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"रावण जिंदा है..."

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Oct 4, 2022
  • 1 min read

Updated: Oct 5, 2022


गूँज रहा है अट्टहास,

हँस  रहा  है  रावण-

"पुतले जला रहे हैं लोग,

मैं सबमें जी रहा हूँ जीवन..

कई  नाम  हैं  मेरे

कई  हैं  मेरे  चेहरे

आतंकी,बलात्कारी या भ्रष्टाचारी

सभी तो मेरे ही मोहरे"..

युगों से जलाकर पुतले

हम जीते हैं भ्रम में अकारण

पाप, बुराई का अंत कहाँ है?

सचमुच, जिंदा है रावण...

विद्वता कहाँ प्रमाण है इस बात का

कि रावण जिंदा नहीं मानव में?

ज्ञान,संस्कार और विनम्रता

मिलकर बनाते हैं राम

ज्ञान,धृष्टता,अहंकार जब मिलते हैं

तब बनता है रावण का अस्तित्व..

रावण मर भी नहीं सकता

कितने भी कर लो प्रयास,

रावण के बिना अधूरी सी है

उस 'राम'पर आस्था और विश्वास.. 

हैं राम और रावण दोनों 

पूरक एक दूसरे के

बिन रावण तो लोग भी

राम को समझ नहीं सकते...

रावण के सिर अब दस कहाँ हैं?

बढ़ रही है उसकी शक्ति

हर स्वार्थ में अब छुपा है रावण,

कम हुई है मर्यादा की भक्ति...

आज भी सोने की मृग की चकाचौंध,

कुटियों की सीता छलती है

जब भी रावण हावी होता है

"राम" की कमी खलती है...

पुतलों के रावण को छोड़कर 

क्यों न अंदर के रावण को मारें

जगा लें अपने अंदर के राम को,

ताकि नकारात्मकताएँ हारें...

मन के रावण से लड़कर ही,

राम पर आस्था आती है

आसुरी वृत्तियाँ जब मिटती हैं

तभी सद्वृत्ति प्रतिष्ठा पाती है...।

             अर्चना अनुप्रिया।

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