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धनतेरस की पौराणिक कथा

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Nov 12, 2020
  • 5 min read

भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है-- 'धन' और 'तेरस' जिसका अर्थ लगाया जाता है धन को तेरह गुना करना। इसके अतिरिक्त,इसमें तेरस संस्कृति भाषा के त्रयोदशी तिथि का एक हिंदी स्वरूप है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तारीख के दिन इस त्योहार को मनाया जाता है..इस दिन लोग माँ लक्ष्मी, यम, धनवंतरि और कुबेर देवता की पूजा से उनकी कृपा हासिल करते हैं।माना जाता है कि धनतेरस और दीपावली पर खरीदारी से किस्मत तो चमकती ही है, साथ ही घर में पूरे साल धन की वर्षा होती रहती है। इस दिन सोने और बर्तन की खरीदारी को विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

एक कथा के अनुसार, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। वह अमृत मंथन से उत्पन्न हुए थे। जन्म के समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। यही कारण है कि धनतेरस के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए बर्तन खरीदने का रिवाज है।

धनतेरस के संबंध में कुछ पौराणिक कथायें प्रचलित हैं।एक कथा के अनुसार एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से प्रश्न किया, “क्या कभी प्राणियों के प्राण लेते समय तुम्हें किसी पर दया आती है?” यमदूतों ने सोचकर कहा – “नहीं महाराज ! उस वक्त तो हम आपकी आज्ञा का पालन कर रहे होते हैं. हमें किसी पर दया कैसे आ सकती है?” यमराज ने फिर पूछा – “संकोच मत करो और यदि कभी तुम्हारा दिल पसीजा हो तो बेझिझक होकर कहो” तब यमदूतों ने कहा – सचमुच एक घटना ऎसी है जिसे देखकर हमारा हृदय पसीज गया था। हंस नाम का एक राजा शिकार पर गया था।जंगल में वह अपने साथियों से बिछड़ गया और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा में चला गया।वहाँ एक शासक हेमा था। उसने राजा हंस का बहुत आदर-सत्कार किया।उसी दिन राजा हेमा की रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।राजा ने आज्ञा दी कि इस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए।उस तक स्त्रियों की परछाई भी नहीं पहुंचनी चाहिए किन्तु विधि का विधान कुछ और ही था। संयोग से राजा हंस की पुत्री यमुना के तट पर चली गई और वहाँ जाकर उसने उस ब्रह्मचारी के साथ गन्धर्व विवाह कर लिया।विवाह के चौथे दिन उस राजकुमार की मृत्यु हो गई। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय कांप गया कि ऎसी सुन्दर जोड़ी हमने कभी नहीं देखी थी।वे कामदेव तथा रति से कम नहीं थे।इस युवक के प्राण लेते समय हमारे आँसू भी नहीं रुक पाए थे। सारी बातें सुनकर यमराज ने द्रवित होकर कहा, “क्या करें... विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऎसा अप्रिय काम करना पड़ता है।"तब यमदूतों ने अकाल मृत्यु को टालने का उपाय पूछा।यमदूतों द्वारा पूछे जाने पर यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय इस प्रकार कहा – “विधिपूर्वक धनतेरस का पूजन व दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती।जिस घर में यह पूजन होता है वह घर अकाल मृत्यु के भय से मुक्त रहता है।” इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वंतरी पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन हुआ।

इस दिन को मनाने के पीछे इस कथा के अलावा दूसरी कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया।तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं।कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊँ, तुम यहींं ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ..तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में जिज्ञासा जागी कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।उसी क्षण विष्णु जी आए और उन्हें देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की बारह वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो माँगोगी, मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया।पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के बारह वर्ष बड़े आनंद से कट गए। बारह वर्ष के बाद लक्ष्मीजी वापस जाने के लिए तैयार हुईं।विष्णुजी जब लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान को बताया कि इनको मेरा शाप था इसलिए बारह वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। बारह वर्ष की सेवा का समय पूरा हो चुका है...इसीलिए इन्हें जाना होगा।लेकिन,किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दे सकता। तब लक्ष्मीजी ने किसान से कहा कि यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जैसा मैं कहूँ वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊँगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाने लगी।धनतेरस के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करके लोग चतुर्दशी का दीपदान करते हैं ताकि हमेशा घर में ईश्वर की असीम कृपा बनी रहे।

अर्चना अनुप्रिया।


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