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"ठुकरा के मेरा प्यार "

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Feb 24
  • 4 min read

*"ठुकरा के मेरा प्यार *"*- *एक समीक्षा**


ठुकरा के मेरा प्यार सीरीज़ एक हिंदी ड्रामा है,जो डिज्नी+ हॉटस्टार पर दिखाया जा रहा है।इसका प्रीमियर नवंबर 2024 में हुआ था।इस सीरीज़ में नए कलाकार धवल ठाकुर और संचिता बसु प्रमुख भूमिका में हैं।इस सीरीज को श्रद्धा पासी जयरथ ने निर्देशन दिया है और यह बॉम्बे शो स्टूडियो द्वारा निर्मित है। यह डिज्नी+ हॉटस्टार पर साल का सबसे ज्यादा देखा जाने वाला शो बनकर उभरा है।इस श्रृंखला की कहानी अलग-अलग पृष्ठभूमि और सामाजिक मानकों से दो युवा प्रेमियों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनकी प्रेम कहानी जाति और वर्ग के मतभेदों में निहित पारिवारिक झगड़ों से प्रभावित होती है।

उत्तर प्रदेश में सेट की गई यह सीरीज़ एक गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले युवक कुलदीप और एक प्रभावशाली और अमीर चौहान परिवार की लड़की शानविका के बीच प्रेम कहानी को लेकर चलती है। उनके रिश्ते की परीक्षा सामाजिक अपेक्षाओं और जातिभेद तथा धनी-निर्धन वर्ग के गहरे मुद्दों से होती है। जैसे-जैसे उनका रोमांस बढ़ता है, उन्हें भयंकर विरोध का सामना करना पड़ता है,खासकर शानविका के शक्तिशाली सामंतवादी परिवार से, जो उन्हें अलग रखने के लिए दृढ़ संकल्पित है।


*कहानी–*

कहानी की नायिका,शान्तिका एक धनी,दबंग,चौहान परिवार की इकलौती दबंग बेटी है,जो माता -पिता के दुलार से बिगड़ी हुई और जिद्दी है।उसे अपने साथ पढ़ने वाले गरीब,होनहार और भिन्न जाति के लड़के,कुलदीप के प्रति अत्यंत आकर्षण हो जाता है और वह किसी भी कीमत पर उससे प्रेम करना चाहती है। कुलदीप की मां और मौसी चौहानों के घर में खाना बनाने का काम करती हैं।दोनों परिवारों के अंतर को समझते हुए कुलदीप पहले तो प्रेम में पड़ने से परहेज़ करता है परंतु, शान्तिका की बार-बार की जिद और दंबगई से मजबूर होकर उससे प्रेम कर बैठता है।अब जाहिर है कि शानविका का पिता बड़ा आदमी है तो पुलिस से लेकर मंत्री तक सब उसके आगे झुकते हैं।ऐसे में जब पिता को पता चलता है और वह दोनों से पूछते हैं तो लड़की अपने परिवार के सामने प्रेम से इंकार कर देती है और कुलदीप हतप्रभ सा देखता रह जाता है।फिर शुरू होता है कुलदीप के गरीब परिवार पर चौहानों का अत्याचार। कुलदीप,उसके माता-पिता चौहानों द्वारा बुरी तरह पीटे जाते हैं, उसकी इकलौती बहन के सबके सामने कपड़े फाड़ दिये जाते हैं और उसके घर को बुरी तरह जला दिया जाता है।किसी तरह उसका परिवार छुपछुपाकर,भागकर दिल्ली कुलदीप के मौसेरे भाई के घर आता है, लेकिन मानसिक रूप से आहत बहन आत्महत्या कर लेती है।फिर शुरू होती है कमाने की जद्दोजहद और इसी दौरान एक लड़की दोस्त की प्रेरणा से कुलदीप फिर से पढ़ाई आरंभ करता है और आई.ए.एस.की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर, कलक्टर के रूप में उसी जिले में पुनः लौटता है।उसके अंदर धधकती बदले की ज्वाला को मोहरा बनाकर वहां का एक विधायक अपने अपमान का बदला चौहानों से लेने लगता है।इसी क्रम में चौहान परिवार अपने मुखिया और दामाद को खो देता है और पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर आ जाता है।इसी बीच कुलदीप को पता चलता है कि शानविका उससे सच्चा प्रेम करती थी और चुपचाप सबसे छुपाकर कुलदीप की मौसी द्वारा मौसी के ही नाम से उसकी पढ़ाई के लिए पैसे भेजा करती थी।इससे पहले कि वह अपने प्रेम और कर्तव्य के बीच कुछ निर्णय कर पाता,गांव के विधायक के प्लान में पूरी तरह फंस चुका होता है।शान्तिका कुलदीप को ही अपने परिवार की बर्बादी का पूरी तरह दोषी मानती है और लोकल जनता की सहायता लेकर डी.एम. कुलदीप के खिलाफ मोर्चाबंदी करने लगती है।


*आलोचनात्मक विश्लेषण..*

कहानी की बात करें तो यह कहानी बॉलीवुड की फिल्म,’शादी में जरूर’ आना से प्रेरित लगती है।अमीरी,गरीबी,प्रेम, पारिवारिक भिन्नता,बदले की भावना आदि फिल्मों में और अन्य श्रृंखलाओं में इतनी बार दिखाया गया है कि उसमें कुछ नया नहीं लगता।बेहतर होता कि लड़की को गरीब और लड़के को अमीर बनाकर और लड़की को आई.ए.एस. बनाकर डी.एम.के रूप में दिखाया जाता तो स्त्रियों के लिए एक सकारात्मक संदेश दिया जा सकता था।कहानी का अंत जिस तरह दिखाया गया है,उससे लगता है कि श्रृंखला में इसके आगे दोनों नायक-नायिका के बीच के तकरार को बहुत आगे तक लेकर जाया जायेगा। शायद नायिका को मंत्री के पद पर बैठाकर नायक से वापस बदला लेता हुआ दिखाया जाये। इस तकरार में कहानीकार ने सरकार के गरिमामय पदों को निजी अहम की संतुष्टि का साधन बताते हुए कहानी को गढ़ा है, जिससे आम जनता तक ग़लत संदेश पहुंच सकता है।आई.ए.एस.जैसा पद कानून और समाज की रक्षा के लिए होता है,न कि निजी दुश्मनी का प्रतिकार करने के लिए।

एक्टिंग की दृष्टि से देखें तो, कुलदीप का चरित्र निभाने वाले अभिनेत्री मृणाल ठाकुर के भाई, धवल ठाकुर और शानविका का चरित्र निभाने वाली संचिता बसु का काम बहुत ही अच्छा है।बाकी के सभी दूसरे चरित्रों को निभाने वाले कलाकारों ने भी बहुत बढ़िया काम किया है। निर्देशन की बात करें तो कुछ अलग करने के लिए निर्देशक के पास कोई स्कोप नहीं है।ऐसी फिल्में काफी बार बन चुकी हैं और निर्देशन भी लगभग वैसा ही दोहराया गया है। परंतु, कहानी और निर्देशन का सामंजस्य अच्छी तरह बैठा है और यह श्रृंखला दर्शकों को बांधने में कामयाब रही है।टाइम्स नाऊ के ग्रेस सिरिल ने श्रृंखला को 2 स्टार रेटिंग देते हुए कहा, "हालांकि कहानी हमें प्रभावित करने में विफल रही है, लेकिन अभिनेता ही हैं जो ‘ठुकरा के मेरा प्यार’ को पूरी तरह से बेकार होने से बचाते हैं।" टाइम्स ऑफ इंडिया की अर्चिका खुराना ने भी श्रृंखला को 2.0 स्टार रेटिंग दी,और टिप्पणी की, "निष्कर्ष के तौर पर, ठुकरा के मेरा प्यार अपनी क्षमता के अनुसार जीने में विफल रहता है। मुख्य अभिनेताओं के अच्छे अभिनय के बावजूद, पूर्वानुमानित कथानक और अविकसित विषय इसे पीछे धकेलते हैं।" एबीपी न्यूज़ के अमित भाटिया ने सीरीज़ की आलोचना करते हुए कहा, "कहानी इतनी बासी है कि बाकी चीज़ों पर बात करना बेकार हो जाता है। कुल मिलाकर यह सीरीज़ आपसे बदला लेती है, इसका बदला किसी से मत लीजिए।"

इन आलोचनाओं का आधार चाहे कुछ भी हो परन्तु हाल फिलहाल में ओ.टी. टी. पर भाषा और कहानी में अश्लीलता को जिस तरह परोसा जा रहा है,उसे देखते हुए यह कहानी दर्शकों को जरूर सुकून देती है।कहानी में आये मोड़ उन्हें प्रभावित करने में कामयाब हैं और शायद इसीलिए यह सबसे ज्यादा देखी जाने वाली श्रृंखला की श्रेणी में आ गया है।

अर्चना अनुप्रिया

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