top of page

सुनो दिसम्बर..

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Dec 28, 2020
  • 1 min read

सुनो दिसंबर,

यह जो वक्त की गाड़ी

तुम खींचकर यहाँ तक लाए हो

बहुत भारी थी

मजदूरों पर, मजबूरों पर

कमजोरों पर, मजबूतों पर

कितनों की कमर टूटी

कितनों की संगत छूटी

बेबस रहा हर एक लम्हा

जीवन भी रहा कुछ थमा-थमा

परेशान रहे हम सभी

कैद रही हर चलती साँस

पर इंतजार रहा तुम्हारा..


रुको दिसंबर,

यह जो वक्त की गाड़ी

तुम खींचकर यहाँ तक लाए हो

बहुत से सबक लेकर आयी है

संघर्ष सिखाया,सफाई बतायी

संतुलन सिखाया,

सावधानियाँ समझायीं

प्रकृति को सहेजा,

जीवों को आजादी दिलायी

घर के बिछड़े लोग मिलाये

अन्न की कीमत दिखाई

हर तरह का भेदभाव मिटाया,

दूरियों में नज़दीकियाँ बढ़ायीं

दीवारों में कैद थे ये तन

पर मिलते रहे हर रोज ये मन

आध्यात्मिक चिंतन, जीवन का मोल

मदद के हाथ, भविष्य की भोर

बहुत कुछ लेकर आए हो तुम


ऐ दिसंबर,

अब जो अगली गाड़ी लाना

आशाएँ, रोशनी,ठहराव भी लाना

कुछ ऐसा कि बदला हुआ

नया आदमी दिशाहीन न हो

पड़ा रहे बस एक-दूजे के प्यार में

हर लम्हा रौशनी में डूब जाये

और हम फिर से खड़े मिलें तुझे

हँसते-खेलते यहीं,तेरे इंतजार में..

©अर्चना अनुप्रिया।

Comentários


bottom of page