डायरी मन की-"अर्द्धशतक"
- Archana Anupriya

- Jun 6
- 2 min read
"अर्द्धशतक”
उम्र क्या है? गिनती है उन दिनों की, जिस दिन से हम इस धरती पर आए हैं। जो जितना पुराना होता जाएगा,वह जीवन का हर रुख उतना ही सुहाना पाएगा।हमारे शुरुआती दिनों की रफ्तार बहुत ज्यादा तेज होती है। खेल-कूद,पढ़ाई- लिखाई, नौकरी,बच्चे,जिम्मेदारियाँ… जिंदगी से मिलने,उसे समझने और उससे बातें करने का समय ही कहाँ मिल पाता है?हौसले इतने बुलंद होते हैं कि यौवन दुनिया का हर काम करना चाहता है।जिंदगी बार-बार बुलाती जरूर है पर, हम भौतिक सुखों की जाल में इतने उलझे होते हैं कि उसकी आवाज सुन ही नहीं पाते.. या कभी सुनते भी हैं तो जवानी के जोश में उसे अनसुना कर देते हैं।पचास के बाद जब जीवन में ठहराव शुरू होता है तब जीवन के कई सुनहरे पल दिखाई देने लगते हैं।मन फिर से बचपन में जाने को मचलता है क्योंकि खुशियाँ तो हम वहीं कहीं छोड़कर जिम्मेदारियों संग आगे बढ़ गए थे।सच पूछो तो हम तभी उम्र को मन और हौसले से जीना शुरु करते हैं।अगर गहराई से देखा जाये तो,जिंदगी का उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। मन और हौसला किसी भी उम्र में जवान या बूढ़ा हो सकता है। उम्र का शरीर के कमजोर और बूढ़े होने से भी कोई सरोकार नहीं।कोई छोटी उम्र में भी निढाल सा दिख सकता है और कोई बड़ी उम्र में भी चपल,चंचल,क्रियाशील। शरीर तो प्रकृति के नियमों से चलता है।शरीर जैसे-जैसे समय व्यतीत करता है, वह वैसे-वैसे अतीत होता जाता है। जिंदगी से मिलने के लिए जरूरी है थोड़ा ठहराव और उस ठहरे मन में बच्चों का सा जीवन जीने का उत्साह। इसीलिए, जब धरती पर रहते हुए आपके पचास वर्ष पूरे हो जाएँ तो, खुश हो जाइए कि आप जिंदगी तक पहुंचने के हर उतार-चढ़ाव और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से परिचित हैं। आसान नहीं कि कोई भटका सके आपको। दौड़-दौड़कर ठहर चुका है मन आपका। बस हौसले में सकारात्मक सोच की हवा भरिए, पतंग की मानिंद आसमान में उड़ाइए और मिलिए जाकर अपनी निजी जिंदगी से.. अपने खुद की जिंदगी से,अपनेआप से…घूमिये,दोस्त बनाइए,नये-पुराने दोस्तों संग गप्पें मारिये,अधूरे शौक पूरे कीजिए,जरूरतमंदों की सहायता कीजिए..पूछिए दिल से उसकी फरमाइशें,उसे पूरी करने में मन लगाइए और उठाइए लुत्फ अपनी बढ़ती उम्र का..मनाइए जश्न इस अर्धशतक का।
©अर्चना अनुप्रिया



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