"डिजिटल हुई किताबें"
- Archana Anupriya
- Apr 23, 2023
- 1 min read
खोने लगी है खुशबू कागज की
डिजिटल तकनीकि में फंसकर..
कलम और पेंसिल उदास हैं
की-बोर्ड की साजिश में उलझ कर..
बड़ी अदा से आई थी
यूनिकोड और मंगल फॉन्ट
नकल ही करती रही हमेशा
किताबों के अक्षरों की रोज..
हाथ पकड़कर एक-एक अक्षर
जिस कलम ने हमें लिखना सिखाया
उसी लेखनी की अवहेलना कर हमने
तकनीकी अक्षरों पर ध्यान लगाया..
माना गति है तेज की-बोर्ड की
पर धड़कन उसमें कैसे लाओगे?
अक्षर, शब्द जो दिल में उतरे
वो स्याही की नमी कैसे पाओगे..?
डिजिटल किताबें चार्जिंग पर आश्रित
जो खुद निर्भर, क्या राह दिखाये?
अक्षर, शब्द किताबों में बस कर
सदियों-सदी तक साथ निभायें..
बेजान, कम उम्र, बिना धड़कन के
भावनारहित डिजिटल किताबें
कागज की सोंधी खुशबू फैलाकर
रूह में उतरती हैं लिखी किताबें..
मुश्किलों से सिखाती लड़ना
शब्दों की प्यारी यह बोली..
जीवन के दुखद क्षणों में
ज्ञान के रंग भरती है रंगोली..
बेहतर है दोंनो बनें हमकदम
एक रूह में उतरे, एक तेजी लाये..
कागज पर लिखे धड़कते शब्दों को
तकनीक कोने-कोने पहुँचाये..
©अर्चना अनुप्रिया
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