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"रामचरितमानस एवं पंचतंत्र --वैश्विक धरोहर"

  • Writer: Archana Anupriya
    Archana Anupriya
  • Jun 24, 2024
  • 6 min read

“रामचरितमानस एवं पंचतंत्र -वैश्विक धरोहर”


किसी भी देश का विकास उसकी संस्कृतिक और साहित्यिक विकास के पैमाने से समझा जा सकता है।इधर हाल के दिनों में रामचरितमानस की सचित्र पांडुलिपियों और पंचतंत्र की कथाओं की पांडुलिपि को यूनेस्को ने “मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड” रीजनल रजिस्टर में शामिल कर लिया है। इसके साथ ही भारतीय विरासत के गौरव से जुड़े इस साहित्य को पूरी दुनिया की मान्यता मिल गई है।मानते तो सब पहले भी थे परन्तु अब प्रमाणित भी कर दिया गया है। ‘रामचरितमानस’ में जहाँ भगवान रामचंद्र जी की मर्यादा,उदारता और अन्याय के ऊपर न्याय की विजय-गाथा का अद्वितीय वर्णन है,वहीं ‘पंचतंत्र’ में जानवरों को माध्यम बनाकर प्रेरणादायी एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ वर्णित हैं।


रामचरितमानस-

“रामचरितमानस” महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित है।यह हिन्दी का सर्वोत्तम महाकाव्य है,जिसकी रचना चैत्र शुक्ल नवमी१६०३ वि. में हुई कही जाती है  तथा इसको तैयार करने में २ वर्ष ७ महीने तथा २६ दिन लगे। यह मूलतः एक साहित्यिक ग्रंथ है।तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक चित्रण किया है।उन्होंने श्रीराम के परंपरा-प्राप्त रूप को अपने युग के अनुरूप बनाया है।उन्होंने श्रीराम की संघर्ष-कथा को अपने समकालीन समाज और अपने जीवन की संघर्ष कथा के आलोक में देखा है और महर्षि वाल्मीकि के राम को केवल पुनर्स्थापित ही नहीं किया बल्कि अपने युग के अनुरूप नायक के चरित्र को गढ़ा है और मर्यादा की ऐसी प्रतिमूर्ति तैयार की है,जो हर युग के लिए वंदनीय है। रामचरितमानस एक ऐसी लोकग्राह्य कृति है जिसमें समाज के लगभग हर वर्ग के रेखांकन की सूक्ष्मता को अत्यंत पैनी एवं गंभीर दृष्टि से देखा जा सकता है। वह जब राम की भक्ति करते हैं तब अंततः इस लोक और मानवता की ही भक्ति स्थापित करते हैं। रामचरितमानस करुणा, समानता एवं मर्यादा के मूल्यों को बढ़ावा देता है और मानवीय संबंधों का महत्व स्थापित करता है।


पंचतंत्र– पंचतंत्र एक विश्वविख्यात कथा ग्रंथ है, जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं। कहते हैं उन्होंने उपदेशप्रद पशुकथाओं के माध्यम से एक राजा के तीन मंदबुद्धि बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी।

इस ग्रन्थ में प्रतिपादित राजनीति के पाँच तंत्र अर्थात भाग हैं। इसी कारण से इसे 'पंचतंत्र' नाम प्राप्त हुआ है। भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र को संस्कृत भाषा में 'पांच निबंध' या 'अध्याय' भी कहा जाता है। यह एक उपदेशप्रद भारतीय पशुकथाओं का ऐसा संग्रह है,जो अपने मूल देश तथा पूरे विश्व में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ और ‘पंचतंत्र’ के नाम से जाना गया।। यूरोप में इस पुस्तक को 'द फ़ेबल्स ऑफ़ बिदपाई' के नाम से जाना जाता है। इसका एक संस्करण वहाँ 11वीं शताब्दी में ही पहुँच गया था।


इस किताब में जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं। इसमें मुख्यत: पिंगलक नामक सिंह के सियार मंत्री के दो बेटों दमनक और करटक के बीच के संवादों और कथाओं के जरिए व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा दी गई है। सभी कहानियां प्राय: करटक और दमनक के मुंह से सुनाई गई हैं।  पंचतंत्र के पांच अध्यायों में  पहला है मित्रभेद अर्थात मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव संबंधी कहानियां.. दूसरा,मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति यानि मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ के विषय में हैं,तीसरा अध्याय काकोलुकीयम् यानि कौवे एवं उल्लुओं की कथा है और चौथा भाग है,लब्धप्रणाश अर्थात मृत्यु या विनाश के आने पर अर्थात यदि जान पर आ बने तो क्या करें जैसी कहानियां और पांचवें भाग में अपरीक्षित कारक अर्थात जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें इससे  संबंधित कहानियां हैं।

इन पांचों तंत्रों को समझाने के संदर्भ में अनेक उपकथाएँ भी प्रत्येक तंत्र में यथासार आती हैं। प्रत्येक तंत्र इस प्रकार कथाओं की लड़ी-सा ही है। पंचतंत्र में कुल 87 कथाएँ हैं, जिनमें अधिकांश हैं, प्राणी कथाएँ। प्राणी कथाओं का उदगम सर्वप्रथम महाभारत में हुआ बताया जाता है। विष्णु शर्मा ने अपने पंचतंत्र की रचना महाभारत से ही प्रेरणा लेकर की है। उन्होंने अपने इस ग्रंथ में महाभारत के कुछ संदर्भ भी लिये हैं। इसी प्रकार से रामायण, महाभारत, मनुस्मृति तथा चाणक्य के अर्थशास्त्र से भी श्री विष्णु शर्मा ने अनेक विचार और श्लोकों को ग्रहण किया है। इससे माना जाता है कि श्री विष्णु शर्मा चंद्रगुप्त मौर्य के पश्चात् ईसा पूर्व पहली शताब्दी में हुए होंगे। पंचतंत्र की कथाओं की शैली सर्वथा स्वतंत्र है।गद्य जितना सरल और स्पष्ट है, उतने ही उसके श्लोक भी समयोचित, अर्थपूर्ण, मार्मिक और पठन-सुलभ हैं। परिणामस्वरूप, इस ग्रन्थ की सभी कथाएं सरस, आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण बनी हैं। श्री विष्णु शर्मा ने अनेक कथाओं का समारोप श्लोक से किया है और श्लोक से ही किया है आगामी कथा का सूत्रपात।


पंचतंत्र की कहानियाँ अत्यन्त प्राचीन हैं। अत: इसके विभिन्न शताब्दियों में, विभिन्न प्रान्तों में, विभिन्न संस्करण हुए हैं। इसका सर्वाधिक प्राचीन संस्करण ‘तंत्राख्यायिका’ के नाम से विख्यात है तथा इसका मूल स्थान 'काश्मीर' है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉक्टर हर्टेल ने अत्यन्त श्रम के साथ इसके प्रामाणिक संस्करण को खोज निकाला था। उनके अनुसार ‘तंत्राख्यायिका’ या ‘तंत्राख्यान’ ही पंचतंत्र का मूल रूप है। पंचतन्त्र की कहानियाँ बहुत जीवन्त हैं। इनमे लोकव्यवहार को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है। बहुत से लोग इस पुस्तक को नेतृत्व क्षमता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है। यह भारत का सर्वाधिक बार अनूदित साहित्यिक रचना है।

नीतिकथाओं में पंचतन्त्र का पहला स्थान है। पंचतन्त्र ही हितोपदेश की रचना का आधार है। स्वयं नारायण पंडित जी ने स्वीकार किया है-

पञ्चतन्त्रात्तथाऽन्यस्माद् ग्रन्थादाकृष्य लिख्यते॥(श्लोक सं.९, प्रस्ताविका, हितोपदेश)

पंचतन्त्र में उक्त कथाओं के अतिरिक्त बहुत सी कहानियों का संग्रह है | इस प्रकार पंचतन्त्र एक उपदेशपरक रचना है। इसमें लेखक ने अपनी व्यवहार कुशलता राजनैतिकपटुता एवं ज्ञान का परिचय दिया है। नीति-कथाओं के मानवेतर पात्र प्रायः दो प्रकार के होते हैं, सजीव प्राणी तथा अचेतन पदार्थ। पंचतन्त्र में भी ये दो प्रकार के पात्र देखे जाते हैं- पशुओं में सिंह, व्याघ्र, शृगाल, शशक, वृषभ, गधा, आदि, पक्षियों में काक, उलूक, कपोत, मयूर, चटक, शुक आदि तथा इतर प्राणियों में सर्प, नकुल, पिपीलिका आदि। इनके अतिरिक्त नदी, समुद्र, वृक्ष, पर्वत, गुहा आदि भी अचेतन पात्र हैं, जिन पर  मानवीय व्यवहारों का आरोप किया गया है। पंचतन्त्र में मानव को व्यवहार कुशल बनाने का प्रयास अत्यधिक सरल एवं रोचक शैली में किया गया है। आधुनिक युग में बच्चों को इन कथाओं के बारे में अवश्य पढ़या जाना चाहिये | पंचतन्त्र के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए डॉ॰ वासुदेव शरण अग्रवाल ने लिखा है कि-

"पंचतन्त्र एक नीति शास्त्र या नीति ग्रन्थ है- नीति का अर्थ जीवन में बुद्धि पूर्वक व्यवहार करना है। चतुरता और धूर्तता नहीं, नैतिक जीवन वह जीवन है जिसमें मनुष्य की समस्त शक्तियों और सम्भावनाओं का विकास हो अर्थात् एक ऐसे जीवन की प्राप्ति हो जिसमें आत्मरक्षा, धन-समृद्धि, सत्कर्म, मित्रता एवं विद्या की प्राप्ति हो सके और इनका इस प्रकार समन्वय किया गया हो कि जिससे आनंद की प्राप्ति हो सके, इसी प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए, पंचतन्त्र में चतुर एवं बुद्धिमान पशु-पक्षियों के कार्य व्यापारों से सम्बद्ध कहानियां ग्रथित की गई हैं। पंचतन्त्र की परम्परा के अनुसार भी इसकी रचना एक राजा के उन्मार्गगामी पुत्रों की शिक्षा के लिए की गई है और लेखक इसमें पूर्ण सफल रहा है।"


पंचतंत्र अनेक भाषाओं में अनूदित हुआ है। ईरान की पहलवी भाषा,लेरियाई भाषा,अरबी भाषा, जर्मनी भाषा एवं अन्य यूरोपीय भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ।1552 ई. में पंचतंत्र का जो अनुवाद इटैलियन भाषा में हुआ, इसी से 1570 ई. में सर टामस नार्थ ने इसका पहला अनुवाद तैयार किया, जिसका पहला संस्करण बहुत सफल हुआ और 1601 ई. में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ। यह बात तो बड़े-बड़े देशों की भाषाओं की थी।हर भाषा में पंचतंत्र  की कहानियों ने लोक-मन को आकर्षित किया है।फ्रेंच भाषा में तो पंचतंत्र के प्रकाशित होते ही वहां के लोगों में एक हलचल सी मच गई थी। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई लेखक पशु-पक्षियों के मुख से वर्णित इतनी मनोरंजक तथा ज्ञानवर्धक कहानियां भी लिख सकता है।

सफलता और संस्करण

बड़ी सफलता के साथ पंचतंत्र ने अपना सफर जारी रखा। नेपाली, चीनी, ब्राह्मी, जापानी आदि भाषाओं में भी जो संस्करण प्रकाशित हुए, उन्हें भी बहुत सफलता मिली। रह गई हिन्दी भाषा तो इसे कहते हैं कि अपने ही घर में लोग परदेसी बन कर आते हैं। 1970 ई. के लगभग यह हिन्दी में प्रकाशित हुआ और हिन्दी साहित्य जगत् में छा गया। इसका प्रकाश आज भी जन-मानस को नई राह दिखा रहा है और शायद युगों-युगों तक दिखाता ही रहे।यह  मानव अस्तित्व के नैतिक आदर्शों को समझने और समझाने का एक शानदार रोचक उपकरण है।इन कहानियों के माध्यम से मनोविज्ञान और नैतिक मूल्यों के बारे में सीखा जा सकता है। इस प्रकार, पंचतंत्र का भारतीय संस्कृति एवं साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।

हमारी दोनों महत्वपूर्ण रचनाएँ विश्व के समक्ष एक अभूतपूर्व उदाहरण प्रस्तुत करती हुई जनमानस के अंतर्मन को न केवल प्रभावित करती हैं वरन विश्व के सामने मानव-मर्यादा और सामाजिक,नैतिक मूल्यों का एक जबरदस्त साहित्यिक,सांस्कृतिक उदाहरण बनकर भारतवर्ष का गौरव बन गयी हैं।

                  अर्चना अनुप्रिया













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