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"ऐ पनिहारिन"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Sep 28, 2020
  • 1 min read

ऐ नार नवेली पनिहारिन

गुपचुप सी तू क्या बोल रही?

कुदरत के हरित आँगन में क्या

जीवन संघर्ष को खोल रही ?...


जीवन के घट में कर्मों के

धवल-श्याम मोती भर के

ले आ भवसागर के तल से

पर मुक्ति मिलेगी तर करके...


ले साथ खड़ी जिस घटको तू

वह मिट्टी का घट माया है

अंदर का तत्व है अजर अमर

जो क्षणभंगुर है, काया है...


सुख के, दुख के दो पाटों में

हर जीवन पिसता रहता है

सत्कर्म करो, दुष्कर्म करो

कुछ है,जो रिसता रहता है...

ओ ललना,तुझी से आशा है अब

स्त्री ही सृजन की शक्ति है

भर ला इस जीवन के घट में

वह जो बस प्रेम-अभिव्यक्ति है...


प्रेम ही दूर करेगा घृणा और

नकारात्मकता, दुष्कर्म,दुष्चरित्र

वसुधा ही जब कुटुम्ब बनेगी

आत्माएँ तभी होंगी पवित्र...

©अर्चना अनुप्रिया


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