एक पाती स्वयं के नाम"28/07/2020
- Archana Anupriya
- Jul 29, 2020
- 2 min read
मेरी प्रिय सहेली,
बहुत सारा स्नेह
उम्मीद करती हूँ कि स्वयं को पत्र लिखते हुए तुम्हें बहुत खुशी हो रही होगी।खुद से की हुई बातों को शब्दों में उतारना अजीब लग रहा है न? परंतु,जानती हो,यह बहुत जरूरी है और मनोरंजक भी। जरूरी इसलिए कि गृहस्थी में पत्नी, माँ, गृहिणी,बेटी, बहू, बहन बनकर इन सबकी बातें तो तुम प्रतिदिन सुनती हो लेकिन, तुम स्वयं की बातें,ख्वाहिशें और जरूरतों को नजरअंदाज कर देती हो.. उनकी कभी नहीं सुनती..।रोज सोचती हूँ कि तुम्हें पुकारूँ, टोकूँ इस बात के लिए पर तुम्हें फुर्सत कहाँ है मेरी बातें सुनने की। देखो दोस्त, सारे कर्तव्य जरूरी हैं, मैं इनके लिए मना नहीं करती, पर थोड़ा खुद को भी समय दिया करो यार...।याद है ना, दो महीने पहले ही तुमने अपने लिए तीज की नयी साड़ी लेने का प्लान किया था, चुन्नू के ऑनलाइन क्लासेज के लिए लैपटॉप की जरूरत क्या आ गई तुमने साड़ी खरीदने का विचार ही स्थगित कर दिया।अब कह रही हो अगली तीज पर लूँगी... और फिर, पिछले हफ्ते ही तुम्हें भरवा करैला खाने का कितना मन था लेकिन, पति की मशरूम खाने की फरमाइश पूरी करने के लिए अपने मन को समझा लिया क्योंकि टमाटर, प्याज महंगे हैं,तो कोई एक चीज ही बने घर में ।ऐसा क्यों करती हो यार.. अपनी भी तो सुना करो । जरा देखो तो, लॉकडाउन में काम कर करके अपनी कैसी हालत बना रखी है तुमने?पूरी बाई ही लग रही हो। माना कि कहीं बाहर नहीं जाना है पर अपने खुद के लिए तो सज सँवर सकती हो ना?सारा लॉकडाउन क्या दो-तीन नाईटियों में ही निकाल दोगी? कैसे उलझे से बाल और खाली खाली सा चेहरा बना रखा है... थोड़ा सजा संवरा करो यार। चलो, किसी और के लिए ना सही, मुझे देखना है फोटो तुम्हारा... खींचो सेल्फी और बस पोस्ट करो मेरे लिए..। मेरी बातें सुना करो प्लीज़... शब्दों में लिखकर बातें किया करेंगे हम समझी..।जैसे तुम्हें घर के लोगों की फिक्र है वैसे ही मुझे तुम्हारी फिक्र है और अब इसमें कोई बहाना नहीं सुनूँगी मैं ।पता है, लिखकर हम बातें करेंगे ना तो बाद में अपनी चिट्ठी पढ़कर खूब आनंदित होंगे। औरों को छोड़ो,हम दोनों का अच्छा खासा मनोरंजन होगा और हमेशा हम एक दूसरे को याद करते रहेंगे। कहो करोगी ना याद मुझे..? सुनोगी ना मेरी भी फरमाइशें..?
चलो, अब पत्र लिखना बंद करती हूँ...तुम्हारी संगति में मैं भी तुम्हारी तरह परिश्रमी हो रही हूँ.. आदत बिगड़ गई है मेरी भी। चलती हूँ,गैस पर दूध चढ़ा रखा है। कमबख्त कहीं उबलने ना लगे यह सोच कर कि मैं तुम्हें बिगाड़ रही हूँ...हा हा हा ।अपना बहुत ख्याल रखना ।
.... बहुत प्यार के साथ,
तुम्हारी अपनी,
स्वात्मा
पता:
अर्चना अनुप्रिया,
भावों की चयनिका
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