"देशी फास्ट फूड-सत्तू"
- Archana Anupriya
- Apr 15, 2024
- 5 min read
"देशी फास्ट फूड- सत्तू"
मैं शायद दस ग्यारह वर्ष की रही हूँगी.. एक सवेरे जब नींद खुली और कमरे से बाहर आयी तो देखा कि रसोई में दादी और माँ दोनों कुछ व्यंजन बनाने में वयस्त हैं।एक बड़े से पीतल के कठौत में ढ़ेर सा सत्तू रखा है और उसमें मिलाने के लिए हरी मिर्च, अजवायन, मंगरैला,नमक,अदरक जैसी चीजें तैयार की जा रही हैं।सत्तू में सब मिलाकर एक मिश्रण तैयार किया गया।फिर देखा कि माँ आटे का पेड़ा बनाकर सत्तू के मिश्रण को भरकर गोल पूरियाँ बना-बनाकर चूल्हे पर चढ़ी कड़ाही में पिघले शुद्ध घी में डाले जा रही हैं और तलकर लाल खस्ता कचौरियाँ निकाल रही हैं।बगल एक बड़ी सी कड़ाही में आलू परवल की दमदार सब्जी बनी हुई थी,जिससे इतनी मस्त खुशबू आ रही थी कि पेट के चूहे भी जागकर दौड़ लगाने लगे।इधर एक मिट्टी के बरतन में सत्तू का शरबत बना रखा है। उन दिनों बुआ भी बच्चों के साथ आयी हुई थीं तो वह भी नहा धोकर सत्तू का शरबत और कच्चे आम की चटनी बनाने में माँ और दादी के साथ लगी हुई थीं।हाथों को घुमा घुमाकर पेड़े को गोल करके सत्तू भरना मुझे बड़ा दिलचस्प लगा तो मैंने भी बनाने की इच्छा जाहिर की लेकिन, तुरंत दादी का हुक्म आया.."बिन नहैले नै छुहीं,भगवान के भोग लगतै,दान कैल जतै…जो.. जाके पहिले नहाके आहीं.."(बिना स्नान किये मत छुओ,ये भगवान का भोग है,फिर दान भी किया जायेगा,जाओ, जाकर पहले स्नान करके आओ) उन सबको देखकर मन तो मेरा भी उतावला हो रहा था उनके साथ बैठकर कुछ बनाने का..सो मैं झटपट दैनिक क्रिया से निपटकर, नहा धोकर रसोई में आ गयी।सत्तू के लड्डू बनाती,पूरियाँ तलती दादी ने बताया कि आज सतुआनी है,जो बैसाख के महीने में आती है।इस दिन से गर्मी का आगमन माना जाता है।ऐसे में जठराग्नि की ताप से बचने के लिए सत्तू या सत्तू से बने व्यंजन खाना,सत्तू या सत्तू के व्यंजन के साथ मिट्टी का घड़ा दान करना एक प्रकार की समाज सेवा है,जिसे त्योहार की तरह मनाया जाता है।मुझे याद है कि दादी के मुँह से यह सुनकर मैं हैरान हुई थी कि सत्तू से भी कोई पर्व मनाता है भला..! तब दादी ने बताया था कि इसे मामूली मत समझो..घोड़ा जिस चने को खाकर चेतक बनता है,उसी चने को भूनकर बनता है ये सत्तू …अब इसके लड्डू बनाओ,कि शरबत,कि पूरी,कि लिट्टी…हर तरह से यह स्वास्थ्य की वृद्धि करता है और मजे की बात यह है कि क्षणभर में ही इससे व्यंजन बना सकते हैं।…शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद और बस दो मिनट में तैयार..! उस समय तो दो मिनट की मैगी भी पैदा नहीं हुई थी तो यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ था कि दो मिनट में भोजन तैयार कैसे होगा..! सचमुच कमाल लगा था कि जब भूख लगे सत्तू को नमक पानी के साथ घोलकर पी लो या चीनी के साथ लड्डू बनाकर खा लो..खाते ही पेट के सारे चूहे घोड़े बेचकर सो जायेंगे।फिर तो तीन चार घंटे तक भूख लगने का सवाल ही नहीं, ताकत मिलेगी, सो अलग..।कमाल ही है सचमुच..।दादी से ही जाना था कि बैसाख माह की अमावस्या “सतुमाही अमावस्या” या “सत्तू-अमावस्या” कही जाती है। इसी तरह मेष संक्रांति को भी “सतुआ-संक्रांति” कहा गया है। हिन्दू कलेंडर के हिसाब से प्रत्येक वर्ष में राशियों के अनुसार बारह संक्रांतियाँ होती हैं। इनमें मकर संक्रांति तो बड़ी लोकप्रिय है ही,मेष संक्रांति जो बैसाख में पड़ती है,गर्मियों के आगमन की सूचक है और इसे भगवान को सत्तू भोग लगाकर,खाकर और दान देकर मनाया जाता है।दादी मिट्टी का घड़ा भी दान करती थीं,जिस परंपरा को उनके बाद माँ ने जारी रखा।दादी ने जो जो बातें बतायीं,उसे आज याद करती हूँ तो लगता है कि सत्तू से अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक फास्टफूड तो हो ही नहीं सकता–"सत्तू मन मत्तू, चट घोलो पट खाओ”।आसानी से उपलब्ध होने वाला और भूख शांत करने वाला भला और कौन सा भोजन हो सकता है ?
सत्तू उन दिनों भारत का जाना-माना नाश्ता हुआ करता था।कोई कहीं भी आये जाये तो सत्तू साथ लेकर चलता था। “बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, उत्तर- और मध्य-प्रदेश में सत्तू ने तो आज भी अपना झंडा गाड़ रखा है। ‘सत्तू’ शब्द पाली और प्राकृत भाषा से आया है। हिन्दी में भी इसे सत्तू ही कहते हैं। अन्य भाषाओं में ‘स’ और ‘त’ से बने सत्तू के अनेक रूप मिलते हैं। भोजपुरी में इसे ‘सतुआ’ कहा गया है; कश्मीरी इसे ‘सोतु’ कहते हैं; कुमायूं में ‘सातु’ कहा जाता है और सिंध में इसे ‘सांतु’ कहकर पुकारा गया है।पूर्वांचल के लोग तो सत्तू पर इतने फ़िदा हैं कि पूछिए मत। वहां के खान-पान की संस्कृति का यह एक अभिन्न अंग है। नाश्ते में सत्तू, खाने में सत्तू,घोल कर पी जाने के लिए,सत्तू..सान कर खाने के लिए सत्तू..लिट्टी में भरने के लिए सत्तू… लड्डू बनें तो सत्तू के और नमकीन खाना है, तो भी स्वाद के अनुसार नमक डाल कर सत्तू ही सान सकते हैं…जाने कितने ही तरीके हैं सत्तू खाने के।ब्रज भूमि भी सत्तू खाने के मामले में खूब बदनाम रही है।कहते हैं-"श्रीपुर के छप्पन भोग में ऊ स्वाद नईखे,जे स्वाद मिले इहाँ सतुआ में।’’
चने के सत्तू को सुपरफूड की कैटेगरी में गिना जाता है।चने को भूनकर और उसे पीसकर इसे तैयार किया जाता है।सत्तू में भरपूर फाइबर के साथ ही कैल्शियम, आयरन,मैंगनीज और मैंगनीशियम भी होता है।पोषण तत्वों से भरपूर सत्तू का शरबत गर्मियों के लिए बेहद फायदेमंद होता है क्योंकि ये शरीर को ठंडक देता है और पाचन को दुरुस्त करता है।यू.पी. और बिहार का यह मशहूर ड्रिंक सदियों से इन क्षेत्रों में पसंदीदा पेय पदार्थ रहा है।सत्तू में भरपूर फाइबर होता है,इसीलिए यह मल को ढीला करता है और कब्ज की समस्या से राहत देता है।सत्तू का शरबत नियमित पीने से पाचन में भी सुधार होता है,एसिडिटी और गैस की समस्या से भी राहत मिलती है।सत्तू एक डिटॉक्सिफाइंग एजेंट है,जो हमारी आँतों से विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है।यह शरीर को एनर्जी भी देता है और मजबूत बनाता है।सत्तू में ऐसे गुण होते हैं,जो पूरे दिन शरीर को ठंडा और हाइड्रेटेड रखने में मदद करते हैं।एक दिन एक ग्लास सत्तू का शरबत हमारे सिस्टम को ठंडा रख सकता है और अपच को भी रोकने में मदद करता है।सत्तू में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है जो इसे डायबिटीज के मरीजों के लिए एक अच्छा ऑप्शन बनाता है,जिसे वह अपनी डायट में शामिल कर सकते हैं।सुबह-सुबह एक ग्लास सत्तू का शरबत पीने से दिन भर के लिए एनर्जी मिल जाती है।
सत्तू एक प्राकृतिक एनर्जी बूस्टर है। सत्तू में मौजूद जटिल कार्बोहाइड्रेट धीमी गति से पचते हैं,जिससे ऊर्जा निरंतर रिलीज होती है। गर्मी में ज्यादा मेहनत का काम करने वालों के लिए सत्तू पावर हाउस के समान कार्य करता है।लेकिन, आज के इस बाजार युग में यह सत्तू बेचारा गुमनामी के अँधेरे में पड़ा है।देखा जाये तो यह सत्तू, जो भारत का एक मुख्य “फास्ट-फ़ूड” था,उसका नाम तक महानगरों में रहने वाले न जाने कितने नौजवान आज नहीं जानते। फास्ट-फ़ूड के नाम पर बच्चे पश्चिम से आये बर्गर, पीजा, चाऊमीन, नूडल्स पेस्ट्री आदि ही जानते हैं। ये सभी पश्चिमी फास्ट-फ़ूड दरअसल ‘जंक फूड’ हैं,जिनकी वजह से बिमारियाँ घर कर रही हैं,रोग-प्रतिरोधक क्षमता घट रही है और लोग दवाओं के गुलाम बनते जा रहे हैं।ऐसे में स्थानीय भारतीय स्वास्थ्यवर्धक फास्टफूड, बेचारा सत्तू लाचार है।परन्तु, हाल में आयी कोरोना महामारी ने यह जता दिया है कि समय आ गया है कि हम जंकफूड जैसे फास्टफूड को तिलांजलि देकर सत्तू जैसे देशी फास्टफूड की तरफ अपना रुख करें।अब लोग भी इस दिशा में जागृत हुए हैं और उन्हें इस देशी फास्ट फूड,सत्तू की उपयोगिता और आवश्यकता की महत्ता समझ आयी है।स्वास्थ्य, शक्ति और सरलता ने सत्तू को बाजार की जंग में विजयी बना दिया है।अब वो दिन दूर नहीं, जब ये देशी फास्टफूड अपने गुणों की बदौलत अपने देश में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी जगह बनायेगा और अपने गुणवत्ता और सुलभ उपलब्धता से समाज को भी स्वस्थ करेगा।
अर्चना अनुप्रिया
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