"गरबा"
- Archana Anupriya
- Jul 28, 2020
- 3 min read
सुबह से ही परेशान थी रितु।कल शाम को ही डॉक्टर को दिखाया था...जांच के लिए सैंपल दिए गए थे। आज रिपोर्ट आने वाली थी... "अगर कुछ ऐसी वैसी रिपोर्ट आई तो क्या जवाब देगी वह सबको..?"रितु मन ही मन घबरा रही थी। इधर कुछ दिनों से उसकी तबीयत बार-बार खराब हो रही थी। भूख नहीं लगती थी,रह-रहकर मिचली सी हो रही थी।
अभी कुछ दिनों पहले ही नवरात्रि के गरबे में अमित से उसकी मुलाकात हुई थी। धीरे-धीरे गरबा-नृत्य की दोस्ती में प्रगाढ़ता आई और दोनों छुप-छुप कर मिलने लगे ।जब तक नवरात्रि का गरबा दशहरे तक समाप्त होता, दोनों ने अपनी-अपनी सीमाएं पार कर ली थीं... और अब यह तबीयत खराब का सिलसिला...रितु तो मानो पागल हुई जा रही थी।बार-बार मंदिर जाकर भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान कोई ऐसी वैसी रिपोर्ट ना जाए... मेरे माता-पिता किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे... मैं सबको क्या जवाब दूँगी...। रितु को याद आया कि माँ हमेशा कहती थीं.."नवरात्रि का गरबा ईश्वर की आराधना है न कि मौज उड़ाने का कार्यक्रम….मंत्रों से स्थापित गरबा और भजन तथा दुर्गा मां के गीतों पर गरबे के चारों और किए गए नृत्य से हम देवी की पूजा करते हैं... गरबे के बहुल छिद्रों से निकलने वाले दिये के प्रकाश को हम देवी के आशीर्वाद का प्रकाश मानते हैं और उसके चारों ओर घूम-घूम कर नृत्य करके देवी को धन्यवाद देते हुए उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करते हैं ताकि देवी मां हमेशा हमारे जीवन को ज्ञान और शक्ति से प्रकाशित करती रहें।...मूलतः गुजरात की संस्कृति से निकला यह भक्ति प्रदर्शन अब अलग अलग तरीके से लिया जाने लगा है।फूहड़ गीतों पर नृत्य करके आजकल के बच्चों ने इसे मौज उड़ाने का माध्यम बना लिया है... गरबा के असल महत्व को न समझ कर गरबा के नाम पर फैशन परेड और अनैतिक गतिविधियों में मशगूल हो जाते हैं….गरबा उनके लिए देवी की पूजा न होकर मनमानी करने का बहाना होने लग गया है... यह ठीक नहीं...गरबा नृत्य का नहीं वरन् छिद्र युक्त उस घट का नाम है, जिसके अंदर हम दुर्गा मां की शक्ति का दीपक जलाते हैं...पर आजकल के बच्चों को पूजा-भक्ति जैसी चीजों पर तो विश्वास ही नहीं है... इसे क्या कहूँ..?"
रितु की आंखों में पानी भर आया…"कितना लड़ी थी वह माँ से बैकलेस "चणिया -चोली" खरीदने के लिए...दो दिनों तक भूख हड़ताल की थी तब जाकर माँ ने परमिशन दी थी.. सचमुच मैंने नवरात्रि के गरबे को अपनी मनमानी का जरिया बना लिया... देवी माँ का तो ख्याल ही नहीं आया इन नौ दिनों में…"।
तभी फ़ोन की घंटी बज उठी। रितु तो बिल्कुल घबरा गई। सामने डॉ की आवाज थी--"सब ठीक है... लगता है तुम ने कुछ ऐसा वैसा खा लिया होगा.. जबरदस्त फूड पॉइजनिंग है...दवा भेज रही हूँ.. समय से ले लेना और बाजारू चीजें मत खाना"... और फिर फोन कट गया। रितु दुर्गा माँ की तस्वीर के सामने रखे छोटे से गरबे के पास जाकर सिर झुका कर रोने लगी…" देवी मां आपने मुझे रास्ता दिखा दिया... मैं गरबे का मतलब अच्छी तरह समझ गई हूँ और आने वाले समय में अपने सभी दोस्तों को भी गरबे की शक्ति और भक्ति के लिए जागृत करूँगी…. गरबा का बिगड़ता स्वरूप संभालना जरूरी है…।"
रितु ने अपना सिर उठाया तो देखा-- तस्वीर में दुर्गा माँ मुस्कुरा रही थीं और नन्हें से गरबे से छनकर दीपक की लौ उसके चेहरे को रोशन कर रही थी।
अर्चना अनुप्रिया
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