"मीडिया एवं राजनीति में महिलाओं की भूमिका और चुनौतियाँ"
- Archana Anupriya
- Aug 24, 2020
- 5 min read
बात घर की हो, मीडिया की हो या राजनीति की हो- महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना सिक्का जमाया है और निरंतर अपने समक्ष खड़ी चुनौतियों से लड़ रही हैं।विश्व की आधी आबादी और लगभग सभी संविधानों में पुरुष के समान ही कानूनी समानता पाने वाली महिलाएं मीडिया और राजनीति दोनों ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
मीडिया में महिलाओं की भूमिका-समाज की आवश्यकताएँ, प्रगति की दिशायें,महिलाओं में चेतना उत्साह एवं आगे बढ़ने की सतत प्रेरणा ही मीडिया में महिलाओं की भूमिका तय करती है। यह देखना बहुत जरूरी है कि स्वयं महिलाएँ इसे किस रूप में ले रही हैं,साथ ही, उनकी उपयोगिता एवं सार्थकता कहाँ-कहाँ पहचान बना रही है। मीडिया अब महिलाओं की रुचि,उनके स्वभाव, आवश्यकता एवं जीवन-अर्जन के साधन के रूप में भी देखा जा रहा है। प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक- महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और सफल भी हो रही हैं। संचार के विकास और विस्तार के साथ ही हर तरह के मीडिया से महिलाएँ जुड़ रही हैं और ज्ञान, गुण, वैचारिक शक्ति, तर्क, लेखन, प्रस्तुति- सभी में महिलाओं की भूमिका को सराहा जा रहा है।यदि महिलाओं के लिए मीडिया उनकी विशेषताओं का क्षेत्र कहा जाए तो इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हर तरह की खबर, आतंकवाद के खिलाफ मुहिम, सरहदों पर जाकर वहाँ की वस्तु -स्थिति की रिपोर्टिंग, ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल, साक्षात्कार आदि सभी आयामों में महिलाएं सफलता से भागीदारी निभा रही हैं और वैश्विक स्तर पर जनता उन्हें पसंद भी कर रही है। यही कारण है कि मीडिया के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। महिलाओं ने शांति एवं समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लिए पत्रकार के रूप में अद्भुत प्रतिभा दिखाई है। देखा जाए तो मीडिया जगत का ऐसा कोई कोना नहीं है जहाँ महिलाएँ अपने
आत्मविश्वास और अपनी दक्षता से मोर्चा नहीं संभाल रही हों।पत्रकारिता के लिए आवश्यक तत्व है संवेदनशीलता, जो महिलाओं में नैसर्गिक रूप से पाई जाती है।संवाद और संवेदना-इन दोनों ही क्षेत्रों में महिलाएँ पुरुषों की अपेक्षा अधिक अधिक सशक्त साबित हुई हैं और मीडिया में महिलाओं की गरिमामय भूमिका बढ़ी है। अपने नारीत्व का सम्मान करते हुए और शालीनता को कायम रखते हुए महिलाएँ मीडिया जगत में पूरी तरह से वर्चस्व बनाने में सफल रही हैं।मीडिया में महिलाओं की बहुत सकारात्मक भूमिका देखी जा रही है।विशेष तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में महिलाओं ने पुरुषों से बढ़कर अपना अस्तित्व कायम करके दिखाया है।
राजनीतिक क्षेत्र में भूमिका- राजनीति के क्षेत्र में भी महिलाओं की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हुई है।स्वतंत्रता आंदोलन के समय से ही महिलाएँ राजनीति के क्षेत्र में अपना अस्तित्व स्थापित कर रही हैं। इसी का परिणाम था कि सरोजिनी नायडू ने उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के रूप म़ें और विजय लक्ष्मी पंडित ने राष्ट्र संघ के अध्यक्ष के रूप में अपनी सशक्त भूमिका निभाई। विश्व की राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं की सशक्त भूमिका देखी जा सकती है।
संसार की पहली महिला प्रधानमंत्री इजरायल की गोल्डमायर रहीं तो श्रीलंका की श्रीमती भंडारनायके और उनकी पुत्री, चँद्रिका राजनीति के शिखर पर पहुंचीं। भारत की आयरन लेडी, श्रीमती इंदिरा गांधी की भूमिका तो स्मरणीय है ही।इंग्लैंड में महिला रानी और प्रधानमंत्री, मार्ग्ररेट थैचर का शासनकाल किसी मामले में कम नहीं आंका जा सकता। वर्तमान समय में भी कई महिलाएं राजनीति में सक्रिय हैं और पूरी तरह से अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। सोनिया गांधी, स्व.सुषमा स्वराज, मायावती, ममता बनर्जी,स्वर्गीय जयललिता, प्रियंका गांधी, राबड़ी देवी, स्मृति ईरानी आदि कुछ सशक्त नाम हैं, जो राजनीति के क्षेत्र में बहुत सफलतापूर्वक सिद्ध हैं । 'राजनीति भागीदारी' शब्द जितना विशाल है, उस हिसाब से देखें तो पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की भागीदारी थोड़ी कमजोर और कमतर दिखाई देती है। विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में आवश्यकता के हिसाब से उनका प्रतिशत अपेक्षाकृत कम दिखाई देता है।अक्सर राजनीतिक पार्टियाँ महिलाओं को हथियार के रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करती हैं। अक्सर उन्हें राजनीति के अखाड़ों में उनके पतियों, भाइयों और पिताओं के पीछे खड़ी करके अपनी अपनी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दिखाते हैं ।राजनीतिक भूमिका में यदि देखें तो राजनीतिक सक्रियता और मतदान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के मजबूत क्षेत्र रहे हैं ।ज्यादातर महिलाएँ मतदान में भाग लेती हैं और पुरुषों की तुलना में राजनीतिक पार्टियों के निचले स्तरों पर सार्वजनिक कार्यालयों में राजनीतिक दलों के लिए कार्य करती हैं। घरों में जाकर प्रचार करने से लेकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों से वार्तालाप करना जैसे कार्य महिलाओं द्वारा कराना राजनीतिक पार्टियों के लिए बहुत आसान हो जाता है। ग्रामीण स्तर पर भी पंचायत और उसके सदृश्य अन्य संस्थाओं में भी महिलाएं आज बढ़ चढ़कर आ रही हैं। लगभग सभी बड़ी पार्टियों की महिला शाखाएँ भी आज बन चुकी हैं और कई मंत्रालयों में भी महिलाएँ महत्वपूर्ण रूप से महत्वपूर्ण पदों पर सक्रिय हैं।
चुनौतियाँ- मीडिया हो या राजनीति,महिलाएँ चाहे किसी भी क्षेत्र में भूमिका निभा रही हों,उन्हें निरंतर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और वे सतत संघर्षरत हैं। महिलाओं की नैसर्गिक दुर्बलता उनके लिए एक बड़ी चुनौती साबित होती है। माँ बनना, बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी, गृहस्थी और परिवार की देखरेख जैसे कार्य सामान्यतः महिलाओं के हिस्से ही आते हैं। माँ बनने के समय उन्हें अपने ऊपर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त, शिशु के लालन-पालन के समय भी पौष्टिक आहार और पर्याप्त विश्राम की महिलाओं को अत्यंत आवश्यकता होती है। मीडिया हो या राजनीति दोनों ही क्षेत्रों के कार्यों में पूरा समय देने की और भागदौड़ करने की जरूरत होती है। ऐसे में महिलाओं को कई बार अपने व्यवसाय में तरक्की पाने के सुनहरे अवसर छोड़ने पड़ते हैं क्योंकि उनकी शारीरिक तंदुरुस्ती के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से शांत रहना जरूरी होता है और वे ज्यादा काम और भागदौड़ नहीं कर सकतीं। बच्चों को जन्म देना और उनका सुचारु रुप से लालन-पालन महिलाओं का प्राथमिक सामाजिक दायित्व हो जाता है और उन्हें इसकी खातिर अपनी महत्वाकांक्षा को सीमित करना पड़ता है ।छोटे बच्चों को छोड़कर काम के लिए जाना भी नारी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, जिसे वह बड़ी कुशलता पूर्वक निभाने की कोशिश कर रही है।
पितृसत्तात्मक विचारधाराएँ और रूढ़िवादी सोच भी महिलाओं के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं।मीडिया और राजनीति दोनों ही जगह रात-रात भर काम करने की संस्कृति है। चुनाव का माहौल हो या राष्ट्रीय अथवा राजकीय संकट हो..हर मामले में राजनीतिक पार्टियों को चौबीसों घंटे काम करना पड़ता है और ऐसे वक्त मीडिया का कर्तव्य हो जाता है कि दिन-रात जनता को तथ्यों से अवगत कराती रहें। ऐसे में महिलाओं के लिए रात रात भर बाहर रहना और काम करना कई बार उनके लिए प्रश्न खड़े करता है। इसके अतिरिक्त उनके लिए 'बेदाग छवि' बनाए रखना भी बहुत बड़ी चुनौती है। रूढ़िवादी समाज पुरुषों पर तो सवाल खड़े नहीं करता परंतु महिलाओं की हर हरकत पर नजर रखता है और सवाल करता रहता है--"देर तक कहाँ थी?... कौन छोड़ने आया था?... किसके साथ काम कर रही थी?... वगैरह-वगैरह। महिलाओं से यह उम्मीद की जाती है कि सारे प्रश्नों के उत्तर देकर वे स्वयं को बेदाग साबित करें। इस तरह की सामाजिक मानसिकता उनके लिए एक बहुत बड़ी समस्या है।
मीडिया जगत हो या राजनीति का क्षेत्र महिलाओं का शारीरिक एवं एवं मानसिक शोषण हर स्तर पर होता है। हालांकि,अपवाद हर जगह पर है लेकिन अक्सर सुंदरता और विलक्षण प्रतिभा को प्रताड़ित और शोषित करने की मानसिकता हर जगह मौजूद दिखाई देती है। इस दृष्टि से महिलाओं की सुरक्षा एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस वजह से महिलाएँ अक्सर संदेहास्पद मानसिकता में रहती हैं जिसकी वजह से वे अपनी प्रतिभा खुलकर नहीं दिखा पातीं।
वर्तमान समय में परिस्थिति,संस्कार और मूल्य बदले हैं.. जरूरतें भी बदली हैं...सोच और नजरिए में काफी फर्क आया है और महिला स्वतंत्रता आंदोलनों ने सकारात्मक असर दिखाया है। इस हिसाब से मीडिया और राजनीति दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ा है और वे निरंतर आगे बढ़ रही हैं।सरकारें भी पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हुई हैं और महिलाओं को हर क्षेत्र में आरक्षण भी मिल रहा है, परंतु वास्तविक स्थिति में अभी भी उनकी चुनौतियाँ बहुत हद तक बनी हुई हैं।कोई भी देश तभी आगे बढ़ता है जब उसकी आधी आबादी भी सामान्य और शुद्ध रूप से साथ साथ चले। इस दृष्टि से अभी मीडिया और राजनीति- दोनों ही क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका को और बढ़ाने के अवसर बनाने होंगे और सबको साथ मिलकर उनकी चुनौतियों को समाप्त करने की दिशा में काम करना होगा।
अर्चना अनुप्रिया।
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