"अपलक निहारती.."
- Archana Anupriya

- Oct 4, 2020
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अपलक निहारती हूँ
पानी की बूँदों को
जो चमक रही थीं कल तक
नर्म पत्तों पर ओस बनकर
धरा की पेशानी पर थीं
मेहनत का चमकता सूरज
आज हवा के प्रेम में
घुल मिल गई हैं उससे
मिटा दिया अपना अस्तित्व
चाहती थीं संग रहना उसके
बना दिया बादल उसे
पहुँचा दिया गगन पर
नभ पर पहुँचते ही
साथ छोड़ दिया बादल ने
गिरा दिया अपने आगोश से
दफन हो गई बूंदे धरा में
मिट गया उनका वजूद
पर फिर भी हार नहीं मानी
बहने लगीं नदी बनकर
खिलाने लगीं असंख्य बीज
अपलक निहारती हूँ उन्हें
न जाने क्यों इन बूँदों में
मुझे एक औरत दिखाई दे रही...
अर्चना अनुप्रिया।।


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