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"दहशत और अनुभवों का साल..2020"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Dec 23, 2020
  • 13 min read


जिंदगी में सब कुछ हमेशा एक सा नहीं रहता। हर पल, हर दिन, हर वर्ष कोई न कोई बदलाव होता रहता है- कभी अच्छा, सुकून भरा तो कभी बुरा, दहशत भरा... यूँ कहें कि कई अच्छे-बुरे, कड़वे- मीठे लम्हों और दिनों का संगम होता है एक पूरा वर्ष ।


2019 के अंतिम महीनों के तनावग्रस्त हालात के बाद उम्मीद की जा रही थी कि 2020 का वर्ष एक नई आशा और विश्व की शांति लेकर आएगा। परंतु,जब साल आरंभ हुआ तब विश्व में कई जगह तनाव की स्थिति बरकरार थी। ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग लगी हुई थी और अमेरिका तथा ईरान के मध्य जंग जैसे हालात थे,जो वैश्विक परिस्थितियों को प्रभावित कर रहे थे। ऐसी ही अन्य मुसीबतजन्य परिस्तिथियाँ भी खबरों के जरिये निकलकर लोगों तक पहुँच रही थीं।कुछ लोगों ने इन बिगड़ती परिस्थितियों का कारण राजनैतिक बताया तो कुछ के अनुसार 2019 दिसंबर का अनोखा सूर्य ग्रहण बुरे परिणामों से अपना असर दिखा रहा था।अच्छी-बुरी परिस्थितियों से गुजरता इंसान इस बात से अभी तक अनजान था कि विश्व के एक बड़े देश चीन के वुहान शहर में कुछ ऐसा चल रहा है,जिसके परिणाम भयावह भी हो सकते हैं। वैसे भी चीन से खबरें इतनी छन-छन कर आती हैं कि किसी को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि एक सूक्ष्म वायरस की भयानक दहशत दरवाजे पर खड़ी समस्त विश्व को अपनी चपेट में लेने को आतुर है। भारत में कुछ कानूनों को लेकर औरतें धरने पर बैठी थीं और हम सब घूमते-फिरते,गुलाबी जाड़े में विश्व पुस्तक मेले का आनंद लेते समाचारों और इधर-उधर की राजनीतिक,सांस्कृतिक चर्चाओं में व्यस्त थे।

जनवरी में जब चीन के वुहान शहर में टोटल लॉकडाउन घोषित किया गया और वहाँ की सूनी सड़कें और कुछ अजीबोगरीब तस्वीरें खबरों में आने लगीं तब मानवाधिकार के लिए लड़ने वालों की भवें तन गयीं-"ये चीन ऐसा कैसे कर सकता है अपने नागरिकों के साथ..?" जैसे कथन से लोग आक्रोश प्रकट करने लगे । लेकिन,अभी भी कोई वायरस या बीमारी की चर्चा बहुत नहीं की जा रही थी। कोरोना वायरस का नाम सुना जाने लगा था परन्तु,ऐसा शब्द पहले कभी लोगों ने सुना नहीं था,इसलिए लगा कि चीन की समस्या है, चीन निपट लेगा। परंतु,न दिखने वाला वायरस बहुत कुछ दिखाने वाला था।आगे जो परिस्थितियाँ बनीं, उसने संपूर्ण विश्व को सामाजिक और आर्थिक रूप से बुरी तरह प्रभावित किया। चीन से निकल कर आये कोरोना नामक वायरस के भयानक प्रकोप ने न केवल 2020 के लिए बल्कि आने वाले कई वर्षों के लिए इंसान और उसकी परिस्थितियों को एकदम से बदल कर रख दिया।


जनवरी के आरंभ में ही ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भयानक आग ने हजारों जानवरों को जला डाला, लोग बदहवास हुए,पर्शियन खाड़ी में ईरान और अमेरिका के तनावग्रस्त हालात और अधिक बिगड़े,जिसमें कई लोग मारे गए...फिर,ल्यूजन में ताल ज्वालामुखी फटने की वजह से हजारों लोग अपने घरों और शहरों को छोड़कर भागते दिखे। इधर भारत में भी कभी दिल्ली चुनाव को लेकर तो कभी नागरिकता के कानून को लेकर हालात बनते- बिगड़ते रहे। इसी बीच चीन से आने वाली तस्वीरें भी डराने लगी थीं, लेकिन,लोग अभी भी कोरोना वायरस के दुष्परिणामों से बेखबर थे।जनवरी में ही वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने बीमारी का नामकरण कोविड-19 कर दिया था और यह घोषणा कर दी थी कि एक बीमारी की वजह से आपातकाल की परिस्थिति बन सकती है। लेकिन,अब भी लोगों में एक उम्मीद थी कि अमेरिका जैसे सुपर पावर और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन जैसी संस्था के होते हुए कोई भी वायरस इतना तो नहीं फैल सकता कि विश्व में कोई दहशत की स्थिति बने। स्वाइन फ्लू,बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों का हवाला देकर लोग बातें कर रहे थे कि कोरोना का वायरस भी कुछ ऐसा ही होगा और जल्द ही काबू कर लिया जाएगा। जनवरी का अंत होते-होते जब भारत के केरल प्रदेश में भी कोरोना ने दस्तक दी तो प्रशासन के कान खड़े होने लगे। न्यूज़ में कभी-कभार अब इस विषय पर चर्चा होने लगी पर अभी भी लोग बहुत संजीदा नहीं हुए थे।


फरवरी का महीना कमोबेश अच्छा ही रहा।लोग घूमते-फिरते रहे... मैदान की गुलाबी सर्दियाँ, पहाड़ों पर बर्फबारी, वैलेंटाइन डे की प्रेम संबंधी चर्चाएँ मन को लुभाती रहीं। 24-25 फरवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप के आने को लेकर मीडिया पर "नमस्ते ट्रंप" जैसे कार्यक्रम का खुमार चढ़ा रहा और उसके बाद दिल्ली के दंगों की खबरों ने लोगों को बाँधे रखा। लेकिन, अब बीच-बीच में सोशल मीडिया, समाचारों और टीवी चैनलों में कोरोना भी अपनी जगह बनाने लगा था।यह शंका कि एक वायरस महामारी का रूप ले सकता है, अब खबरों में सच होती दिखाई देने लगी थी। देश-विदेश के समाचार अब थोड़ी दहशत पैदा करने लगे थे। चीन से कई अजीब और आश्चर्यजनक खबरें आने लगी थीं...कि कैसे वायरस के विषय में बताने वाला डॉक्टर रातों-रात गायब हो गया...लोगों का सड़कों पर खुला घूमना अपराध माना जाने लगा और उन्हें चीन के प्रशासन वाले पकड़ पकड़ कर जानवरों की तरह ले जाने लगे...रातों-रात चीन में कैसे अस्पताल बनाए जाने लगे.. चीन में पढ़ने वाले विदेशी बच्चे अपने घर जाने की गुहार लगाने लगे वगैरह-वगैरह..। चीन में टोटल लॉकडाउन था, लोग घरों में कैद थे और सारी सड़कें सूनी थीं। सैकड़ों की संख्या में लोगों को वायरस रातों-रात निगलने लगा था। समाचार में, पत्रिकाओं में, सोशल मीडिया में - हर जगह चीन से और दूसरे देशों से भी अब भयानक तस्वीरें आने लगी थीं।

मार्च के शुरुआती दिनों में इटली पूरी तरह से कोरोना की चपेट में दिखाई दिया।एक-दो दिनों में ही इटली,स्पेन और यूरोप से जो खबरें आने लगीं, वे अत्यंत ही डरावनी थीं।इटली में ईलाज की सामग्रियों का अभाव दिखने लगा था,अस्पतालों में रोगियों के लिए जगहें समाप्त हो गयीं थीं और हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन मर रहे थे।यूरोप के दूसरे देशों से भी खबरें भयावह थीं। अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजार पर असर दिखाई देने लगा था और फिर जो खबरें लगातार आनी शुरू हुईं,उनसे सारा विश्व सकते में आ गया। 11 मार्च को डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को सर्वव्यापी महामारी यानि Pandemic घोषित कर दिया।वैश्विक स्टॉक बाजार इस घोषणा के बाद औंधे मुंह गिर पड़ा। नेपाल सरकार ने हिमालय की यात्राएँ स्थगित कर दीं,जापान में होने वाले ओलंपिक खेलों पर प्रश्न चिह्न लग गया और फिर आरंभ हुआ सरहदों, सीमाओं को बंद करने का सिलसिला। विश्व के कई देशों ने अपनी सीमाएँ बंद करनी शुरू कर दी थीं। लोग घर वापस जाने की होड़ में यहाँ-वहाँ फंसने लगे थे।एयरपोर्ट पर जाँच और सुरक्षा के लिए कार्य आरंभ हो गए थे।बाहर से आने वालों को क्वारन्टाइन करने की प्रक्रिया अपनायी जाने लगी थी।भारत में भी कोरोना वायरस ने पैर फैलाना आरंभ कर दिया था।


मार्च की शुरुआत होते होते सारे विश्व में नए तौर-तरीकों को दैनिक दिनचर्या में शामिल करने की बात होने लगी थी... जैसे मास्क लगाना, 20 सेकंड तक साबुन से रगड़ रगड़ कर हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग यानी इंसान-इंसान के बीच दो गज की दूरी बना कर रखना आदि।यह बात अब साबित हो चुकी थी कि इस बीमारी का पूरी दुनिया में किसी भी देश के पास कोई इलाज नहीं है और इसकी समाप्ति का बस एक ही तरीका है कि आदमी एक दूसरे से दूरी बनाकर रखे ताकि वायरस की बढ़ती श्रृंखला को रोका जा सके। इस वायरस का संक्रमण छींकने, खाँसने या संक्रमित लोगों द्वारा नजदीक से बात करने पर फैलता है या किसी भी बाहरी चीज से संक्रमण असावधानी की वजह से लोगों में प्रवेश कर अपना दुष्परिणाम दिखा सकता है-ऐसी बातों को तेजी से जनता को समझाने का प्रयास किया जाने लगा था।होली के त्योहार आने तक कोरोना का डर भारत में भी शहरों पर हावी होने लगा था।होली के रंग 2020 में बड़े फीके से रहे। लोगों ने होली या तो मनायी नहीं या मनायी भी तो दूर दूर से ही एक-दूसरे पर रंग फेंक फेंक कर ।खानपान भी हल्का-फुल्का ही रहा। लोग मिले भी तो दूर-दूर से। एक नए तरीके और अनोखे अदब की होली 2020 में देखी गई। अब लोग कोरोना मामले की संजीदगी के विषय में बहुत ध्यान देने लगे थे और बाजार से लाई गई फल- सब्जी वगैरह कैसे साफ करें,सामान कैसे सैनिटाइज करें,खुद को कैसे घर-बाहर और ऑफिस के लिए तैयार करें- इस बारे में बातें करने लगे थे। सोशल मीडिया, समाचार पत्रों, टीवी चैनलों- सभी जगह सावधानियों के ऊपर चर्चा और डिबेट शुरू हो गई थी। फिर आया 22 मार्च के रविवार का वह दिन, जब प्रधानमंत्री ने लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए "जनता कर्फ्यू" का ऐलान किया, जो सुबह 7:00 बजे से रात के 9:00 बजे तक चलना था। जनता कर्फ्यू बहुत सफल रहा और सभी लोगों ने बड़े उत्साह से प्रधानमंत्री की आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य समझा। प्रधानमंत्री ने इस दिन शाम को ठीक 5:00 बजे थाली, घंटी,शंख आदि बजाकर कोरोना से लड़ने वाले वॉरियर्स और सुविधाएँ घर-घर तक पहुँचाने वाले सेवा प्रदाताओं का उत्साह बढ़ाने और धन्यवाद करने हेतु समस्त देश के लोगों का आह्वान किया। 5 बजते ही एक अजीब अनोखा दृश्य दिखा। जो जहाँ था, वहीं से थाली, ताली, घंटा, शंख आदि बजा रहा था। अमीरी-गरीबी, धर्म, जाति- सबसे ऊपर उठकर एक सूत्र में बंधा समस्त देश उस 5 मिनट के लिए मानो एकाकार सा हो गया था। यह अनुभव सचमुच भावुक करने वाला था। मार्च के आखिरी दिनों में समस्त देश कोरोना वायरस से घिर चुका था। इसी बीच 21 दिनों का टोटल लॉकडाउन घोषित हो गया और मीडिया पर पल-पल की अपडेट्स और विशेषज्ञों की सलाह आने लगी। हर मोबाइल से एक ऐप और संदेश जुड़ गया था,जो लोगों को सुरक्षा-सावधानियाँ बताता रहता था। लोग पूरी तरह से अब कोरोना वायरस की गिरफ्त में थे।


टोटल लॉकडाउन में बहुत सारी चीजें एक साथ हुईं। बेवजह सामान की खरीदारी इस डर की गयी कि पता नहीं यह परिस्थिति कब तक रहे... घर की कामवालियों और सेवादारों को घर आने से रोका जाने लगा ताकि उनकी और अपनी सलामती की जा सके।यातायात,ऑफिस,फैक्ट्रियाँ बंद कर दिये गए तो कई लोग बेरोजगार होकर सड़कों पर आ गए...दूरदराज रहने वाले मजदूर लोग खौफजदा और बेरोजगार होकर पैदल ही घर की ओर निकल पड़े...जत्थे का जत्था सड़कों पर मीलों पैदल चलकर घर जाने को विवश हो गया... वर्क फ्रॉम होम की नीति अपनाई जाने लगी.. डिजिटल होता भारत घर में बंद होकर भी एक दूसरे से जुड़ने लगा... मजदूरों और बीमारों की यथासंभव मदद की तैयारियाँ की जाने लगीं,लोग बढ़-चढ़कर एक दूसरे की मदद में आगे आने लगे.. सोशल मीडिया पर लोगों की बहुत सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ आने लगीं।सब एक दूसरे की हिम्मत बढ़ाते नजर आए। यह बात कि यह वायरस,छींकने, खाँसने और इधर उधर की चीजें छूकर आँख,नाक,मुँह,कान आदि असावधानी से छूने से फैलता है,आपस की शारीरिक दूरी से ही इस वायरस की बढ़ती श्रृंखला को रोका जा सकता है,अब समस्त विश्व समझ चुका था और विश्व के हर देश में अब टोटल लॉकडाउन की प्रक्रिया अपनायी जा रही थी।लोगों को चीन से आने वाली तस्वीरों के पीछे की दहशत अब साफ-साफ दिखाई देने लगी थी।एक तथ्य यह भी था कि इस वायरस को अमीरी-गरीबी, धर्म, जाति,प्रांत, देश,भाषा आदि से कुछ भी लेना देना नहीं था और यह कभी भी किसी को भी अपनी गिरफ्त में ले सकता था।इस दृष्टि से हर एक को बचने की जरूरत थी।इंगलैंड हो या अमेरिका, रशिया हो या यूरोप-विश्व का हर बड़ा-छोटा देश खौफजदा था और मास्क,सैनेटाइजर,सोशल डिस्टेंसिंग जैसी चीजें अपना रहा था।बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक,डॉक्टर, व्यवसायी- सभी बचने और बचाने की प्रक्रिया से गुजर रहे थे।इस बीच कई लोग मानसिक असंतुलन की दौर से गुजरकर आत्महत्या जैसे कदम भी उठाने लगे थे।कितनों ने अपनों को खोया..हर तरफ से नकारात्मक खबरें आने लगीं...।परन्तु, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और जल्दी हार नहीं मानता।ऐसे में लोगों ने आत्मनिर्भरता के भी कदम उठाने शुरु किए।बड़े-छोटे देशों की आपसी होड़ ने राजनीति में भी असर दिखाया।चीन ने मास्क,सैनेटाईजर,पी पी ई जैसी सुरक्षा-सामग्रियाँ पहले ही अपने देश के लिए खरीद ली थीं और अब ऊँचे दामों पर दूसरे देशों को बेचने लगा था।विश्व में जब इन सुरक्षा-सामग्रियों की बुरी तरह से माँग बढ़ गई तब चीन ने अपना व्यवसायिक रुख दिखाना आरंभ किया।गरीब और छोटे देश,जो सुरक्षा सामग्रियों के मामले में परेशानियों से जूझ रहे थे, एकजुट होकर इन वस्तुओं के उत्पादन की सोचने लगे।ऐसे में भारत सहित बहुत से अन्य देशों ने आत्मनिर्भरता की नीति अपनाते हुए स्वयं ही उत्पादन आरंभ कर दिया और अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हुए इनका निर्यात भी करने में सफल रहे।इस दृष्टि से कोरोना उनके लिए एक तरह से वरदान ही साबित हुआ।बहुत सी सरकारी और निजी संस्थाएँ मदद हेतु आगे आयीं और हर भेदभाव भूलकर लोग भी एक दूसरे का सहारा बनकर खड़े होने लगे।एक आशा की किरण नजर आने लगी और जब प्रधानमंत्री के आवाहन पर समस्त देश ने पुनः 5 अप्रैल की रात दिवाली की तरह अपनी देहरी पर उम्मीदों का दिया रोशन किया तब एक बार फिर लगा कि इस उम्मीदों की चकाचौंध करती रोशनी में कोरोना वायरस का अंत हो जाएगा.. परंतु, परीक्षा अभी बाकी थी शायद।


लोगों की बेरहमी से तंग प्रकृति अब खुलकर सांसे लेने तो लगी थी परंतु उसका क्रोध कम नहीं हुआ था।हवा स्वच्छ हो गयी थी.. दूर से ही हिमालय की चोटियाँ नजर आने लगीं थीं.. नदियाँ निर्मल धाराओं से भर गयीं थीं और पशु पक्षी शहरों की सूनी सड़कों तक देखे जाने लगे थे।लेकिन,प्रकृति ने खुद को दूषित करने की सजा मनुष्यों को देना जरूरी समझा था शायद….कहीं चक्रवाती तूफान की तबाही, कहीं भूकंप तो कहीं हर दिन मीलों तक खुदी जाने वाली कब्रों की तस्वीरें दहशत को मानो हर दिन बढ़ाने लगी थीं। जगह जगह पर भयंकर तूफान, चक्रवात,जलजमाव, भूकंप, आगजनी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्य को डराने लगी थीं। सरकार और प्रशासन के अथक प्रयास के बाद भी कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। लोग अपने ही घरों में नजरबंद थे... सड़कों पर निकलना, लोगों के नजदीक जाना गुनाह माना जाने लगा था।


इस बीच अच्छा यह हुआ कि कई जगह घर परिवार में आपसी संबंध एक बार फिर से जुड़े.. भागती जिंदगी जैसे थम कर अपने आपको नजर भर देखने लगी। घर का गर्म खाना बच्चों के लिए स्वस्थ आहार बना... पिज़्ज़ा,बर्गर कुछ दिनों के लिए किनारे कर दिए गए... नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी को एक दूसरे को समझने का समय मिला... भागती नई पीढ़ी रुक कर पुरानी पीढ़ी से मिलने लगी... घर के कामकाज लोग मिलजुलकर करने लगे, जिससे अधिकतर घरों के बिगड़ते संबंध सुधरे,हालांकि कई जगहों पर उल्टा भी हुआ और मानसिक परेशानियों के कारण संबंध बिगड़े भी ... परन्तु, इन सबके बीच बड़े बुजुर्गों को अपने व्यस्त बेटे-पोतों के साथ समय बिताने का सुखद संयोग मिला। इस बीच सब ने मिलकर राह चलते मजदूरों के लिए भी खाने और रहने की व्यवस्था की... मास्क बनाने के लिए कई लोग और कई संस्थाएँ आगे आयीं, आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा लोगों में भी जगी।जूम, गूगलमीट,वेबेक्स जैसी साइट्स पर शादियाँ,कवि-गोष्ठियाँ, मीटिंग वगैरह की जाने लगीं... लोगों ने डिजिटल दुनिया का अनोखा लुत्फ उठाया। बीच-बीच में देश-विदेश से डरावनी खबरें भी आती रहीं। अमेरिका जैसा सुपर पावर कोरोना के आगे घुटने टेकता नजर आया। अब तक सारा विश्व वैक्सीन की खोज में जुट चुका था।


जून-जुलाई आते-आते अनलॉक की प्रक्रिया पर जोर दिया जाने लगा क्योंकि देश दुनिया की आर्थिक स्थिति भयानक रूप से प्रभावित होने लगी थी। प्रधानमंत्री के कहने पर लॉकडाउन के दिनों में पुराने धारावाहिक 'रामायण' और 'महाभारत' पुनः प्रसारित किए जा रहे थे और यह देखकर अच्छा लग रहा था कि नई पीढ़ी भी बड़े चाव से यह धारावाहिक देख रही थी और वेस्टर्न म्यूजिक की बजाय तुलसी के दोहे गा रही थी। इसी बीच कुछ नए फैसले सामने आए और अयोध्या एक बार फिर सजधज कर रामलला के स्वागत के लिए तैयार होने लगी। फिर आया बारिश का मौसम और यह शंका कि बारिश की वजह से कोरोना बढ़ सकता है, लोगों में एक बार फिर दहशत बढ़ाने लगी। अवसाद की वजह से पुनः कई जगहों से सुसाइड की खबरें भी आती रहीं। कई बड़े राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, खिलाड़ी इस दुनिया को छोड़ कर अनंत यात्रा पर चले गए। मृत्यु की संख्या बढ़ने लगी थी।लोग परेशान भी थे और हालात से जूझने को तत्पर भी।


जुलाई-अगस्त समाप्त होते-होते थोड़ी सावधानी के साथ सेवादारों का आना-जाना शुरू होने लगा । घरों में कामवालियाँ अब कहीं-कहीं बुलायी जाने लगी थीं। ऑफिस रोज की तरह आरंभ हो गया। हाँ, ऑफिस में और वहाँ से लौटकर घर आने पर पूरी सावधानी रखी जा रही थी...लेकिन, पहले की तरह मिलना-जुलना अब भी बंद था। कभी जरूरत हुई भी तो दूर-दूर बैठकर मास्क और सैनिटाइजर के साथ मीटिंग होती थी। पारिवारिक संस्कारों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सीमित कर दी गई थी। किसी-किसी शहर में थोड़े बाजार खुलने लगे थे परंतु स्कूल और परीक्षाओं को लेकर चर्चा अभी भी जारी थी। सावन भादो के त्योहार घरों में ही बीते.. पूजा स्थल सारे बंद थे तो ईद और जन्माष्टमी की धूम भी फीकी रही। विश्व के दूसरे देशों में भी कमोबेश यही हालत रही। शैक्षणिक संस्थाएं बंद थीं,यातायात के सभी साधन बंद थे और लोग घरों में रहने को विवश थे।इसी बीच लेबनान में एक दुखद घटना घटी। एक बम ब्लास्ट हुआ और शहर की तबाही आ गई।ऐसी ही छोटी बड़ी दिल दहलाने वाली अन्य घटनाएँ विश्व के दूसरे कोने में भी देखी गयीं।

सितंबर में स्थिति सामान्य बनाए जाने की कोशिश जारी थी। कुछ होटल,मॉल वगैरह खुले लेकिन पूजास्थल अभी भी बंद रखे गए थे।विदेशों में भी पर्यटक स्थल, शैक्षणिक संस्थाएं बंद रखी गयीं पर लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कुछ बाजार और मॉल खोले गए। भारत में दशहरे का त्यौहार बहुत ही साधारण रहा... मूर्तियाँ, पंडाल, रावण-दहन--हर बार की तरह इस बार कुछ भी नहीं था। इक्का-दुक्का पंडाल बने। सोशल मीडिया पर लोगों ने पिछले वर्ष के पंडालों और मूर्तियों को याद किया और एक-दूसरे को तस्वीरें भेज-भेज कर त्यौहार के व्यवहार पूरे किए। हाँ,घर में पूजा-पाठ हर वर्ष की तरह ही पूरी श्रद्धा से हुए। लोगों ने इस वर्ष भी मन से देवी की अराधना की।


नवंबर की दिवाली और दूसरे त्योहार भी यूँ तो हर वर्ष की तुलना में फीके ही रहे परंतु फिर भी लोगों ने हार नहीं मानी और अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर त्योहार का पूरा आनंद लिया। हर बार की तरह मिलना-जुलना नहीं हो पाया। कोई बाहर निकला भी या छुट्टियों में कहीं बाहर या घर गया भी तो पूरी सावधानी बरतते हुए। रेलगाड़ियाँ, हवाई सेवा आदि आरंभ तो हुई पर सीमित मात्रा में जरूरी निर्देशों के साथ। वैक्सीन की चर्चा अब जोर पकड़ने लगी थी।


दिसंबर की सर्दियाँ अब शुरू हो गई हैं और अब लोगों को बेसब्री से वैक्सीन का इंतजार है। लगभग पूरे साल घरों में बंद इंसानों ने अपने हिसाब से हर फ्रंट पर अपनी लड़ाई लड़ी है और कोरोना वायरस को हराने का जोश बरकरार रखा है। कोविड की दहशत अभी तक गई नहीं है परंतु एक उम्मीद अब लोगों में घर कर चुकी है कि जल्दी ही इस समस्या से निजात मिलने वाली है और इंसान एक बार फिर से पहले की तरह आजाद और भयमुक्त होकर घूम फिर सकेगा। इंसान जैसा सामाजिक प्राणी जल्दी हार नहीं मानता तभी तो वह अन्य जीवों से ऊपर है। उसका प्रयास अब रंग दिखाने लगा है और वैक्सीन का ट्रॉयल आरंभ होकर अपने अंतिम दौर में पहुँच चुका है। जल्दी ही यह वैक्सीन बाजार में आने वाली है और अब हम सब कोरोना जैसी महामारी से मुक्त होने की राह देख रहे हैं।


2020 समाप्त होने को है.. परंतु, जाते-जाते इसने न जाने कितने सारे सबक एक साथ सिखा दिए हैं।2020 का हर महीना, हर दिन एक सीख लेकर आया है, जो एक सुनहरे भविष्य को गढ़ने में इंसानों की मदद करेगा। कई नए शब्द और नए व्यवहार हमारी जिंदगी से जुड़ गए हैं और ताउम्र हमें सही रास्ता दिखाते रहेंगे।कोरोना ने हमें चक्रवात, आर्थिक नुकसान, मानसिक तनाव,युद्ध जैसी स्थितियाँ ही नहीं दिखायीं बल्कि हमें संघर्ष करना सिखाया, स्वच्छता सिखाई, सावधानियाँ बतायीं, एक दूसरे की मदद करना सिखाया, प्रकृति को सहेजा, अन्न की कीमत समझायी,विपरीत परिस्थितियों में मानसिक संतुलन बनाये रखना सिखाया और बताया कि कम खर्च में भी हम कैसे अपने शौक पूरे कर सकते हैं,घर में रहने के लिए आवश्यक संयम दिया,एक-दूसरे का हाथ बँटाना सिखाया, भविष्य में आने वाली किसी भी बड़ी विपदा से निपटने की मानसिक तैयारी कराई,आपसी भेदभाव मिटाया और जिन पूजा स्थलों पर हम जाते थे, उस परम शक्ति, ईश्वर का घर घर में दर्शन कराया, आध्यात्मिक चिंतन करना सिखाया और जीवन का सही मूल्य समझाया। सच कहा जाए, तो 2020 का वर्ष कोरोना महामारी लेकर आया जरूर, परंतु हमें कई मामलों में आईना दिखा गया। उम्मीद है, इस वर्ष में मिले अनुभव हम सब को एक बेहतर इंसान बनाएँगे और विश्व को एक सकारात्मक दिशा देंगे।

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अर्चना अनुप्रिया

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