"बहू"
- Archana Anupriya

- Jul 20, 2020
- 1 min read
दो घरों के बीच
अहसासों से बुनी
सेतु बनी मैं
मायका और ससुराल…
दो भिन्न परिवारों को
मर्यादा और प्यार की
अटूट कड़ी से जोड़ा मैंने
मानवता हुई निहाल…
कई दिलों की धड़कनें
और जज्बात
एकाकार करती हूँ मैं
अलगाव का नहीं सवाल…
कभी बेटी हूँ,कभी हूँ बहू
घर-संसार की धुरी रहूँ
गृहस्थी की गाड़ी का
अहम् पहिया हूँ
सबका करुँ ख्याल…
सास-ससुर ही माँ-बाप हैं
भाई-बहन हैं देवर-ननद
बेटी बनकर देखा है मैंने
बजे दोनों हाथों से ताल…
अपना लिया है सबकुछ मैंने
कुछ ढाल लिया,कुछ ढल गई हूँ
दुनिया में है सबसे प्यारा
मुझे मेरा ससुराल...
सौजन्य : पुस्तक "और खामोशी बोल पड़ी",
वनिका पब्लिकेशन


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