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नया आदमी

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Aug 1, 2020
  • 1 min read

आदमी पहले मशीन था

दिन-रात दौड़ता भागता

पत्थरों से बनीं थीं धड़कनें

निष्प्राण,संवेदनहीन, बनावटी

विधाता ने बंद कर लिए दरवाजे

तन्हाई में फूटने लगे हाथ,पैर,आँखें

पिघलने लगा मन का ग्लैशियर

दिखने लगा यथार्थ का चेहरा

अब मशीन में जान आ रही है

कलपुर्जे शायद इंसान को जन्म देंगे..

अर्चना अनुप्रिया

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