हिन्दी भाषा का उद्गम,विकास और भविष्य"
- Archana Anupriya
- Sep 14, 2020
- 7 min read
नदी की बहती धारा का सा प्रवाह है भाषा का... सतत आगे बढ़ती हुई रास्ते की रुकावट और बंधनों को तोड़ना या उन्हें आत्मसात कर लेना भाषा और नदी- दोनों की ही स्वाभाविक प्रवृत्ति है। हिंदी भाषा की उत्पत्ति भी ऐसी ही एक प्रवाह की देन है।भारत की सर्वाधिक प्राचीन भाषा है, संस्कृत, जिसे देवभाषा या आर्य भाषा भी कहा गया है। हिंदी उसी की उत्तराधिकारिणी कही जाती है। हिंदी का जन्म संस्कृत भाषा के ही गर्भ से हुआ है।
उत्पत्ति-
भारत में लगभग चार तरह के भाषा-परिवार मिलते हैं-- भारोपीय, द्रविड़,ऑस्ट्रिक तथा चीनी तिब्बती। हिंदी भारोपीय अर्थात भारतीय- ईरानी शाखा के भारतीय आर्य उपशाखा से विकसित भाषा है। भारतीय आर्यभाषा के काल को तीन काल खंडों में विभाजित किया गया है-- प्राचीन,मध्यकालीन एवं आधुनिक।
क)प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का काल 1500 ई.पूर्व से 500 ई.पूर्व तक माना जाता है, जिसमें वैदिक और लौकिक संस्कृत का प्रयोग हुआ। वेद, संहिता, उपनिषद् आदि वैदिक संस्कृत में ही रचे गए। संस्कृत भाषा में ही रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य भी लिखे गए।
ख)मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल में 500 ईसा पूर्व से 1 ईसवी तक पाली,1ई. से 500 ईसवी तक प्राकृत, 500ई. से 1000ई.तक अपभ्रंश तथा 900 ईस्वी से 1100 ईसवी तक अवहठ्ठ का वर्चस्व रहा।महात्मा बुद्ध के समय पाली भाषा प्रचलित थी जबकि महावीर जैन के समय प्राकृत भाषा का चलन था।
ग) आधुनिक भारतीय आर्य भाषा हिंदी भाषा का वास्तविक उद्गम काल है,जिसमें 1100ई.से 1400ई.तक प्राचीन हिंदी, 1400 ई.से 1850 ईस्वी तक मध्यकालीन हिंदी और 1850 से अब तक आधुनिक हिंदी का विकास हुआ। इसीलिए, कह सकते हैं कि हिंदी संस्कृत से जन्म लेकर पाली>प्राकृत> अपभ्रंश> अवहठ्ठ से गुजरती हुई प्राचीन स्वरूप में उत्पन्न होती है और फिर निरंतर विकसित होती हुई आधुनिक हिंदी का रूप ले लेती है।देखा जाए,तो हिंदी भाषा का इतिहास अपभ्रंश से आरंभ होता है किंतु भाषा और साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था अवहठ्ठ से हिंदी का उद्गम स्वीकारते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी ने इसी अवहठ्ठ को पुरानी हिंदी कहा है और हजारी प्रसाद द्विवेदी जी हिंदी को ग्राम्य अपभ्रंशों का स्वरूप मानते हैं।
विकास..
हिंदी शब्द वस्तुतः फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है, हिंदी से संबंधित।ईरानी भाषा में 'स'का उच्चारण 'ह' किया जाता था, इसीलिए सिंधु या सिंध से जुड़ा होने के कारण हिंद और हिंदी शब्द समस्त भारत का पर्याय बन कर उभरा।
प्राचीन कालीन हिंदी में जो पदबंध रचनाएँ मिलती हैं,वे अधिकांशतः दोहा रूप में हैं, जिनके विषय ज्यादातर धर्म, नीति और उपदेश रहे हैं।राजाश्रित कवि अपने राजा को प्रसन्न करने हेतु नीति, श्रृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि से संबंधित साहित्य रचना करते थे।उन्हीं दिनों पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देसी भाषा का प्रयोग भी निरंतर बढ़ रहा था। विद्यापति इसे देसी भाषा कहते थे। इस काल में चंदबरदाई, याग्निक, भूषण, तुलसी, जायसी पद्माकर आदि जैसे रचनाकार हैं।
मध्यकालीन हिंदी में भक्ति आंदोलन खूब फली-फूली और भक्त कवि जनों ने अपनी भावनाएँ हिंदी के माध्यम से लोगों तक पहुँचायीं। इस काल के रचनाकार तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास, मीराबाई, रसखान आदि रहे।
आधुनिक काल की हिंदी में देखें, तो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पत्रकारिता में हिंदी भाषा का बहुत उपयोग किया गया।गांधीजी समेत सभी बड़ी नेता हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा की तरह देख रहे थे। भारत के स्वतंत्रता के बाद हिंदी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया। हिंदी की लिपि देवनागरी है, जो विश्व की वर्तमान लेखन प्रणाली के बीच सबसे वैज्ञानिक लिपि मानी जाती है।जैसी लिखी जाती है, वैसी ही पढ़ी जाती है। इसमें अँग्रेजी की तरह लेखन और उच्चारण में वैषम्य नहीं है। इसके अतिरिक्त, कैपिटल, स्मॉल, उच्चारण और एक्सेंट की समस्या भी नहीं है। वर्तमान स्वरूप में हिन्दी भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा है और इसे विश्व में व्यापक रूप में बोली जाने वाली भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में "देवनागरी लिपि में हिंदी'को भारत की राजभाषा घोषित किया गया है ।
भाषा के लिए जरूरी है कि उसका शब्दकोश बड़ा हो और अन्य भाषाओं के प्रति उसमें उदारता का भाव भी हो। तभी वह व्यापक रूप से स्वीकृत होगी और अधिक समय तक टिक पाएगी। इस दृष्टि से हिंदी भाषा का विकास अत्यंत सौभाग्य भाग्यशाली सिद्ध हुआ है। भारत में विभिन्न विदेशी शासनों की वजह से कई तरह की भाषाओं ने हिंदी को प्रभावित किया है और शब्द भंडार को समृद्ध करने में सहायक हुए हैं।
भविष्य
अंग्रेजों की दासता की वजह से अंग्रेजी भारत में काफी हद तक फैली दिखाई देती है और व्यापक रूप से इसका उपयोग अभिजात वर्ग,नौकरशाही और कंपनियों द्वारा किया जाता रहा है। लिखित रूप में देखें तो अधिकांश दस्तावेजों के आधिकारिक संस्करण में ज्यादातर अंग्रेजी का ही प्रयोग होता है।पैन- इंडियन लिखित संचार के साथ-साथ मीडिया भी अधिकतर अंग्रेजी का ही उपयोग करते हैं। बोलचाल के हिसाब से हालांकि अंग्रेजी अपेक्षाकृत कम बोली जाती है, परंतु समाज में अंग्रेजी बोलना या अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करना एक फैशन सा बन गया है।किसी भी भाषा को वैश्विक स्तर पर जमने के लिए किसी भाषा के लिए महत्वपूर्ण और संप्रेषण क्षमता की आवश्यक शर्त है,उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता। यदि भाषा विश्व के धरातल पर सभी को अपनी बात समझाने में असमर्थ है या उसकी संप्रेषणीयता का स्तर कमजोर है, तो वह वैश्विक स्तर पर कैसे स्थापित हो सकती है ? हिंदी भाषा के मामले में इस दिशा में भाषा को अभी और विकसित करने और इस संबंध में काम करने की जरूरत है। हिंदी में अभी ज्ञान-विज्ञान से संबंधित विषयों पर उच्च स्तरीय सामग्री का अभाव दिखता है, जिसे जल्द ही पूरा करने की कोशिश है। विगत कुछ वर्षों से इस दिशा में प्रयास भी हो रहे हैं और सफलता भी मिल रही है।अभी हाल में ही अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम में एमबीए का पाठ्यक्रम आरंभ किया गया है। बहुत से समाचार पत्र और टेलीविजन चैनल अपने समाचार एवं अन्य कार्यक्रम अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी प्रकाशित और प्रसारित करने लगे हैं।देखा जाए, तो हर तरह की नौकरी या व्यवसाय में अंग्रेजी के ज्ञान की बहुत आवश्यकता नहीं है। भारत के विकास के लिए जरूरी है कि जिस भाषा को आबादी का एक बड़ा भाग बोलता या समझता है, उसी में शिक्षा को जीवन दिया जाए,ताकि, हिंदी से जुड़ा लिखने पढ़ने वाला सशक्त वर्ग तैयार हो और नागरिक अधिक कुशल बनकर अपनी आजीविका कमा सके। बैंकिंग क्षेत्र में इस दिशा में पहले की अपेक्षा क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। परिचालन, भूमंडलीकरण,विनियमन और सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के सहारे क्षेत्र निरंतर प्रगति कर रहा है। हिंदी में तकनीकी प्रगति होने से नए नए आय के तरीके सामने आ रहे हैं। हाल में ही हैदराबाद की गूगल ऑफिस में गूगल ब्लॉगर्स का सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें यह सिद्ध हुआ कि सिर्फ गूगल के हिंदी ब्लॉगर्स की ही सलाना आय करोड़ों में हो सकती है। स्पष्ट है कि हिंदी भाषा का विकास राष्ट्र के विकास और रोजगार के नए स्वरूपों का परिचायक बन रहा है।
हिंदी भाषा के विकास के लिए जरूरी है कि समाज और देश सभी भारतीय भाषाओं के प्रति मित्रवत हों और नागरिकों को यह एहसास हो कि आर्थिक और राजनीतिक सफलता के लिए केवल अंग्रेजी जरूरी नहीं। लोकमान्य तिलक ने भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कहा था कि अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व किए बिना देश विकसित नहीं हो सकता। यह सही भी है। जब तक हम स्वयं ही अपनी भाषा और संस्कृति को महत्व नहीं देंगे तब दूसरों से अपेक्षा रखना व्यर्थ ही है। इसी जागरूकता के लिए केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों के साथ-साथ कई सामाजिक और साहित्यिक संस्थाएं भी अब हिंदी भाषा को एक लिंक भाषा के रूप में प्रचारित और प्रसारित करने का कार्य कर रही हैं। हिंदीभाषी आबादी का बड़ा भाग विभिन्न सेवाओं का एक आकर्षक बाजार बनाता है, जिसका लाभ उठाने के लिए लोगों को हिंदी भाषा से परिचित होने की जरूरत है। इसके लिए किसी अन्य भारतीय भाषा से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है और इस कारण देश के एक बड़े हिस्से में लिंगुआ फ्रैंका के रूप में पहले से स्थित हिंदी उन लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रही है, जो अपनी क्षेत्रीय सीमा से बाहर जाकर रोजगार की तलाश कर रहे हैं ।बहुत सी स्वैच्छिक संस्थाएं हिंदी के ज्ञान को फैलाने में लगे हैं और चलचित्र ,आकाशवाणी एवं सोशल मीडिया द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें सहायता भी मिल रही है ।इसके अतिरिक्त हिंदी भाषा को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि भारत में बोली जाने वाली सैकड़ों बोलियाँ जैसे बुंदेलखंडी,भोजपुरी, गढ़वाली,अवधी,मागधी आदि भी रक्षित होती रहें क्योंकि यह बोलियाँ हिंदी भाषा की प्राण- वायु हैं।
नई शिक्षा नीति में भी सरकार द्वारा इस भाषा की सुरक्षा और विकास पर ध्यान दिया गया है। पहले त्रिभाषा में पढ़ाई की नीति के अनुसार हिंदी को अनिवार्य बनाया गया था, परंतु, कई जगह, खासकर दक्षिणी राज्यों में विरोध का स्वर उठने पर इस नीति को लचीला कर दिया गया और किसी भी भाषा को अनिवार्य नहीं बताते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में प्रारंभिक शिक्षा की बात कही गयी है। नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं और हुनर को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। इस संदर्भ में, चूँकि अधिकांश भाग हिंदी बोलता और लिखता- पढ़ता है, तो हिंदी भाषा का भविष्य और भी निखर पाएगा। ऐसे में राजनीति लाभ से ऊपर उठकर नई पीढ़ी को एक नई दिशा देने की जरूरत है ताकि हमारी नई पीढ़ी पश्चिमी देशों के अंधानुकरण में न पढ़कर अपनी भाषा और संस्कृति पर गौरव करें ।एक वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार हिंदी 2050 तक अधिकांश व्यावसायिक दुनिया पर हावी रहेगी।
निष्कर्ष
इस तरह की बात,हिंदी के विकास कार्य और हिन्दी के बढ़ते बाजार को देखते हुए ऐसा लगता है कि हिंदी का भविष्य सुरक्षित ही नहीं अत्यंत सुनहरी दिशा में धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।बस,जरूरी है कि हिन्दी भाषा में रची जा रही नकारात्मक रचनाओं और आये दिन सोशल मीडिया में आने वाले भ्रामक अनावश्यक विवादों पर लगाम लगे तथा युवा-वर्ग और बाल-वर्ग का इस भाषा की ओर झुकाव बढ़े।बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह हैं, यदि उनकी रूचि हिन्दी भाषा में सशक्त रूप से जगा सकें तो यह हिन्दी भाषा के विकास के लिए वरदान साबित हो सकता है। यदि हम सकारात्मक रूप से आगे बढ़ते रहें तो कोई आश्चर्य नहीं किया एक दिन हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में भी प्रवेश पा जाए और विश्व की समस्त भाषाओं में अग्रणी स्थान ग्रहण कर ले।शुभम् इति।
अर्चना अनुप्रिया।
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