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"ओलम्पिक में भारतीय महिलाएं"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Aug 30, 2024
  • 9 min read

     

हर क्षेत्र में मजबूत कदम रखती और आत्मविश्वास के साथ सफलता की सीढ़ियां चढ़ती महिलाएं खेलकूद की दुनिया में भी तेजी से शीर्ष पर आती दिखने लगी हैं ।प्रतियोगिता चाहे क्षेत्रीय स्तर की हो, राष्ट्रीय स्तर की हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर की.. हर तरफ स्त्री अपनी पुरजोर उपस्थिति दर्ज कर रही है। फ्रांस के पेरिस में हुए 2024 के ओलंपिक खेल प्रतियोगिता में भी भारतीय स्त्रियों का प्रदर्शन शानदार रहा। विश्व के अन्य देशों से स्त्रियों ने अच्छा प्रदर्शन तो किया ही, भारतीय स्त्री खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी बहुत उम्दा रहा। इस ओलंपिक में भारत की तरफ से पदकों का खाता ही खोला भारत की स्त्री शूटर खिलाड़ी मनु भाकर ने। एक ही ओलंपिक में एक साथ दो कांस्य पदक प्राप्त करने वाली वह पहले भारतीय स्त्री खिलाड़ी बनीं।


26 जुलाई से 11 अगस्त तक चलने वाले फ्रांस ओलंपिक प्रतियोगिता 2024 में देश के लिए पदक और गौरव हासिल करने के लिए पेरिस गए दल में कुल 117 भारतीय एथलीट शामिल थे।भारत ने पेरिस 2024 ओलंपिक में कुल मिलाकर छह पदक जीते, जिसमें एक रजत और पांच कांस्य शामिल रहे।मनु भाकर ने पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत के लिए पहला पदक जीता। उन्होंने कांस्य पदक जीता और ओलंपिक शूटिंग पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। सरबजोत सिंह के साथ मिश्रित टीम 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीतने के बाद उन्होंने ओलंपिक के एक ही संस्करण में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय बनकर इतिहास रच दिया।


मनु भाकर का जन्म 18 फ़रवरी 2002 में राजस्थान  में हुआ था। उन्होंने पेरिस ओलंपिक 2024 की 10 मीटर एयर पिस्टल प्रतिस्पर्धा और 10 मीटर मिक्सड डबल्स में कांस्य पदक जीता है।वह एक ही ओलंपिक में दो पदक जीतने वाली इकलौती एथलीट बन गयी हैं ।2018 के आईएसएसएफ वर्ल्ड कप में उन्होंने भारत के लिए दो स्वर्ण पदक जीते थे। इस प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली वह भारत की सबसे कम उम्र की स्त्री हैं।मनु ने महज 16 साल की उम्र में 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में एयर पिस्टल स्पर्धा में दो स्वर्ण जीते हैं।युवा अवस्था में ही मनु भाकर रैंकिंग के माध्यम से भारत की शूटिंग स्टार बन गई।यूं तो भारत का हरियाणा राज्य मुक्केबाजों और पहलवानों के नाम से जाना जाता है, परंतु  यहीं से निकलकर मनु ने शूटिंग प्रतियोगिता में इतिहास रचा है। हरियाणा की मिट्टी से निकले एथलीटों ने पूरी दूनिया में अपना परचम फहराया है।हरियाणा के झज्जर में जन्मीं मनु भाकर ने स्कूल के दिनों में टेनिस, स्केटिंग और मुक्केबाजी मुकाबलों में हिस्सा लिया था। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाली 'थान टा' नामक एक मार्शल आर्ट में भी भाग लिया था।14 साल की उम्र में उन्होंने शूटिंग में अपना करियर बनाने का फैसला किया। उस वक्त रियो ओलंपिक 2016 खत्म ही हुआ था। इसके एक हफ्ते के अंदर ही उन्होंने अपने पिता से शूटिंग पिस्टल लाने को कहा।उनके हमेशा साथ देने वाले पिता राम किशन भाकर ने उन्हें एक बंदूक खरीदकर दी। वो एक ऐसा फैसला था जिसने एक दिन मनु भाकर को ओलंपियन बना दिया।2017 की राष्ट्रीय शूटिंग चैंपियनशिप में मनु भाकर ने ओलंपियन और पूर्व विश्व नंबर वन हीना सिद्धू को चकित करते हुए 242.3 के स्कोर के साथ एक नया रिकॉर्ड बनाया। इसी  की बदौलत उन्होंने 10 मीटर एयर पिस्टल के फाइनल में हीना को हरा दिया।आज भारत में हर जुबान पर उनका नाम है और विश्व पटल पर शूटिंग खेल के क्षेत्र में भारत की स्त्री शूटर का नाम दर्ज है।


खिलाड़ियों के ओलंपिक से लौटने के बाद उनका और उनके द्वारा अन्य भारतीयों का खेल के प्रति हौसला बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाले पंद्रह खिलाड़ियों से मुलाकात की। इसमें पद्मश्री तीरंदाज दीपिका कुमारी भी शामिल थीं।दीपिका 27 जून को पेरिस में आयोजित ‘तीरंदाजी विश्वकप’ (स्टेज 3) में तीन गोल्ड मेडल जीतकर वर्ल्ड रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गई हैं। हालांकि, पेरिस के ओलम्पिक प्रतियोगिता में भारतीय महिला तीरंदाज दीपिका कुमारी को दक्षिण कोरिया की  सुहयोन से 2-6 से क्वार्टरफाइनल में हार मिली और पेरिस ओलम्पिक में तीरंदाजी प्रतियोगिता में भारत को कोई स्थान नहीं मिल पाया, परंतु दीपिका कुमारी ने पहला सेट 28-26 से जीत कर शानदार शुरुआत की। यह अलग बात है कि इसके बाद कोरियाई खिलाड़ी ने पलटवार करते हुए दूसरा सेट 28-25 से जीत कर स्कोर 2-2 से बराबर कर दिया।भारतीय तीरंदाज ने एक बार फिर सटीक निशाना साधते हुए 29-28 से करीबी मुकाबला जीता और 4-2 की बढ़त हासिल कर ली।लेकिन, इसके बाद दक्षिण कोरियाई खिलाड़ी ने लगातार दो सेट जीत कर मैच को 6-4 से अपने नाम कर लिया।इससे पहले, पूर्व विश्व नंबर वन,दीपिका कुमारी ने पेरिस 2024 ओलंपिक में महिलाओं के व्यक्तिगत 16 तीरंदाजी मैच में जर्मनी की मिशेल क्रॉपेन को 6-4 से हराया था।तीरंदाज दीपिका कुमारी झारखंड राज्य से आती हैं और उन्होंने देश ही नहीं विदेशों में भी भारत के झारखंड राज्य का नाम रोशन किया है।वह बताती हैं कि उन्हें आम पसंद थे और वह उस पर निशाना लगाया करती थीं। बांस के तीर-धनुष से प्रैक्टिस करती थीं। बचपन में दीपिका कुमारी अपने गांव में पेड़ों पर लदे आमों पर निशाना लगाया करती थीं। निशाना इतना अचूक होता था कि उनके साथी हैरान रह जाते थे। पेड़ की जिस शाखा के आम को तोड़ने के लिए कहा जाता था,वह उनके निशाने से सीधे नीचे आ टपकता था। धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि वह तो तीरंदाजी के लिए ही बनी हैं। दीपिका कुमारी ने बांस के तीर-धनुष लेकर ही अभ्यास शुरू कर दिया था।झारखंड की राजधानी रांची में जन्मी दीपिका कुमारी ने देश ही नहीं, विदेशों में भी अपने राज्य का नाम रोशन किया है। गरीबी में अपना बचपन बिताने वाली दीपिका के पिता रांची में ऑटो चलाते हैं। दीपिका ने कई प्रतियोगिताओं में निशानेबाजी प्रतिस्पर्धा में पदक जीते हैं। बिल्कुल निचले पायदान से निशानेबाजी के खेल में शुरुआत करने वाली दीपिका आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की शीर्ष खिलाड़ियों में से एक हैं।दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला, जब उन्होंने अर्जुन आर्चरी अकादमी जाॅइन की। तीरंदाजी में उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 2006 में हुई,जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी जॉइन की और यहां तीरंदाजी के गुर सीखे। इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा मैक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में कम्पाउंड एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं। यहां से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नम्बर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया।


वैसे तो पेरिस ओलम्पिक में भारतीय स्त्री टीम ने अपनी पुरजोर उपस्थिति दिखाई परंतु,सभी  खेलों में सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा बना विनेश फोगाट का पचास किलोग्राम की कुश्ती प्रतियोगिता में मात्र सौ ग्राम से ओवरवेट होना और इस वजह से कुश्ती प्रतियोगिता से उनका बाहर कर दिया जाना।यह सौ ग्राम एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों पर इतना भारी पड़ा कि विनेश ने अपने सभी प्रयासों के बावजूद प्रतियोगिता से बाहर कर दिये जाने पर दुखी मन से महिला कुश्ती से संन्यास लेने तक की घोषणा तक कर दी और भारत एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रतिभाशाली महिला खिलाड़ी के खेलने से वंचित हो गया।पेरिस ओलंपिक-2024 में विनेश ओवरवेट होने के कारण 50 किलोग्राम भारवर्ग में डिसक्वालिफाई कर दी गईं थीं।”कुश्ती जीत गई, मैं हार गई....’’ डिसक्वॉलिफिकेशन के बाद विनेश फोगाट रेसलिंग को अलविदा कहते हुए रो पड़ी थीं।इस फैसले के खिलाफ भारतीय की इस खिलाड़ी ने कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स में अपील भी की थी। काफी इंतजार के बाद सीएएस से विनेश के मामले पर सकारात्मक फैसले की उम्मीद जगी भी थी परन्तु, अंततः परिणाम नकारात्मक ही रहे और विनेश ने दुखी मन से संन्यास लेने की घोषणा कर  दी।सेमीफाइनल में जीत के बाद विनेश फोगाट ओलंपिक के फाइनल में जगह बनाने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनी थीं। फाइनल से एक रात पहले विनेश का वजन 2 किलो अधिक था। ऐसे में उन्‍होंने रात भर अथक मेहनत की और वजन घटाया फिर भी वह 100 ग्राम से चूक गईं।विनेश फोगाट ने 50 कि.ग्रा. वेट कैटेगरी में 3 मैच खेले। प्री-क्वार्टर फाइनल में उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक की चैंपियन यूई सुसाकी को हरा दिया। क्वार्टर फाइनल में उन्होंने यूक्रेन और सेमीफाइनल में क्यूबा की रेसलर को पटखनी दी। विनेश फाइनल में पहुंचने वालीं पहली ही भारतीय महिला रेसलर बनीं थीं।सेमीफाइनल तक 3 मैच खेलने के बाद उन्हें प्रोटीन और एनर्जी के लिए खाना खिलाया गया, जिससे उनका वजन 52.700 किग्रा तक बढ़ गया।भारतीय ओलिंपिक टीम के डॉक्टर, डॉ. दिनशॉ पारदीवाला के मुताबिक विनेश का वेट वापस 50KG पर लाने के लिए टीम के पास सिर्फ 12 घंटे थे। विनेश पूरी रात नहीं सोईं और वजन को तय कैटेगरी में लाने के लिए जॉगिंग, स्किपिंग और साइकिलिंग जैसी एक्सरसाइज करती रहीं। विनेश ने अपने बाल और नाखून तक काट दिए थे। उनके कपड़े भी छोटे कर दिए गए थे।सुबह दोबारा से विनेश के वजन की जांच की गई। इसके बाद नियमानुसार सिर्फ 15 मिनट मिले, लेकिन इतने कम समय में विनेश का वजन घटाकर 50KG तक नहीं लाया जा सका। लास्ट में जब वेट किया गया तो विनेश का वजन तय वजन-सीमा से 100 ग्राम अधिक निकला।ओलिंपिक कमेटी के फैसले के बाद विनेश की तबीयत बिगड़ गई।उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।सोशल मीडिया पर  विनेश ने 5 लाइनों की पोस्ट में लिखा- "मां कुश्ती मेरे से जीत गई,मैं हार गई। माफ करना.. आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके। इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2001-2024, आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी। ...माफी।" सोशल मीडिया पर उनके इस कथन ने मानो एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों को तोड़ कर रख दिया।विनेश के पक्ष में दुआओं की जैसे बाढ़ सी आ गई।सबने एक मत से उन्हें अपना हीरो माना और उनके लिए प्रार्थनायें कीं।


विनेश ज‍िस फोगाट पर‍िवार से आती हैं, उस पर‍िवार की 6 बेटियों में से हरेक ने भारत का नाम कुश्ती में रोशन किया है। विनेश फोगाट के ताऊ और गुरु महावीर फोगाट की कहानी 'दंगल' फ‍िल्म में दिखाई जा चुकी है। फोगाट को उनकी कोचिंग की वजह से भारत सरकार द्रोणाचार्य सम्मान भी दे चुकी है।फोगाट रेसलर स‍िस्टर्स की बात की जाए तो इनमें गीता, बबीता, प्रियंका, रितु, विनेश और संगीता हैं। इनमें गीता, बबीता, रितु और संगीता पूर्व पहलवान और कोच महावीर सिंह फोगाट की बेटियां हैं।वहीं प्रियंका और विनेश का पालन-पोषण महावीर ने किया था। व‍िनेश ने अपने पिता राजपाल को 9 साल की उम्र में खो दिया था। महावीर फोगाट विनेश के ताऊ हैं और उन्होंने ही अपने भाई की बेटियों को संभाला।


विनेश फोगाट की सिल्वर मेडल देने की याचिका को कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) यानी खेल कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

हालांकि उनके मेडल को लेकर फैसला करने वाली ज्यूरी के 5 में से 3 मेंबर इस बात से सहमत थे कि विनेश को सिल्वर मेडल देना चाहिए।

वहीं, बाकी दो सदस्यों का मानना था कि एक खिलाड़ी के लिए व्यवस्था में बदलाव का अर्थ होगा कि अन्य खिलाड़ियों को उसके लाभ से वंचित किया गया।इस बारे में विश्व कुश्ती संघ को पूछा गया लेकिन उन्होंने एक रेसलर के लिए नियम बदलने से इनकार कर दिया। हालांकि अब खेल कोर्ट नियमों में बदलाव के लिए सिफारिशी ड्राफ्ट तैयार कर रहा है, जिसे विश्व कुश्ती संघ को भेजा जाएगा।इस फैसले के बाद पहलवान बजरंग पूनिया ने लिखा- माना पदक छीना गया तुम्हारा इस अंधकार में, हीरे की तरह चमक रही हो आज पूरे संसार में। विश्व विजेता हिंदुस्तान की आन बान शान रूस्तम ए हिंद विनेश फोगाट आप देश के कोहिनूर हैं। विनेश के ताऊ महावीर फोगाट ने कहा है कि हम विनेश का गोल्ड मेडलिस्ट की तरह की स्वागत करेंगे। जिस खिलाड़ी के साथ इतने बड़े स्तर पर ऐसा बर्ताव हो जाता है, वह खिलाड़ी संन्यास जैसा फैसला ले लेता है। पेरिस से लौटने पर विनेश को पूरा परिवार मनाएगा और 2028 के ओलिंपिक के लिए तैयारी शुरू करेंगे।


खेल के क्षेत्र में, महिलाओं ने हर बाधाओं को तोड़ते हुए और सामाजिक नियमो को चुनौती देते हुए काफ़ी प्रगति की है। प्रगति के बावजूद भी  महिला खिलाड़ियों को असंख्य चुनौतियों और पुराणी सामाजिक सोच का सामना करना पड़ रहा है जो खेल उन्नति और मान्यता में बाँधा हैं।खेलों में महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है,वेतन का फर्क।महिला एथलीटों को अक्सर  पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में काफ़ी कम वेतन मिलता है, यहां तक कि समान खेलों में भी यह असमानता दिखाई देती है।यह कृत्य न केवल पुरानी और गलत सामाजिक सोच को दर्शाता है, बल्कि महिलाओं के लिए खेल का करियर बनाए रखने में भी चल्लेंजिंग बन जाता है, जिससे उनकी एथलेटिक गतिविधियों पर पूरी तरह ध्यान केंद्रित करने की पावर खतम होती रहती है।पुरुष एथलीटों की तुलना में महिला एथलीटों को लगातार मीडिया कवरेज की कमी का अनुभव होता है। मुख्य खेल आयोजनों में पुरुषों की प्रतियोगिताओं को ज़्यादा मान दिया जाता  है।महिलाओं की प्रतियोगिताओं को कई बार नकार दिया जाता है। लिमिटेड प्रदर्शन के कारण महिला एथलीटों के लिए अपना व्यक्तिगत ब्रांड बनाना,स्पोंसर्स को आकर्षित करना और अपनी वह पहचान हासिल करना मुश्किल हो जाता है जिसकी वे हकदार हैं।खेलों में पुरानी और गलत सामाजिक सोच भी स्त्री खिलाड़ियों की प्रगति में बाधा डालती आ रही है। यह प्रचलित धारणा कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में शारीरिक रूप से कमजोर या कम कॉम्पिटिटिव  हैं, नकारात्मक सोच को कायम करने में योगदान करती हैं,जिनका महिलाओं को खेल में सामना करना पड़ता है। ये बाधाएँ न केवल महिला एथलीटों के लिए उपलब्ध अवसरों को प्रभावित कर सकती हैं, बल्कि समाज द्वारा उन्हें देखे जाने के तरीके को भी प्रभावित कर सकती हैं।कई खेलों में, महिलाओं को अभी भी ट्रेनिंग  सुविधाओं, खेल सामानों और संसाधनों के मामले में असमान अवसरों का सामना करना पड़ता है। इस  असमानता से महिला एथलीटों की ग्रोथ और विकास सीमित हो जाती है। इसके अलावा ,कोचिंग और नेतृत्व भूमिका में महिला लीडरशिप  की अनुपस्थिति एक ऐसी सोच को कायम रखती है जो खेलों में महिलाओं के सामने आने वाली  जरूरतों और चुनौतियों का समाधान करने में नाकाम  रहती है।महिला एथलीट्स को कई बार उनकी सामाजिक स्थिति से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे अक्सर स्त्री कार्यो से संबंधित पुरानी सोचों और उस सोच के दबाव में होती हैं, जिससे उनकी शारीरिक छवि के बारे में चिंता हो सकती है। इससे उनकी मानसिक और भावनाओ पर भी असर पड़ सकता है। खेल कौशल के अलावा, दिखावे पर जोर देने वाली यह मान्यता खेल में महिलाओं के लिए प्रॉब्लम बनी रहती है, जिससे उनकी उपलब्धियों और समर्पण को कमज़ोर किया जाता है। कुल मिलाकर देखें तो महिला खिलाडियों ने हर तरह की विपरीत परिस्थितियों में अपनी जगह बनायी है और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय खेलों में देश का गौरव बनीं हैं। बहुत कुछ करना जरूरी है , जिससे कि उन्हें अनुकूल माहौल मिले और बिना किसी भय और भेदभाव के स्त्री खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय हर तरह की खेल-प्रतियोगिता में भाग लें,अपनी जीविका बना सकें और परिवार, समाज और देश को गौरवान्वित करें।

                  अर्चना अनुप्रिया।

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