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"कर्म"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Aug 19, 2022
  • 1 min read

"नैतिकता जब आहत हुई,

फरेब मुस्कुराने लगे..

सच्चाई जब मृत हो गई,

झूठ नाचने,गाने लगे..

दौलत की भूख के आगे,

सारे कर्तव्य बेकार हुए..

'बेचारगी' का चोला ओढ़ा,

फिर,आँसुओं ने व्यापार किए..

गढ़ी कहानी झूठ ने अपनी,

दुनिया को गुमराह किया..

जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा,

और साजिश बेपनाह किया..

रिश्तों की बोली लगायी,

वसीयत अपने नाम किया..

रिश्ते-नाते चूल्हे में डालकर,

स्वार्थ ने अपना श्रृंगार किया..

नेकी की जब आँखें  नम हुईं,

स्वार्थ बड़े खुश हो गए..

खुद से अपनी आरती उतारी,

फिर, फरेब निरंकुश हो गए..।


न्याय सब कुछ देख रहा था,

वक्त भी था खामोश अब तक..

सब्र भाँप रहा था चुप से,

फरेब की है हद कहाँ तक.. ?

आशा ने जब ऊपर देखा,

कृष्ण खड़े मुस्कुरा रहे थे..

"मैं हूँ सच के साथ सदा ही,

तुम नाहक ही घबरा रहे थे..

झूठ,फरेब, साजिशें, कुचक्र,

कभी काम नहीं आयेंगे..

न 'शकुनि' रहेगा, न 'दुर्योधन',

पांडव ही अंततः जीत पायेंगे..

बिना कर्तव्य,अधिकार जहर है,

कर्म न हो तो जीवन कहर है..

किसने कब क्या कर्म किया है?

मैं भूलूंगा नहीं, सब याद रखूँगा..

यह कहानी भी मैंने रची है,

इसका अंत भी मैं ही लिखूँगा...।"

©अर्चना अनुप्रिया



             

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