प्रकृति
- Archana Anupriya
- Jul 19, 2020
- 1 min read
प्रकृति हमारी माँ है और हमारे जीवन के अलावा असंख्य वरदान हम इस माँ से पाते रहे हैं। परंतु, कभी हम इस बात पर भी विचार करें कि हमने प्रकृति को अपना प्यार किस तरह से दिया है।शायद, हम अपने इस कर्तव्य निर्वाह में हमेशा पीछे रहे हैं। पिछले कुछ सालों में शायद पहली बार पर्यावरण ने इन दो-तीन महीनों में चैन की साँस ली होगी क्योंकि उसे यातनाएँ देने वाला खतरनाक वायरस,मनुष्य आजकल घर में बंद रहने को विवश है।दौलत पैदा करने वाली मशीन बना मनुष्य पता नहीं कब से हरे-भरे जंगल को कंक्रीट के जंगल बनाने की होड़ में लगा था।पिघलते ग्लेशियर, ग्लोबल वार्मिंग,सूखती नदियाँ,बढ़ती बीमारियाँ- ये सब कंक्रीट जंगलों से ही तो उपजे हैं।जिस मिट्टी से हम बने हैं,उस मिट्टी को सीमेंट से ढककर हम खुद को पत्थर का नहीं बना रहे क्या? एक छोटे से वायरस ने दुनिया हिला रखा है, आगे की दुर्दशा का क्या? आने वाली पीढ़ियों के लिए हम कैसी दुनिया छोड़ कर जायेंगे? हम सोचें जरूर।
घड़ी की चलती सूई बता रही है..
पर्यावरण की हानि कर,
हम अपना समय कम कर रहे हैं..
अर्चना अनुप्रिया।
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