उलझन
- Archana Anupriya
- Jul 26, 2020
- 1 min read
मकड़ी की जाली सी
उलझनें हैं जिंदगी की
न जाने कौन सा सिरा
कहाँ से शुरू होकर
कहाँ खत्म हो जाता है
कभी परेशान करता है मन
कभी सुलझा देता है गांठे
मन की सोच,हाथों के कर्म
कभी प्रेम, दर्शन की बातें
लगे रहते हैं सुलझाने में
अनंत उलझनें नित नयी
कभी अपनों की,कभी सपनों की
कोई उलझन है मंजिल की
कोई दर्द भरे दिल की
रास्तों के मोड़ उलझाते कभी
कभी यादें उलझाती हैं
प्यार भरी जिंदगी की रोशनी
सभी उलझनें सुलझाती है
ऐसे ही चलता है जीवन
हर पल व्यस्त रहता है मन
उलझनें जीवन में न हो अगर
नीरसता छा जाएगी
तूफां से लड़कर जीतेगी जिंदगी
तभी तो खुशियाँ पाएगी
उलझनों के सहारे ही तो
जीवन आगे बढ़ता है
रूहें परिपक्व होती हैं जब
तभी मोक्ष का सूरज चढ़ता है..
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