"हाय ये मौसम..गर्मी में दे सर्दी का अहसास"
- Archana Anupriya
- May 4, 2023
- 1 min read
हर सर्दी में एक पोस्ट व्हाट्सएप पर बहुत बार आता रहता है..
“ ऐ ठंड इतना ना इतरा*
हिम्मत है तो मई-जून में आ कर दिखा"
इन्सानों के इस चैलेंज को मौसम ने ऐसा कबूल किया है कि सुबह सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे,न ही पंखा-ए.सी. चलाने की जरूरत पड़ रही है…गर्मी के मौसम में सर्दी का अहसास हो रहा है।सचमुच, कुदरत ने जता दिया है कि कुदरती नियामतों से खिलवाड़ करने के परिणाम भुगतने का समय आ गया है।मई-जून के महीने में घरों के ए.सी.,पँखे बंद हैं और गीजर चल रहे हैं।दूर दूर तक याद करूँ तो एक ऐसा वाकया याद नहीं आता जब बैसाख और जेठ के महीने में पंखे बंद रहे हों या कभी सोते हुए चादर या रजाई ओढ़ने की जरूरत पड़ी हो।आखिर ऐसा क्यों हो रहा है..?जवाब हम सभी जानते हैं।हाँ,यह अलग बात है कि इसके समाधान के लिए हमें जो करना चाहिए,उतनी ईमानदारी से अभी भी कर नहीं रहे हैं। प्रकृति की हर चीज एक दूसरे से जुड़ी है और एक का बदलाव सभी को प्रभावित करता हुआ एक वृहद बदलाव लेकर आता है।करोड़ों वर्षों से प्रकृति ऐसे ही विकसित होती आयी है और हर बदलाव के साथ कुछ चीजें विलुप्त और कुछ नयी निर्मित होती रही हैं।ये ग्लोबल वार्मिंग,ग्लेशियरों का पिघलना,जलवायु परिवर्तन, मौसमी बदलाव.. सब यूँही अचानक से अस्तित्व में नहीं आये हैं,हजारों कारण हैं इन सबके पीछे।इन्सानों से गल्तियाँ होती रहीं और वे जानते बूझते नजरअंदाज करते रहे हैं।अब जब पानी सिर के ऊपर आने लगा है,परेशानियों से दो-चार हो रहे हैं, तब जाकर इस तरफ ध्यान देना आरंभ किया है हमने।अब भी सँभल जायें तो शायद आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ सकारात्मक बदलाव कर पायें।
©
अर्चना अनुप्रिया।
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