जून 21/ 2020
- Archana Anupriya
- Jul 18, 2020
- 2 min read
11:30 PM
हवा में उड़ती हुई छवियाँ एक छोटे से आयताकार डिवाइस में आकर एक दूसरे से मिलीं और हवा में कोई खुशबू सी फैल गयी...ऐसा लगा मानो हम वर्षों पहले के अपने हॉस्टल वाले दिनों में पहुँच गए हों।जी हाँ,जैसे हम दोस्तों ने तय किया था,हम सभी गूगल मीट एप के द्वारा एक दूसरे से रू-ब-रू हुए।
इस लॉकडाउन के समय में जब शारीरिक दूरियाँ बढ़ी हुईं हैं, यह नन्हा मोबाईल हमारे लिए अलादीन के चिराग सा मालूम हो रहा है।बस छोटे-छोटे अक्षरों की एक श्रृंखला होती है,जिसे आप बस छुएँ और किसी जिन्न की तरह सामने वाला हाजिर..कुछ ऐसे ही करिश्माई अंदाज में हम सभी सहेलियाँ रात के साढ़े दस बजे सारे कार्यों से निपटकर एक दूसरे से मिलीं।मीलों दूर अपने-अपने बेडरूम में बैठे हम सभी कुछ पलों के लिए एक दूसरे के साथ थे।हँसी ठहाकों का दौर चला। एक दूसरे की मनोहारी खिंचाई करते हुए हम सबने आपसी कुशलक्षेम पूछी और फिर, अक्सर मिलते रहने का वादा करके हम विदा हुए।
इस अवसाद भरे माहौल में,जब सारी दुनिया एक महामारी से त्रस्त है,आर्थिक संकट और सीमा पर युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं,रह-रहकर भूकंप और चक्रावात जैसी स्थितियाँ पैदाकर प्रकृति अपना गुस्सा जाहिर कर रही है और ईश्वर अपने दरवाजे बंद किये बैठे हैं,दोस्तों का संग आपको नयी जिंदगी देता है।उनके संग हँसना-हँसाना आपको एक नयी ऊर्जा से भर देता है।अच्छा ये लगा कि हम सभी अपने-अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह निर्वाह करते हुए भी अपने अंदर की चुलबुली नारी को जिंदा रखने में सक्षम हैं।हम सबने अपने अभिभावकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी अच्छी तरह समझा है और ईमानदारी से निभा रहे हैं।हमारी एक सहेली की सासु माँ सत्तासी-अठ्ठासी वर्ष की हैं और पक्षाघात से पीड़ित हैं लेकिन वह उनकी इतने मनोयोग से सेवा कर रही है कि हमें उसके संस्कारों पर गर्व होता है।अन्य सहेलियाँ भी अपने सारे कर्तव्य बहुत अच्छी तरह कर रही हैं और मुझे खुशी है कि ऐसी सकारात्मक सोच वाली लड़कियाँ मेरी दोस्त हैं… फ्रेंड्स फॉरेवर..जो अवसाद को प्रसन्नता में बदल देने में माहिर हैं।
क्रमशः..
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