"रक्षाबंधन"
- Archana Anupriya
- Aug 9
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"रक्षाबंधन"
पूरे शहर में कर्फ्यू लगा था। सारी दुकानें बंद, स्कूल कॉलेज बंद... अजीब से हालात थे...यहाँ तक कि मंदिर-मस्जिद भी जाने की किसी को इजाजत नहीं थी। रजिया को अपनी सहेली की शादी की चिंता होने लगी। अभी दो-चार दिनों के बाद ही तो उसकी सहेली शबनम की शादी होने वाली थी। कितने सपने देखे थे उन दोनों सहेलियों ने... शादी के लिए ये खरीदेंगी,वो खरीदेंगी... पर यहाँ तो बाहर झांकना भी मुहाल था। रजिया ने खिड़की थोड़ी सी खोलकर देखने की कोशिश की। सामने दो-तीन छः फुटे, यूनिफॉर्म पहने, हाथ में बंदूक राइफल लिए पारामिलिट्री के जवान गश्त लगा रहे थे।"अब क्या होगा…. अल्लाह, कुछ तो रहम कर"...रजिया ने ऊपर देखते हुए कहा। तभी उसकी नजर किनारे खड़े उस जवान पर पड़ी जो कुछ दिन पहले ही ईद की खरीदारी के लिए जब वह अम्मी के साथ बाजार गई थी और दंगों में घिर गई थी, तब मसीहा बनकर बड़ी हिफाजत और अदब से उन्हें घर तक छोड़ गया था।"रघुवीर सिंह"... शायद यही नाम बताया था उसने।लेकिन आज उसके चेहरे पर उदासी साफ दिखाई दे रही थी। "शायद छुट्टी कैंसिल हो गई होगी, दंगों की वजह से".... रजिया ने मन ही मन सोचा। तभी उसे कुछ याद आया। खिड़की बंद करके वह अम्मी के पास पहुंची और मन की बात कह दी।
बड़ी हिम्मत करके उसके अब्बा ने घर का दरवाजा खोला।सामने गश्त लगाते तीनों जवान एकदम से सतर्क हो उठे।एक ने आकर बड़ी ही रोबीली आवाज में बाहर जाने से मना किया और दरवाजा बंद करने को कहा। तभी रजिया आगे आकर कहने लगी-"भाई आज रक्षाबंधन है, मैं आपको राखी बांधना चाहती हूँ...बँधवा लो भैया...फिर दरवाजा बंद कर लेंगे...दंगों की वजह से आप लोग हमारी हिफाजत में लगे हैं... घर भी तो नहीं जा पाए होंगे…. मैं भी तो आपकी छोटी बहन जैसी ही हूँ ।"तीनों जवान एकदम से आश्चर्य में डूब गए.. एक मुस्लिम लड़की राखी बाँधना चाहती थी...तीनों ने एक दूसरे को देखा और फिर रघुवीर सिंह ने हाथ आगे कर दिया।रजिया भी पूरी तैयारी के साथ आई थी। तीनों को राखी बांधी,तिलक किया और मिठाई खिलाई।पूछने पर पता चला कि उसके अब्बा की राखी की ही दुकान है, इसीलिए राखियाँ तो घर पर ही थीं बस बाँधने के लिए कोई भाई नहीं था।
तीनों ने रजिया को आशीर्वाद दिया। रघुवीर सिंह की उदासी पूरी तरह से मिट चुकी थी। रक्षाबंधन के त्योहार ने दंगों के बीच उसे रजिया के रूप में एक बहन दे दिया था।
अर्चना अनुप्रिया

