"युवा पीढ़ी के भटकाव को रोक सकते हैं स्वामी विवेकानंद जी के विचार"
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"युवा पीढ़ी के भटकाव को रोक सकते हैं स्वामी विवेकानंद जी के विचार"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Jul 3
  • 7 min read

Updated: Jul 9


युवा पीढ़ी के भटकाव को रोक सकते हैं स्वामी विवेकानंद जी के विचार”


आज दुनिया के हर माता-पिता को इस बात से शिकायत है कि उनके बच्चे उनकी नहीं सुनते, अपने मन की करते हैं,उनकी भावनाएं बदल गयी हैं,रहन-सहन, खान-पान– सब परिवर्तित हो गया है… कुछ या तो संवेदनहीन हो गये हैं कि उन्हें किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता या फिर कुछ इतने संवेदनशील हो गये हैं कि छोटी से छोटी बात भी उन्हें असर कर जाती है और वे जिंदगी से मायूस होकर गलत कदम उठाने लग जाते हैं।देखा जाये तो, नयी पीढ़ी से ऐसी शिकायतें कोई आज की ही बात नहीं है।पहले भी पुरानी पीढ़ियों को नयी पीढ़ियों से शिकायतें रही है। लेकिन,आज बात-बात पर आपसी टकराव और जिंदगी से मायूसी कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई दिखाई देती है।युवा पीढ़ी अपनी अंदरूनी शक्ति को भूलकर विभिन्न संस्कृतियों के बीच भटकती नजर आ रही है। जरूरी है कि उन्हें सही दिशा की तरफ मोड़ा जाये और तब ऐसे में सबसे पहले याद आते हैं,स्वामी विवेकानंद जी,जो हर युवा के आदर्श होने चाहिए और जिनकी बातें हर व्यक्ति को सही मार्ग की ओर मोड़ सकती है।


विवेकानंद ने युवाओं के लिए कहा था ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए‘‘। वे युवाओं में आशा और उम्मीद देखते थे। उनके लिए युवा पीढ़ी परिवर्तन की अग्रदूत है। उन्होंने कहा था- “युवाओं में लोहे जैसी मांसपेशियां और फौलादी नसें हैं, जिनका हृदय वज्र तुल्य संकल्पित है।“ वह चाहते थे कि युवाओं में विशाल हृदय के साथ मातृभूमि और जनता की सेवा करने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो। उन्होंने युवाओं के लिए कहा था “जहां भी प्लेग या अकाल का प्रकोप है, या जहां भी लोग संकट में हैं, आप वहां जाएं और उनके दुखों को दूर करें“ आप पर देश की भविष्य की उम्मीदें टिकी हैं।स्वामी विवेकानंद की युवाओं से उम्मीदें, विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति की पुरजोर स्थापना और साहसी आत्मिक बल समस्त युवा पीढ़ी के लिए आदर्श स्थापित करता है जिससे हर युवा मार्गदर्शन ले सकता है।दरअसल, स्वामी विवेकानंद भारत के पहले ऐसे धार्मिक नेता थे, जिनका यह मानना था कि जनता ही जनार्दन है। जनता की उपेक्षा करने से देश पिछड़ जाएगा। सदियों से चले आ रहे दमन के कारण सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की अपनी क्षमता पर उन्होंने प्रश्नचिन्ह लगाया। उन्होंने महसूस किया कि गरीबी के बावजूद, जनता धर्म से जुड़ी हुई है, क्योंकि जनता को यह नहीं सिखाया गया है कि वेदांत के जीवनदायी सिद्धांतों कैसे अपनाया और उन्हें व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार से धारण किया जा सकता है।वे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार करने, आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक बल को मजबूत करने में शिक्षा को ही एकमात्र साधन मानते थे। उनके शब्दों में शिक्षा मनुष्य को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार करने में मदद करती है और  चरित्रवान, परोपकार तथा साहसी बनाती है। इसीलिए इसकी शुरुआत बचपन से ही की जानी चाहिए।दिव्यात्मा स्वामी विवेकानंद ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका की कल्पना की।स्वामी जी का दर्शन भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत हैं। वे महान विचारक, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी, कवि और युवा संरक्षक थे। स्वामी विवेकानंद के दिखाए रास्ते पर चलकर ही एक भारत-श्रेष्ठ भारत, आत्म निर्भर भारत, स्वस्थ भारत और भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना साकार किया जा सकता है।


स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो प्रत्येक युवा के आदर्श बन सकते है। उन्होंने युवाओं का आहृवान करते हुए कहा था कि निराशा, कमजोरी, भय तथा ईर्ष्या युवाओं के सबसे बड़े शत्रु हैं। उन्होने युवाओं को जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने का स्पष्ट संकेत दिया और कहा कि तुम सदैव सत्य का पालन करो, विजय हमेशा तुम्हारी होगी।स्वामी जी का युवाओं हेतु एक महत्वपूर्ण संदेश था– “संभव की सीमा जानने का एक ही तरीका है, असंभव से भी आगे निकल जाना”। उनका मानना था कि 'हम जो भी हैं अपनी सोच की वजह से हैं इसलिए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं परन्तु विचार रहते हैं और वे दूर तक यात्रा करते हैं'।भारतवर्ष युवाओं का राष्ट्र है, इसीलिए,उनकी सभी शिक्षाओं को नयी पीढ़ी के जीवन में उतारना जरूरी है।स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं में सशक्तिकरण और सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में ज्ञान और शिक्षा की खोज पर भी जोर दिया गया। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने व्यक्तियों के भीतर की सुप्त क्षमता को जागृत किया, उन्हें करुणा, साहस और मानवता की सेवा की भावना से भरा उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।स्वामी विवेकानंद ने हमेशा ही युवाओं में नई क्षमताएं और ऊर्जा देखी।वह युवा पीढ़ी के मार्गदर्शक थे।वह शिक्षा को एक मात्र जरिया मानते थे जो आध्यात्मिक ज्ञान और नैतिक बल को मजबूत कर सकता है। उनके अनमोल विचार प्रेरणादायी हैं और युवाओं में नई संकल्प शक्ति का संचार करते हैं।स्वामी विवेकानंद कहते थे कि “तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता और न ही कोई आध्यात्मिक बना सकता है। तुमको सब कुछ खुद भीतर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है।”स्वामी विवेकानंद का ये कथन युवाओं को प्रेरणा से भर देता है कि जिस प्रकार केवल एक बीज पूरे जंगल को पुनर्जीवित करने के लिए पर्याप्त है, ठीक उसी प्रकार से एक ही मनुष्य विश्व में बदलाव लाने के लिए पर्याप्त है।”उनका कहना था कि पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और अंत में उसे स्वीकार कर लिया जाता है।”वह कहते थे कि बहुत सी कमियों के बाद भी हम खुद से प्रेम करते हैं तो दूसरों में एक कमी से घृणा कैसे कर सकते हैं?उनके अनुसार  “युवा वही होता है जिसके हाथों में शक्ति, पैरों में गति और हृदय में ऊर्जा व आंखों में सपने होते हैं…जब तक आप स्वयं पर विश्वास नहीं करेंगे तब तक आप ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते हैं।”उनकी ये बातें युवाओं में जबरदस्त आत्मविश्वास पैदा करती हैं।इस पंक्ति से भलाई करने की प्रेरणा मिलती है कि यदि धन दूसरों की भलाई करने में मदद करता है तो इसका कुछ मूल्य है,अन्यथा यह केवल बुराई का ढेर है, और इससे जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाए उतना ही बेहतर है।उन्होंने सदैव युवाओं को आध्यात्मिक रहने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि भारत की आध्यात्मिकता का कोई सानी नहीं है। वह सदैव आध्यात्मिक चेतना के रूप में सामाजिक चेतना को भी जागृत कर समाज हित, देश हित हेतु निरंतर कार्य करते रहे।

स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए सबसे महत्वपूर्ण संदेशों में से एक आत्मनिर्भरता की शक्ति और व्यक्तिगत प्रयास का महत्व था। उनका मानना ​​था कि सच्ची सफलता और खुशी केवल अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं को विकसित करके ही प्राप्त की जा सकती है, न कि धन या सामाजिक स्थिति जैसे बाहरी कारकों पर निर्भर रहने से। उन्होंने लोगों को मार्गदर्शन और सहायता के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के बजाय अपनी आंतरिक शक्ति विकसित करने और अपने जीवन की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित किया।सभी धर्मों की एकता और आध्यात्मिक सत्य की सार्वभौमिकता पर उनका जोर है। उनका मानना ​​था कि सभी धर्म एक ही अंतर्निहित आध्यात्मिक सत्य की अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ हैं और विभिन्न धर्मों के लोगों को एक-दूसरे से सीखने और एक-दूसरे की मान्यताओं का सम्मान करने का प्रयास करना चाहिए। सहिष्णुता और आपसी समझ का यह संदेश आज की दुनिया में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन अक्सर संघर्ष और विभाजन का स्रोत होते हैं।विवेकानंद का आत्म-सुधार और आत्म-साक्षात्कार पर जोर उन युवाओं को भी आकर्षित करता है जो अपनी क्षमता विकसित करने और दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव डालने के तरीके खोज रहे हैं। उनका मानना ​​है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर महानता हासिल करने की क्षमता है, अगर वे कड़ी मेहनत करें और खुद पर विश्वास रखें, तो यह एक ऐसा संदेश है जो आज कई युवाओं के साथ गूंजता है।इसके अतिरिक्त, शिक्षा के महत्व और लोगों को अपनी क्षमता विकसित करने के अवसर प्रदान करने में उनका विश्वास वर्तमान युग में भी प्रासंगिक बना हुआ है क्योंकि यह व्यक्तियों के समग्र विकास में मदद करता है। इससे व्यक्तियों को अपनी स्वयं की आत्म-केंद्रितता पर काबू पाने और दूसरों को लाभ पहुँचाने वाले तरीके से जीने में मदद मिल सकती है। दुनिया और अपने आस-पास के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालकर, व्यक्ति अपने जीवन में अधिक अर्थ और उद्देश्य पा सकेंगे। उन्होंने शिक्षा के महत्व और दुनिया को समझने के लिए एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उनका मानना ​​था कि शिक्षा का उद्देश्य आलोचनात्मक सोच और स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देना होना चाहिए, और इसे केवल ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत और सामाजिक विकास को प्राप्त करने के साधन के रूप में शिक्षा पर यह जोर आज भी कई विकासशील देशों के संदर्भ में प्रासंगिक है।


आज की दुनिया में स्वामी विवेकानंद का महत्व


आज के दौर में युवा कई समस्याओं से ग्रसित है। वह अपने भविष्य के निर्माण हेतु कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अतः आज स्वामी जी के विचार उनके लिए और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। वे अपने विचारों, आदर्शों लक्ष्यों के वजह से आज भी प्रासंगिक है।धर्मों की विविधता के बावजूद एकता, सहिष्णुता और आपसी समझ का स्वामी विवेकानंद का संदेश आज की दुनिया में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ धार्मिक संघर्ष और उग्रवाद जारी मुद्दे हैं। उनकी शिक्षाएँ एक अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और विचारधाराओं का सम्मान और महत्व होता है।अंत में, विवेकानंद की शिक्षाएं भावी पीढ़ियों को भारत की समृद्ध आध्यात्मिक विरासत की सराहना करने और आज की दुनिया में प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं के महत्व को पहचानने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। वे उन पहले व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने पश्चिम के सामने भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं के महत्व को उजागर किया और उनकी शिक्षाएं और प्रयास युवाओं को इसे संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।निष्कर्ष में, स्वामी विवेकानंद के विचार और शिक्षाएँ आज के युवाओं के लिए अत्यधिक प्रासंगिक हैं। आत्मनिर्भरता, सभी धर्मों की एकता और शिक्षा के महत्व का उनका संदेश सभी महत्वपूर्ण सबक हैं जो युवाओं को आधुनिक दुनिया की चुनौतियों और अवसरों से निपटने में मदद कर सकते हैं। ऐसा कहने के साथ, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं में भविष्य की पीढ़ियों को अपनी आंतरिक शक्ति और क्षमता विकसित करके, दूसरों की सेवा करके और दुनिया में शांति, एकता और सद्भाव को बढ़ावा देकर अधिक पूर्ण और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करने की क्षमता है। जैसा कि हम कई सामाजिक और आर्थिक मुद्दों का सामना करना जारी रखते हैं, हम मार्गदर्शन और प्रेरणा के लिए इस महान आध्यात्मिक नेता की बुद्धिमत्ता की ओर देख सकते हैं।युवा देश की ताकत है, ऊर्जा है। युवाओं की सामर्थ्य शक्ति किसी भी राष्ट्र को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने की ताकत रखती है ।आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत की युवा शक्ति स्वामी जी के दिखाए आदर्शो पर चलें और उनके मार्ग का अनुसरण कर अप्पो दीपो भव की अवधारणा पर कार्य करें ।यदि युवा पीढ़ी अपनी उर्जा का संतुलित एवं सकारात्मक उपयोग राष्ट्र निर्माण में करेगी तो  भारत विश्व गुरु के रूप में पुनः स्थापित होगा और वैश्विक फलक पर अपना आलोक बिखेरकर ज्ञान,विज्ञान,अनुसंधान, तकनीक आदि के प्रत्येक क्षेत्र में अपना परचम फहरायेगा।

               अर्चना अनुप्रिया 













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