लफ्जों की दुकान है उसकी..

न जाने कितने दिल बिक जाते हैं वहाँ..


रोटी भी इन्सानों की फितरत पर हैरान थी..

कोई था,जो उसे सड़कों पर फेंक गया था..

और,

कोई था,जो उसे सर माथे लगा रहा था..


ख्वाहिशों को बंद करके निकलती हूँ घर से..

जब भी जरूरतें आवाज देती हैं मुझे..


आग से और अपनों से मुनासिब परहेज रखिए..

न कभी ज्यादा नजदीक जाइए,न बहुत दूर रहिए..


अंजाम तो मुअय्यन है हर आगाज का..

कुछ तो भला कर जायें इस समाज का..



अंदर तक खाली होता है उनका वजूद..

बिना आईना देखे जो खुद को खुदा समझते हैं..


थक गई है कलम भी तेरा अक्स उतारते-उतारते..

न जाने कितने शख्स छुपा रखे हैं तुमने अपने अंदर..


आदमी कहाँ हूँ मैं, नासमझ हूँ बस..

मुकम्मल आदमी बनूँगा,कई ठोकरों के बाद..


© अर्चना अनुप्रिया


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