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"बदल रही हूँ मैं"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Sep 17, 2021
  • 0 min read


बहुत सह लिए, बहुत कह लिए

अब अत्याचार सहना छोड़ दिया

बदला है समय,बदल रही हूँ मैं

अब बेचारी बन रहना छोड़ दिया

हाथ तुम्हारा यदि मुझपर उठा तो

मैं भी चुपचाप अब नहीं रहूँगी

जिस हाथ से चाय बनाकर दी थी

उन्हीं हाथों से फिर प्रतिकार करूँगी

मत भूलो,तुम्हारी अर्धांगिनी हूँ मैं

हर शय में तुम्हारे अधिकार है आधा

अगर जीना दूभर कर दोगे मेरा

मैं भी भुला दूँगी जन्मों का वादा..

कमजोर या अबला कभी न समझना

मैं स्वयं ही झुक कर रहा करती थी..

तुम्हारे प्यार, घर-संसार की खातिर ही

चौखट से बँधकर सब सहा करती थी..

मत समझना कि धागे अपनी प्रतिभा के

पीहर की देहरी पर मैं तोड़ आयी हूँ

वो तो तुम्हारे प्रेम-डोर की लालच में

बचपन की अलमारी में छोड़ आयी हूँ

और कुछ नहीं चाहती हूँ मैं तुमसे

बस प्यार,सहयोग,अधिकार दो मेरा

जन्मोंजन्म तक बस तुम्हें ही माँगू

ऐसा प्यार दे जीवन सँवार दो मेरा

अर्चना अनुप्रिया

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