“आईना”
- Archana Anupriya
- Jul 26, 2020
- 1 min read
कल जब मैंने आईना देखा,
खुद को बहुत परेशाँ देखा..
थी बालों में सफेदी,
और, गालों पर झुर्रियां…
सोचने लगी मैं-”हाssयय !
ये मेरा अक्स है क्या…?
उम्र हो गयी इतनी,
या, आईना बदल रहा है?
जवां-जवां सा दिल मेरा,
बुढ़ापे में ढल रहा है..?
फिर खुद समझाया दिल को-
“अब आईना नहीं रहा वो,
बदल गया है, जमाने-सा,
देखो, चेहरा दिखाए कैसा..?”
बरसों पहले देखा था,
तब मैं कितनी सुंदर थी..
जलता है आईना मुझसे,
अब समझी बात अंदर की..
बालों की ये सफेदी,
आसान कहाँ है पाना..?
आती है समझदारी से,
क्यों कहें उम्र का जाना..?
गालों पर उभरी लाइन,
हैं तजुर्बों के ही साइन..
आँखों में बसे जब मोतियाँ,
क्यों कहें उसे हम झुर्रियाँ..?
बड़ा बेवफा निकला आईना,
जरा भी लाज इसे आयी ना..
इसे इतना सँभाल के रखा,
फिर भी देता है धोखा..
दोस्त मेरे, अब सुन लो,
समय आ गया है, सँभल लो..
चाहे तो ‘बुड्ढा’ कहलाओ,
या फिर,आईना ही बदल दो..
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