इबादत/सजदा
- Archana Anupriya

- Sep 26, 2020
- 1 min read
जब कर्मों पर पाप हो भारी,
और रूह में बैठा गुनाह रहे,
भला फिर कैसे हो इबादत?
कैसे सजदे में निगाह रहे?
मन पर नशा हो दौलत का,
हर पल बस स्वार्थ ही चाह रहे,
जब अहं में डूब जाये इन्सां तो,
कैसे सजदे में निगाह रहे?
जरूरी है गुरूर का झुकना,
सच्ची इबादत है इन्सानियत,
जब कर्म और मन सच्चे हों,
तभी तो है खुदा की रहमत।
ऐ इन्सान, तू आज समझ ले,
समर्पण से ही भक्ति है,
सच्ची रूह जब सजदा करेगी,
तभी जन्मों से मुक्ति है।
©अर्चना अनुप्रिया


Comments