"काल तरंगों का खेल"
- Archana Anupriya
- Apr 3, 2022
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"मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा.. क्योंकि जब मन का नहीं होता तो ईश्वर की मरजी का होता है और उसकी मरजी किसी के लिए गलत नहीं हो सकती,इसीलिए उसपर प्रश्न करना संभव ही नहीं.." यही वे शब्द हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में विश्वास का स्तंभ बनकर आपको ढ़ाढस देते हैं और उस परम शक्ति में स्थित भरोसे को दृढ़ करते हैं। जिंदगी के सफर में एक-एक कर कई यात्री अपनी मंजिल आने पर गाड़ी से उतरते हैं और नये यात्रियों के लिए स्थान बनाते हैं। इस महामारी ने इस गति को तेज कर प्रलय की शक्ल दे दी है। मन की आंखों से जब उन मुसाफिरों की यात्रा देख रही हूँ,जो साथ साथ चल रहे थे और अचानक अपनी मंजिल आने पर गाड़ी से उतर गए तो बड़ा अजीब सा लग रहा है। उनके साथ बिताये पल किसी फिल्मी पटकथा के लग रहे हैं। वैज्ञानिकों ने हमारे ब्रह्मांड के समान और समानांतर चलने वाले दूसरे ब्रह्मांडों की कल्पना की है। उनका मानना है कि हो सकता है कि जो घटना हमारे साथ घट रही है, बिल्कुल वही घटना शायद किसी दूसरे समान ब्रह्मांड में भी कहीं घटने वाली होगी या पहले से ही घट चुकी है।क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो आखिर जो घटना अभी हुई नहीं, उसकी तरंगें हम तक पहुँचकर हमें पहले से ही पूर्वानुमान कैसे दे जाती हैं ?हम अभी इतने उन्नत नहीं हैं कि उन्हें पूरी तरह समझ सकें, देख सकें या ऐसा होना प्रमाणित कर सकें।उनकी यह भी कल्पना है कि समय की गति हर ऐसे ब्रह्मांड में संभवतः भिन्न है, जिसकी वजह से ही संभवतः ऐसा संभव है। सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग में ऐसे ऋषि मुनि बताये गए हैं, जो विदा हुए लोगों से बातें कर पाते थे या उनसे मिल पाते थे। द्वापर युग में महाभारत के भीष्म पितामह को भी अपनी माता गंगा को बुलाकर उनसे बातें कर अपने प्रश्नों का निदान करते हुए बताया गया है। लेकिन, कलिकाल में शायद हम अभी इतने उन्नत नहीं हो पाए हैं कि काल के सफर को समझ सकें या काल को नियंत्रित कर सकें। ऐसा तो केवल परम शक्ति द्वारा यह संभव है और वही कालचक्र को नियंत्रित भी करते हैं। कालचक्र की इस लीला को समझना अभी किसी के वश में नहीं परंतु भविष्य में शायद विज्ञान इस विषय में कुछ कमाल कर पाए और शायद यह गूढ़ रहस्य उजागर हो पाए कि यात्रियों की इस "दूसरी दुनिया" का रहस्य क्या है ?
©अर्चना अनुप्रिया
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