"सूर्य देवता की पूजा "छठी मैया" कैसे?"
- Archana Anupriya
- Nov 19, 2020
- 5 min read
छठ पूजा साक्षात् दृश्य देव सूर्य देवता की पूजा है।यह चार दिन की पूजा-विधि दीपावली के छठे दिन अपने चरम पर होती है और षष्टी तिथि की वजह से छठ-पूजा के नाम से जानी जाती है।बहुत लोगों का प्रश्न यह होता है कि जब इस पूजा में सूर्य देवता की आराधना होती है तो "छठी मैया" जैसा संबोधन क्यों किया जाता है जबकि सूर्य तो देवता हैं, पुरुष हैं तो फिर उन्हें देवी के रूप में क्यों मानते हैं और "छठ माँ" की पूजा क्यों कहते हैं?इसके अतिरिक्त यह प्रश्न भी लोगों के मन में उठता है कि इस पूजा की शुरुआत कब हुई और इसका इतिहास क्या है..?विशेषकर भारत के पश्चिमी दक्षिणी भाग में और विश्व के अन्य भागों में रहनेवाले लोगों के लिए यह जिज्ञासा का विषय है जहाँ यह पूजा परम्परा में नहीं है किन्तु इस नये वैश्वीकरण युग में हर तरफ छठ पूजा की धूम देखी जाती है।
छठ पर्व,दरअसल, षष्ठी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाने के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्ल को मनाए जाने के कारण इसे छठ कहा जाता है। यह चार दिनों का त्योहार है और इसमें साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। इस त्योहार में गलती की कोई जगह नहीं होती। इस व्रत को करने के नियम अत्यंत कठिन हैं...तथा इस पूजा में केवल उदय होते सूर्य की ही नहीं, लरन् अस्ताचलगामी सूर्य की भी धूमधाम से भरपूर आस्था के साथ पूजा होती है, जो अपनेआप में प्रकृति पूजा में आस्था का इकलौता उदाहरण है।इस वजह से इसे महापर्व और महाव्रत के नाम से संबोधित किया जाता है।
कौन हैं छठी मइया…
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया है। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। वह बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है।
शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।एक अन्य कथा अनुसार मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए गंगा,यमुना या किसी भी पवित्र नदी, तालाब या समुद्र के किनारे यह पूजा की जाती है। षष्ठी मां यानी छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है।
छठ-पूजा का इतिहास और कथाएँ
सूर्य देव और छठी मैया की पूजा कब से शुरू हुई? इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम और माता सीता, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी।
1. राजा प्रियवद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
2.त्रेता युग में भगवान राम और सीता माता द्वारा छठ पूजा...
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
3.द्वापर-युग में द्रौपदी द्वारा छठ पूजा..
पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
4.दानवीर कर्ण की सूर्य पूजा..
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, उसने सबसे पहले सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर दान दिया करते थे।उन्होंने ही शुरू की थी सूर्य की पूजा और अर्घ्य देने की परम्परा..।
अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा..
सूर्य अर्घ्य से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। सूर्योदय को जल का अर्घ्य देने के कई पर्व हैं लेकिन अस्ताचल सूर्य को पूजने का यही एक पर्व है छठ..।मान्यताओं के अनुसार सूर्य को अर्घ्य देने से इस जन्म के साथ किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से छठ मैया नि:संतान को संतान देती और संतान की रक्षा करती हैं।
छठ पूजा का महत्व
सूर्य हमारे प्रत्यक्ष देवता हैं, जिन्हें हम प्रतिदिन खुली आँखों से देख पाते हैं।सूर्य की किरणों में उष्मा और ऐसे कई तत्व विद्यमान हैं,जो जीवन के लिए अनिवार्य हैं… यदि कहें कि सूर्य की वजह से ही जीवन है,तो यह शाश्वत सत्य है।सूर्य की किरणों से अनेक रोगों का निवारण होता है।इसका इतिहास जितना महत्वपूर्ण है, वर्तमान और भविष्य के लिए भी सूर्य की पूजा उतनी ही महत्वपूर्ण है। सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियंवद ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा की गई है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।अथर्ववेद के अनुसार भगवान भास्कर की मानस बहन हैं षष्ठी देवी। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं। शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है।
छठ महापर्व खासकर शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि का पर्व है। वैदिक मान्यता है कि नहाय-खाय से सप्तमी के पारण तक उन भक्तों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती जो श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं। नहाय-खाय में लौकी की सब्जी और अरवा चावल के सेवन का खास महत्व है।चरक संहिता को उद्धृत करते हुए श्रद्धालु बताते हैं कि खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा, शरीर के दाग-धब्बे समाप्त हो जाते हैं। तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई। इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है। सूर्य अपने प्रिय तिथि पर पूजा से मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
सूर्य से ही हमारी सृष्टि है,हमारा जीवन है।अतः यह पूजा एक तरह से हमारी प्रकृति और जीवनदायिनी शक्ति की पूजा है जो हर व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिए।आज हम सब प्रकृति का मूल्य न समझकर जिस तरह से उसकी अवहेलना कर रहे हैं और प्रकृति का क्रोध भी सहने को विवश हैं,हमें छठ पूजा से प्रकृति प्रेम और आस्था की प्रेरणा लेनी चाहिए और यथासंभव इस पर्व को लोकपर्व के रूप में समस्त विश्व में मनाना चाहिए।
©अर्चना अनुप्रिया।
Comments