"जंगल की संसद"
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"जंगल की संसद"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Jun 27
  • 3 min read

           "जंगल की संसद"


वन की संसद का अधिवेशन था 

कई झमेलों का इमरजेंसी सेशन था 

सारे पशु पक्षियों का मानो

लगा हुआ था मेला...

हर एक अपनी शिकायतों 

के साथ था आग बबूला…


श्वान-

एक श्वान था बड़ा ही परेशान 

किसी ने कह दिया था उसे, "इंसान" 

वह बिफरा हुआ था, था आग बबूला 

बड़ा तमतमा कर गुस्से में बोला- 

"ऐसी गाली सुनूँ, 

इतना मैं मजबूर नहीं 

कोई मुझे इंसान कहे, 

कतई मुझे मंजूर नहीं 

इंसान मुझ जैसे कहाँ हैं भला? 

उनका मुझसे कैसा मुकाबला? 

आज्ञाकारी हूँ, वफादार हूँ मैं 

कहाँ उनके जैसा गद्दार हूं मैं?

मैं जिसकी रोटी खाता हूँ 

उससे वफा निभाता हूँ..

इंसानों की फितरत तो देखो, 

कितनी बात है, हैरत की देखो, 

जिस की थाली में खाता है 

उसी में छेद कर जाता है 

देखा है उनका वह नीच मंजर 

गले लगा कर चुभाते हैं खंजर 

नहीं बनना इंसान मुझे माफ करो 

ऐ सिंह महोदय, मेरे साथ इंसाफ करो 

बहुत आहत हूँ इस नीच संबोधन से 

जी चाहे खुदकुशी कर लूँ

छूट जाऊँ इस बंधन से.."


कौए, सियार, बंदर ,सांप 

सभी अड़े थे..

इस मुसीबत की घड़ी में 

सभी श्वान के साथ खड़े थे..


कौआ -

कौए का नेता आगे आया 

सबके समक्ष एक प्रण उठाया 

"पितरों के रूप में अब नहीं जाएंगे 

इंसानों का दिया पिंड 

हम नहीं खाएंगे 

संतान अब मां बाप पर अत्याचार करती है 

धन दौलत के लिए उनकी 

भावनाओं का व्यापार करती है 

इंसानों के उद्धार से हम इनकार करते हैं 

हर श्राद्ध का हम सामूहिक बहिष्कार करते हैं..


सियार-

सियार भी आगे आकर बोला 

इंसानों की मानसिकता का भेद खोला-

"हमने कभी कोई साजिश नहीं की 

फिर क्यों हमें वे धूर्त कहते हैं?

छल, प्रपंच,साजिशों में खुद है माहिर 

और 'धूर्त सियार' का पाठ पढ़ते हैं ?

खुद वे फरेबी काम करते हैं, 

हमारा नाम लेकर हमें बदनाम करते हैं?

हमारे जुल्मों की एक भी मिसाल 

जरा जवाबों में बता दें 

अन्यथा 'धूर्त सियार' जैसा पाठ 

सारी किताबों से हटा दें…"


बंदर-

तभी बंदर उछल कर आगे आया 

अपने हाथ में कुछ दस्तावेज लाया 

सिंह के सामने रखकर बोला 

युगों से छुपे दर्द को खोला-

"हमें अपना पूर्वज कहते हैं, 

तो साक्ष्य बताएं..

हम कब इंसान जैसे शातिर थे 

प्रत्यक्ष दिखाएं..

हम चंचल हैं पर 

उन जैसे दुष्ट नहीं हैं

मदद की है उनकी, 

मन के कलुष नहीं हैं 

हमारी स्थिति पर भी 

अब चिंतन कीजिए

क्यों हमें पूर्वज कहा गया

परीक्षण कीजिए…"

 

सांप-

सांप के नेता ने भी सर उठाया 

बुझे मन से अपना दुखड़ा सुनाया 

घर छीन लिया हमारा इंसानों ने 

हर साँप पड़ गया अब अकेला है 

आस्तीनों में भी मानव है अब 

रहने का बड़ा झमेला है 

हमारे केंचुली मंद पड़ गए 

मानव केंचुल ही चमकीला है 

जहर भी हमारे नाकाम हुए हैं 

अब मानव ही जहरीला है.."


सुनकर सब की ऐसी वाणी 

शुरू हो गया जबरदस्त कोलाहल 

सभी को इंसान से शिकायत थी 

सबको चाहिए था समस्या का हल 

सारे उठ-उठकर 

अपनी शिकायत करने लगे 

इंसानों के विरुद्ध 

चिल्ला चिल्लाकर जहर उगलने लगे...


देख संसद की व्यवस्था होती भंग 

सिंह गर्जा,दिखाया अपना रंग 

वातावरण में सिंह का क्रोध बहने लगा 

हुंकार भरकर सिंह क्रोध में कहने लगा- 

"सब इंसान की तरह 

बनने से इनकार करते हो 

और यहां सब उसी की भांति 

व्यवहार करते हो..? 

दुर्व्यवहार नहीं चलेगा मेरी संसद में 

सबको रहना पड़ेगा मर्यादा की हद में 

इंसानों का प्रपंच यहां 

पनपने नहीं दूंगा मैं 

हमारे प्यारे जंगल को इंसानों का 

शहर नहीं बनने दूंगा मैं…"

 

सारे पशु पक्षियों ने 

एकमत से स्वीकार किया-

"जंगल में ही शांति है, भाईचारा है 

इसे शहर बनाने से इनकार किया 

इंसानों की तुलना में तो 

जानवर ही सच्चा है 

उनके शहरों के आडंबर से तो 

हमारा जंगल ही अच्छा है.."।


© अर्चना अनुप्रिया

सौजन्य -"और खामोशी बोल पड़ी"

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