जून 10/ 2020
- Archana Anupriya
- Jul 18, 2020
- 1 min read
Updated: Jul 18, 2020
"बेबस, बेचारा कान"

पहले चश्मा और अब मास्क - खूँटी ही समझ लिया है क्या तुम सबने..? मुँह तो ढककर बचा लेते हो पर हमारा क्या..?उफ्फ्फ.. विधाता ने सारी मुसीबतें हमें ही दे रखी हैं।जुड़वा भाई हैं, पर कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं हमने,न देख पायेंगे।आँखें पलकें बंद कर लेती हैं, मुँह अपने लबों को चिपका लेता है,हाथ रिमोट घुमाता रहता है,पर हम..? ..दिन भर खाँसी, कोरोना पर प्रवचन, बड़ों की डाँट,इसकी शिकायत, उसका झगड़ा - बस सुनते ही रहते हैं।नहीं सुनें तो मरोड़-मरोड़ कर लाल कर देते हैं ये डॉक्टर और टीचर नाम के प्राणी।एक पल भी आराम नहीं।पंडित का जनेऊ, टेलर की पेंसिल, मिस्त्री की बीड़ी- बस सँभालते ही रहो। सुंदरता बढ़ती है सुन्दरियों की और छेद डालते हैं मुझे.. हमें दर्द नहीं होता है क्या.?पर कौन सुने ? सुनने के लिए तो बस हमीं बैठे हैं।
हे मानव, कुछ तो हमारे लिए भी सोचो।आँखें, लबों, केशों पर लिखते रहते हो,कुछ हमारे लिए भी लिखो..वरना सारी दुनिया की सारी मुसीबतों से मुँह मोड़ लूँगा,बहरा कर दूँगा सबको नेताओं की तरह, कहे देता हूँ.. हाँ...क्या..क्या कहा..?..मास्क लगाकर काम पर जाना है ?...लो, लटका लो..।
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