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"उफ...ये गर्मी"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Apr 20, 2023
  • 3 min read

इस गरमी का क्या करें साहिब..गाड़ी अभी स्टार्ट ही हुई थी कि गियर सीधा चौथे नम्बर का लग गया।39-40 डिग्री तापमान दिखा रहा है दिल्ली के मौसम विभाग का आँकड़ा और अगले छः-सात दिनों तक इसी रेंज में रहने वाली है गर्मी।आने वाले दिनों में तो पता नहीं मौसम का पारा और कितना चढ़ेगा।मैं तो कमरे में पंखे के नीचे हूँ,ए.सी. चलाकर कमरा ठंडा भी कर ले रही हूँ परन्तु, खिड़की की काँच से जो दृश्य दिखाई दे रहा है,उसकी वजह से ए.सी. चलाते हुए अपराधबोध सा हो रहा है।सामने थोड़ी ही दूरी पर,सड़क के उस पार एक कंस्ट्रक्शन चल रहा है।वैसे तो जिस जगह कन्स्ट्रक्शन हो रहा है,वह जगह मेरे घर से थोड़ी दूर है,परन्तु, सातवें मंजिले की खिड़की से सब बिल्कुल साफ और पास दिखाई दे रहा है।खुले मैदान में,इस चिलचिलाती धूप और गर्मी में,मजदूर महिला और पुरुष ईंटे ढोते,सिमेंट- बालू घोलते ऊपर से नीचे,नीचे से ऊपर चढ़ते-उतरते दिख रहे हैं।ए.सी.ऑन करने के लिए रिमोट उठाती हूँ तो पता नहीं क्यों उन्हें देखकर अंदर की कोई आवाज मुझे उसके बटन दबाने से रोक देती है।ऐसा लगता है मानो यह ग्लोबल वार्मिंग मेरे ए.सी. न चलाने से ही समाप्त होगी।सोचती हूँ तो लगता है,कितना बदल गया है मौसम। मौसम का ये बदलाव समय लेकर आया है या हम खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं,यह सचमुच विचारणीय है।

बहरहाल,याद आ रहा है,अस्सी के दशक के पूर्वार्द्ध का वो समय,जब किसी गर्मी छुट्टी के दौरान मैं हॉस्टल से घर आयी हुई थी और एक दिन किसी समाचारपत्र में कोई लेख आया था कि इस वर्ष गरमी ने हद पार कर दी है..पारा 30-32 डिग्री पर जा पहुँचा है।दादाजी ने यह पढ़कर बताया था और दादी का हुक्म हुआ था कि दोपहर में बच्चे कमरे से बाहर निकलकर खुले बरामदे या आँगन की तरफ नहीं जायेंगे..कहीं किसी को लू न लग जाये।बच्चों के कमरे की पलंग खोल दी गयी थी और लाल रंग के पक्के फर्श को पानी से धोकर ठंडा किया गया था।सूखने पर ठंडी जमीन पर ही बिस्तर लगाकर गर्मी छुट्टी मनाती बाल टोली सोती थी,पढ़ती थी,लड़ती थी,लूडो-कैरम खेलती थी और दादी,बुआ,दीदी सबसे कहानियाँ सुनती थी।बेल और सौंफ के शरबत बनते थे,आम,लीची का लुत्फ उठाया जाता था और विविध भारती पर गाने सुनकर अपनी-अपनी सुरीली और बेसुरी आवाजों में फिल्मों के गाने गाये जाते थे।कभी ज्यादा मूड बन गया तो हममें से ही कोई उठकर डिस्को डांसर भी बन जाता था।ऐसे में कभी इस बात का मलाल ही नहीं हुआ कि घर में ए.सी. नहीं है।एक कमरे में बड़ा सा कूलर खिड़की से सटाकर बाहर की तरफ रखा गया तो था,जिसका पंखा कमरे के अंदर हवा देता था और जिसमें खस की सूखी चट्टी लगी होती थी।कूलर चलाने से पहले पाइप से या बालटी से उसमें पानी भरा जाता था। चलने पर वह कमरे को ठंडा तो बहुत कर देता था पर आवाज बहुत होती थी..इतनी कि पास बैठकर भी थोड़े जोर से ही बात करनी पड़ती थी।हम बच्चे उस कमरे को कोल्डस्टोरेज कहते थे।आजकल तो लगभग हर खाते पीते घर में ए.सी. लगी हुई है…अंदर हम ठंडे हो रहे होते हैं और बाहर प्रकृति गर्म।सुविधाएँ तो हमने बहुत जुटा ली हैं परन्तु,न आगे आने वाले गंभीर परिणामों का सोचा,न ही उन जीवों का,जो इस गरमी में बाहर झुलसने को विवश हैं।अब कुदरत है,किसी का दिया रखेगी तो नहीं, सो हमारा किया हमें ही वापस दे रही है….कभी भीषण गर्मी के रूप में,कभी बाढ़,सूखे और मौसमी बदलाव के रूप में।इंसान तो अपने लिए मुसीबतों का हल निकालकर कुछ और विकल्प ढ़ूँढ़ लेते हैं, परन्तु, पशु पक्षियों का क्या..?उनके लिए तो जंगल भी सुरक्षित और अछूता नहीं रखा है इंसान ने…बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतों के निर्माण में हमने जो पेड़-पौधे काटे हैं, कुदरती धरोहर से जो खिलवाड़ की है,उसका असर तो हम सबको भुगतना ही होगा न…बेचारे पशु पक्षियों का सहारा जब हमीं ने अपनी लालच-तृप्ति के लिए उजाड़ा है तब उनका ध्यान रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही होनी चाहिए न..।इसीलिए, यथासंभव उनके लिए जल और खाद्य की व्यवस्था रखें..छत पर,बरामदे में या सड़कों के किनारे सुरक्षित स्थानों पर उनके लिए भी व्यवस्था हो और जहाँ तक संभव हो प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद करें।आज हम तो किसी तरह अपनेआप को सँभाल लेंगे लेकिन,आनेवाले दिनों में हमारी पीढ़ियाँ हमें ही दोषी मानेंगी और शायद कभी माफ भी न करें।अभी लॉकडाउन के समय प्रकृति ने हमें हमारी भूल का मंजर  दिखाया भी है।थोड़े ही दिनों के लॉकडाउन में नदी,जंगल, पर्यावरण सब साफ हो रहे थे और हमारी गल्तियों को आईना दिखा रहे थे। इसीलिए अभी से हम सावधानी बरतें, इसी में समझदारी है।

                       अर्चना अनुप्रिया

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