जुलाई 12/2020
- Archana Anupriya
- Jul 18, 2020
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ढलती शाम का सुर्ख आसमान... धरती से गले मिलता, थोड़ा लजाता...चारों ओर रंग-बिरंगी छटा..मानो किसी बच्चे ने खाली कैनवास पर रंग बिखेर दिये हों..लाल, गुलाबी, हल्के नीले,थोड़े ग्रे..चहलकदमी करते बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े,जैसे इवनिंग वॉक पर निकले हों...इत्मीनान से धीरे धीरे बहते से..एक-दूसरे से गले मिलते, अजब- गजब आकृतियाँ गढ़ते...।एक जादू सा चल रहा है मानो..कभी नारंगी, कभी पीला कभी कुछ मिक्स्ड कलर लिये..हौले-हौले घुलता कालिमा में..।तीन बजने से पहले सारे बादल ऐसे भरे थे कि बस अब बरस ही पड़ेंगे.. बादशाह सूरज क्या दिखाई दिया, सारे ऐसे भाग खड़े हुए जैसे पानी की बूँदें पड़ने पर चीटियों का रेला इधर-उधर तितर-बितर होकर भागता है। कैनवास का रंग नीला होने लगा..और अब यूँ शर्म से लाल..आसमां भी रंग बदलता है कैसे-कैसे..🧜♂️
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