top of page

"मेरी वेलेंटाइन--किताबें"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Feb 17, 2024
  • 3 min read

"मेरी वेलेंटाइन--किताबें.."

जब सरस्वती पूजा और प्रेम दिवस साथ-साथ आये तब पढ़ने पढ़ाने का उत्साह बढ़चढक़र आनंदित करता है...मेरे लिए तो किताबें ही मेरी वेन्टाइन हैं..खुश हो जाती हूँ जब वे आसपास दिखती हैं.. वैसे तो प्रेम का या पढ़ने- लिखने का कोई विशेष दिन नहीं होता,कभी भी कुछ भी पढ़ा लिखा जा सकता है,परन्तु जब लोक मान्यताओं के अनुसार दिवस को खास करने के हिसाब से भी दोनों एक साथ मनाये जायें तो फिर तो कहना ही क्या..उस पर से पुस्तक मेला..जिधर नजर घुमाओ..किताबों के रूप में वेलेंटाइन ही वेलेंटाइन..

लम्बे गैप के बाद इस बार पुस्तक मेले में जाना हुआ..2020 में लॉकडाउन से पहले अंतिम बार जाना हुआ था।उसके बाद कोरोनाकाल लंबा चला,फलस्वरूप,पिछले वर्ष 2023 में ही पुस्तक मेले का आयोजन हो पाया था। पिछले वर्ष वनिका पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित मेरे कहानी-संग्रह, "चौखट पर खड़ी धूप" का विमोचन आदरणीया नीलम कुलश्रेष्ठ दीदी तथा अन्य गणमान्य गुणीजनों के कर कमलों से हुआ था परन्तु, तबीयत खराब होने की वजह से मैं स्वयं नहीं जा पायी थी।इस बार जब मेले में गयी तो नजारा ही बदला हुआ लगा।विशाल भारत मंडपम् में सुनियोजित तरीके से निर्मित और सुसज्जित प्रकाशन-घरों में पुस्तकें भी अपने-अपने स्टैंड पर मुस्कुराती पाठकों के स्वागत में खड़ी थीं।उन्हें भी पाठकों से साल भर का बिछोह कहाँ रास आता होगा भला.. सो सब खुशी से चहकती सी लग रही थीं।सम्पूर्ण हॉल रौशनी से जगमग था और हर लेन लोगों की आवाजाही से स्पंदित।वनिका पब्लिकेशन में नीरज दीदी के साथ काफी देर तक बैठकर विभिन्न किताबों पर बातें होती रहीं,माँ सरस्वती की पूजा का प्रशाद खाया गया और कई किताबें खरीदी गयीं।खरीदी हुई किताबों को पढ़ने की लालसा में दीदी से विदा लिया और इधर उधर घूमघाम कर मेले का आनंद लेती हुई मैं बाहर निकली। बाहर गेट से निकलते ही प्रधानमंत्री के पुस्तक पकड़े हुए कट आउट लगे दिखे,जहाँ लोग अपनी खरीदी हुई पुस्तक चिपकाकर तस्वीरें क्लिक करवा रहे थे मानो प्रधानमंत्री स्वयं उन्हें पुस्तक भेंट कर रहे हों।मन तो मेरा भी हुआ लेकिन,अगले ही पल मन ने कहा कि ऐसे बनावटी फोटो नहीं, कुछ ऐसा अच्छा लिखो कि स्वयं जाकर शीर्ष लोगों संग पुस्तक लेने- देने के दिन आयें।मन चुपके से हँस दिया...तभी सामने फूड स्टॉल पर चाय उबलती दिखी तो बस कदम उस ओर बढ़ गये।पहले खाने पीने वाली जगहें भीड़ भरी रहती थीं.. धक्कामुक्की करते सब चिल्ला रहे होते थे...भैया एक बर्गर देना...भैया चाट बना दीजिए वगैरह वगैरह..इस दफा सब कुछ बड़ा ही व्यवस्थित लगा।टेबल-कुर्सियां लगी थीं..फूड कोर्ट के अच्छे मँहगे ब्रांड भी नजर आये।एक कुर्सी खींचकर मैं बैठ गयी और चाय ऑर्डर कर दिया।चाय की चुस्कियाँ लेती मैं भारत मंडपम् की खूबसूरती और विशालता निहारती रही।सामने फव्वारे चल रहे थे और मन का गुब्बारा यह खूबसूरत नजारा देखकर उड़ा जा रहा था।सचमुच, बदलाव जीवन में कितना आकर्षण लाता है..प्रकृति ने इसीलिए तो परिवर्तन को अपना आधार बना रखा है ताकि सृष्टि में जीवन हर पल नया लगे और जीवात्माओं को आकर्षित करता रहे..पहले भी व्यवस्था अच्छी ही रहती थी मगर इस दफा सुसज्जित और नयी-नयी सी लगी।मुझे सभी पुस्तकें इस बदलाव से बहुत खुश लगीं और अपने वेलेंटाइन को खुश देखकर मैं भी प्रफुल्लित हो रही थी।सामने सूरज अस्ताचल से हाथ हिलाकर कल आने का वादा करता विदा ले रहा था।आँखों ने एक बार फिर अपनी वेलेंटाइन ,किताबों को जी भरकर निहारा और मन उनसे फिर मिलने का वादा करके कदमों को बाहर निकलने के लिए कहने लगा।

अर्चना अनुप्रिया

Comentarios


bottom of page